आशीर्वर नित चावां

आशीर्वर नित चावां

जावां बलिहारी, जावां बलिहारी, जावां बलिहारी

शासनमाता हिम्मत कर ली।

कर संथारो झोली भर ली।

पीड़ा जनम-जनम री हर ली।

 

साध्वीप्रमुखा रो पद पायो।

गंगाणै रो सीन सुहायो।

सबरो रोम-रोम हरसायो॥

 

तीनूं गुरुआं स्यूं इकतारी।

नत-मस्तक मुद्रा थांरी।

सबनै लागे है मनहारी॥

 

अनशन श्रीमुख स्यूं पचखायो।

गुरुवर माँ रो कर्ज चुकायो।

रोप्यो थे शिवपुर रो पायो॥

 

घोर असाता में समता भारी।

हर-पल, हर-क्षण निरखी थांरी।

वाह-वाह कनकप्रभा जयकारी॥

 

थे तो जीवन सफल बणायो।

गण रो गौरव खूब बढ़ायो।

बणग्यो भक्‍त चरण जो आयो॥

 

थांरी याद सदाई आसी।

आंख्या आंसूड़ा ढलकासी।

रसना थांरा ही गुण गासी।

 

‘अणिमा’ श्रद्धा सुमन चढ़ावै।

चरणां सविनय शीष झुकावै।

थांरो आशीर्वर नित चावै॥

 

बरतै गण में चोथो आरो।

सुखकर महाश्रमण बरतारो।

नैया भवसागर स्यूं तारो॥

 

लय : धरती धोरां री---