अणुव्रत की बात भी दीपक जलाने के समान है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अणुव्रत की बात भी दीपक जलाने के समान है: आचार्यश्री महाश्रमण

लाजपत नगर, दिल्ली, 22 मार्च, 2022
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना देते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में हिंसा भी चलती है और अहिंसा भी चलती है। ऐसा तो कौन सा समय दुनिया में आया होगा या आएगा, जब किसी भी रूप में हिंसा न हो। हो सकता है, यौगलिक काल में, बहुलांश में या पूर्णांश में अहिंसा का साम्राज्य रहता हो। परंतु ये कलिकाल है, पंचम आरे में तो पूर्णतया अहिंसा रहती हो, यह कहना कठिन है।
हिंसा होती है, तो कभी-कभी युद्ध की स्थिति भी बन जाती है। फिर भी संत लोग अहिंसा के लिए कुछ प्रयास भी करने वाले करते हैं। प्रश्न होता है, इतने संत हैं, धर्म-ग्रंथ हैं, इतने प्रवचन होते हैं फिर भी दुनिया में हिंसा है। अनैतिकता और पाप है। फिर यह पुरुषार्थ करने का क्या मतलब?
इस चिंतन के संदर्भ में दो बातें हो सकती हैंµएक तो यह बात है कि प्रवचन-उपदेश होते हैं, वो भीतर में कितना जाता है, ऊपर तक कितना रहता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि लोग प्रवचन इधर से सुनते हैं और उधर से निकाल देते हैं, फिर प्रवचन का असर कैसे होगा? प्रवचन सुनना अच्छा है, पर कौन कितनी गहराई से सुनता है, वो अलग बात है।
दूसरी बात इस संदर्भ में यह है कि ये संत लोग या काम करने वाले काम करते हैं तो दुनिया कुछ तो ठीक-ठाक चल रही है ना। ये नहीं होते तो पता नहीं दुनिया कहाँ चली जाती। दुनिया में अनैतिक कार्य है, पर उसे देखकर धर्म का प्रचार ही बंद कर देंगे, तो स्थिति बहुत ही ज्यादा जटिल हो सकेगी। अंधकार होता है, प्रकाश का प्रयास करते रहो। अंधकार को भगाने के लिए दीपक की जरूरत होती हैं न कि हताश होना।
अणुव्रत की बात भी दीपक जलाने के समान है। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान भी यही प्रेरणा देता है। समाज, राष्ट्र और दुनिया अच्छी रहे। शास्त्रकार ने कहा है कि सब प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है। किसी के साथ बैर नहीं है। हिंसा के अंधकार को मिटाने के लिए मैत्री के दीपक जलाना जरूरी है। वो दीपक जलते हैं, तो पवित्र प्रेम के संस्कार उभरते हैं। शांति रहती है। हिंसा अशांति का मार्ग है और अहिंसा शांति का मार्ग है।
सबके साथ मंगल मैत्री का भाव रखने का प्रयास होना चाहिए। एक प्रसंग से समझाया कि हाथ की मुद्रा से दाता और याचक का पता चल जाता है। दीन-हीन आदमी को भी मित्र कहकर पुकारना बहुत बड़ी बात है। अर्थ का दाता दानी होता है, पर सम्मान का दान देने वाला बड़ा दाता होता है।
अपने आसपास रहने वाले के साथ मैत्री का भाव हो। हमारे व्यवहार से दूसरे को तकलीफ न हो। हर प्राणी के साथ हमारा मैत्री-अहिंसा का भाव हो। धर्मग्रंथ पढ़कर लोग पंडित बन सकते हैं, पर धर्मग्रंथ की बात हमारे जीवन में कितनी उतरी यह खास बात है।
इतने धर्मग्रंथ इसलिए रचे गए कि शांति-उपशम रहे। जिसका मन शांत रहता है, वो एक तरह से सर्व शास्त्रों का वेत्ता होता है। अहिंसा को परम धरम कहा गया है। आदमी खुद थोड़ा कष्ट भोग ले, पर दूसरों को तकलीफ देने वाला न बने। शांति का यह मतलब नहीं कि दूसरे को गलती भी न बताएँ। गलत बात को टोकना भी चाहिए।
लोकतांत्रिक प्रणाली अहिंसा की दृष्टि से ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगती है। पर लोकतंत्र में भी अनुशासन और व्यवस्था चाहिए। जहाँ नैतिकता-अंकुश हो, ऐसा राम राज्य चाहिए। कोई कहने, मानने या सुनने वाला नहीं, वो राम राज्य नहीं होना चाहिए। हमारे जीवन में अहिंसा, मैत्री, अनुकंपा ये पुष्ट रहे, ये काम्य है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में कल्पना सेठिया, सुखराज सेठिया, सेठिया परिवार द्वारा स्वागत गीत, एम ब्लॉक के चेयरमैन सरदार के0बी0 सिंह, पुखराज सेठिया, अभिलाषा बांठिया, स्थानीय सभा मंत्री माया दुगड़ ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
पूज्यप्रवर का आज का प्रवास दक्षिण दिल्ली लाजपतनगर में सुखराज सेठिया के निवास पर हुआ। कल पूज्यप्रवर अणुव्रत भवन पधारेंगे।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।