भावां रो सागर

भावां रो सागर

शासनमाता शासण रे हिवडे में बसी है

उपकारी थांरी तस्वीर

श्रद्धा सुमन चरणां में समर्पण

बरसावै नैणां भक्‍ति नीर

 

कनकप्रभाती  कनकप्रभाजी पावन जीवन धारा

अनगिन डगमगती नौकां री थामी थे पतवारां

सिरजण जन-जन रो कर अनूठो दिखलायो भवतीर॥

 

पौरुष री प्रतिमा परमारथ पथ पर चलणो सिखायो

जो कोइ आयो श्रीचरणां में वत्सल दरियो लहरायो

पल-पल निरझर बह्यो प्रेरणां रो, लाखां री जगी तकदीर॥

 

गुरु तुलसी री परम कृति रो उपकार हर मन सुमरें

शब्द नहीं हैं भावां रो, सागर आज हृदय में लहरें

दरसण चावां ध्यावां थांने महासतिवर!

हरल्यो नी मनंडे री पीर॥

 

महाश्रमण गुरुवर किरपा री बरसाई रिझवारी

बीत्यां जो पल चरणां में स्वर्णिम जुड़ गई म्हारी इकतारी

रूप विराट दिखाद्यो शासणमाता! तोड़ जगत जंजीर॥

 

लय : छोटी सी उमर परणाई