नव विक्रम संवत् 2079 में ज्ञानार्जन का सलक्ष्य प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

नव विक्रम संवत् 2079 में ज्ञानार्जन का सलक्ष्य प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

रोहतक, 2 अप्रैल, 2022
चैत्र शुक्ला एकम्, वि0सं0 2079 का मंगल प्रारंभ। कल फाइनेंशियल ईयर शुरू हुआ था। आज विक्रम के नए वर्ष का प्रारंभ हुआ है। वर्तमान के महावीर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः 11 किलोमीटर विहार कर ऋषियों की नगरी रोहतक पधारे। जैन-अजैन सभी धर्मावलंबियों ने पूज्यप्रवर का अपने नगर में पधारने पर हार्दिक अभिनंदन किया।
पूज्यप्रवर ने जन सैलाब को मंगल पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आज विक्रम संवत् 2079 का प्रारंभ हुआ है। वि0सं0 2078 संपन्न हो चुका है। काल का अपना क्रम है। काल अनंत है। अतीत में अनंत काल बीत गया है और भविष्य में भी अनंत काल होता रहेगा। वर्तमान का काल तो थोड़ा सा होता है। अतीत और अनागत बड़ा है। इन दोनों की तुलना में वर्तमान बहुत छोटा सा है।
काल की लघुत्तम ईकाई समय होता है। ऐसी जैन सिद्धांत की मान्यता है। समय के टुकड़े नहीं किए जा सकते। समय तो बीत जाता है, वक्त चला जाता है, बात रह जाती है। समय की अपनी गति है, समय का कोई आरपार नहीं है, जैसे आकाश।
ज्ञान भी अनंत है। कितने ग्रंथ दुनिया में हैं। ग्रंथों के सिवाय भी ज्ञान अनंत है। जिसे केवल ज्ञान प्राप्त हो जाता है, उनका तो ज्ञान अनंत है। वह ग्रंथों में नहीं समा सकता। ज्ञान बहुत है, पर समय थोड़ा है। कितना पढ़ पाएँगे, उसमें भी विघ्न-बाधाएँ आ सकती हैं।
जैन वाङ्मय में स्वाध्याय को महत्त्व दिया गया है। सदा स्वाध्याय में रहें। जैन शासन में भी कितने शास्त्र हैं। आगम-ग्रंथ हैं। जितनी अनुकूलता हो, उन ग्रंथों का स्वाध्याय करें। साथ में मनन भी करें। शास्त्रों को कंठस्थ कर उसे सुरक्षित रखना, वो खास बात होती है। उसके लिए ज्ञान पुनरावर्तन करना, बार-बार चितारना, परिवर्तन का क्रम चलता है, तो कंठस्थ किया ज्ञान सुरक्षित रह सकता है।
आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कितना ज्ञानाभ्यास किया था। पढ़ने से विचार भी शुद्ध बन सकते हैं तथा ज्ञान की समृद्धि प्राप्त हो सकती है। पुनरावर्ती नहीं करने से वह ज्ञान विस्मृति के गर्त में जा सकता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि चितारने में आलस्य न करें।
हमारे श्रावक-श्राविकाएँ भी सीखें ज्ञान को चितारते रहें। हम अभी हरियाणा में प्रवास कर रहे हैं।
आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी भी हरियाणा पधारे थे। हमारे श्रद्धा के अच्छे घर हैं। हरियाणा के श्रावकों में तत्त्व ज्ञान का विकास होता रहे। शास्त्र और सिद्धांत की बातों का ज्ञान बढ़े। भक्ति भावना पुष्ट रहे। भक्ति श्रद्धा का बड़ा महत्त्व है। श्रद्धा एक प्रकार की गाय है, गाय को भक्ति के खूँटे से बाँध दिया, फिर गाय आगे-पीछे नहीं होगी। श्रद्धा एक जगह स्थिर रह सकती है।
श्रद्धा और ज्ञान के साथ आचार हो तो श्रावक का जीवन भी अध्यात्म की दृष्टि से सुरम्य उद्यान की तरह अच्छा जीवन बन सकता है। हरियाणा में कितने हमारे जैन समाज के लोग रहते हैं। यहाँ पर दीक्षाएँ भी हुई हैं। बड़ौदा गाँव से कितनी दीक्षाएँ हुई हैं। नए साल में स्वाध्याय भी अच्छा चले। दीक्षा ले अच्छी बात है, पर अपनी श्रद्धा, ज्ञान और आचरण का अध्यात्म में उपयोग करें तो आत्मा मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकती है।
ज्ञान हमारे आचरणों को अच्छा बनाने वाला सिद्ध हो सकता है। ज्ञान को जाना, उसे आचरणों में ले आएँ तो ज्ञान कृत्य-कृत्य हो जाता है। आज रोहतक में आना हुआ है। यहाँ की जनता में भी खूब धर्म की भावना रहे। अध्यात्म, नैतिक मूल्यों एवं अहिंसा के प्रति अच्छी निष्ठा पुष्ट रहे, मंगलकामना।
डॉ0 संतोष जैन की पुस्तक जीवन के रंग, आत्मा के संग पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में उनके परिवार द्वारा अर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेरापंथ सभाध्यक्ष कृष्ण जैन, महिला मंडल गीत, महिला मंडल अध्यक्षा नीलम जैन, तेयुप गीत, प्रेक्षाध्यान प्रशिक्षिका डॉ0 संतोष जैन, छवि जैन, ज्ञानशाला, जैन समाज से नवीन जैन, राकेश जैन ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। स्थानीय सभा द्वारा आगंतुक महानुभावों का सम्मान किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि हमारे धर्मसंघ षष्ठम आचार्यश्री माणकलाल जी का परिवार रोहतक जिले से ही था।