प्रतिकूलता में भी सहनशीलता के भाव रखने चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

प्रतिकूलता में भी सहनशीलता के भाव रखने चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

अणुव्रत भवन, 23 मार्च, 2022
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमणजी अणुव्रत भवन दो दिवसीय प्रवास हेतु पधारे। महातपस्वी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रों में अनेक प्रकार के पथदर्शन प्राप्त होते हैं। दसवेंआलियं आगम हमारा एक ग्रं्रथ है, जो साधु-साध्वियों के लिए बड़ा उपयोगी है। उस आगम को कंठस्थ भी करते हैं। साधु को कैसे जीवन जीना चाहिए, गोचरी कैसे करनी चाहिए, दसवेंआलियं में निर्देश दिया गया है।
साधु को कैसे बोलना चाहिए, इसके सातवें अध्याय में निर्देश दिया गया है। भिक्षु कैसा होता है, उसका इसके दसवें अध्याय में बताया गया है कि साधु के लक्षण क्या होने चाहिए? विनय-व्यवहार के संबंध में इसका नौवाँ अध्ययन पढ़ा जा सकता है। अनेक बातें इस आगम में हैं। संसार में सुखी कैसे रहा जा सकता है, यह भी इसके श्लोक में बताया गया है।
सुखी जीवन के निर्देश इसमें दिए गए हैं। पहली बात हैµअपने आपको तपाओ, सुकुमारता को छोड़ो। कठिनाइयों को झेलने का प्रयास करो। सुकुमारता है, कठोरता नहीं है, तो जीवन ज्यादा सुखी नहीं रह सकता है। कुछ पाना है तो सुविधा की वृत्ति को त्यागना चाहिए। प्रतिकूलता में भी अनुकूलता-सहनशीलता रखें। कोई शरीर का नाश कर सकता है, पर आत्मा तो अमर रहती है।
जीवन में बड़ा काम करना है, विशेष कुछ पाना है, तो आने वाली कठिनाइयों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। कामनाओं का भी परिसीमन करो या दमन करो तो दुःख भी कम हो जाएगा। लालसा-इच्छा होती है, तो साथ में दुःख भी आ सकता है। किसी से द्वेष-ईर्ष्या मत करो। अनवांछनीय रूप में किसी से राग भी मत करो। मोह मत रखो। इस प्रकार तुम संसार में सुखी रह सकते हो।
जीवनशैली कैसी होनी चाहिए? इस संदर्भ में इस श्लोक में पथ-दर्शन प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य भिक्षु ने कितनी कठिनाइयों का सामना किया था। गुरुदेव तुलसी को तो हमने देखा है। इसी अणुव्रत भवन में 1974 में मुझे साधु प्रतिक्रमण सीखने का आदेश उनसे मिला था और मुनि दीक्षा का भी आदेश यहीं प्राप्त हुआ था।
अणुव्रत भवन एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। पूरी दिल्ली का मुख्य केंद्र है। अणुव्रत की गतिविधि के लिए उपयोगी स्थान है। पर्याय परिवर्तन भी हुआ है। यहाँ खूब अणुव्रत की अच्छी गतिविधियाँ चलती रहें। अणुव्रत समस्याओं के समाधान का एक श्रेयस्कर उपक्रम है। आध्यात्मिक खुराक आम जनता को अणुव्रत से प्राप्त हो सकती है। गुरुदेव तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अणुव्रत के माध्यम से नैतिकता का संदेश दिया है। अणुव्रत का कार्य अच्छे ढंग से यहाँ से चलता रहे, यह कामना है।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आचार्यप्रवर की कथनी-करनी लक्ष्मण रेखा जैसी बन जाती है। आचार्यप्रवर के मन में करुणा है, वे दूसरों का दुःख नहीं देख सकते। स्वयं कष्ट उठाकर भी दूसरों का कल्याण करते हैं। जिसके मन में करुणा है, उसे कोई परास्त नहीं कर सकता।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में के0सी0 जैन, महिला मंडल ने गीत द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।