हिंसा से बचने के लिए केवल नियम नहीं हृदय परिवर्तन भी होना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हिंसा से बचने के लिए केवल नियम नहीं हृदय परिवर्तन भी होना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म साधना केंद्र, 16 मार्च, 2022

तेरापंथ धर्मसंघ के सरताज आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि ज्ञान और आचरण ये दो चीजें हैं। दो हैं और एक-दूसरे से जुड़ी हुई हो सकती हैं। आचरण बढ़िया तब हो सकता है, जब उस आचरण के विषय में ज्ञान बढ़िया हो। बिना ज्ञान का आचरण बढ़िया नहीं हो सकता है। चिकित्सा है, अच्छी योग्यता अर्जित कर ली तो इलाज अच्छा कर सकता है।

शास्त्रकार ने अहिंसा की बात बताई है। ज्ञानी और ज्ञान का सार यह है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता। अहिंसा का व्यवहार करना है, तो पहले अहिंसा को जाने। हिंसा को भी जानें। जीव क्या अजीव क्या वो जान ले, फिर हिंसा से बचने का प्रयास हो सकता है। अहिंसा को परम धर्म कहा गया है। प्रश्‍न है, अहिंसा का आचरण कैसे करें? आदमी यह समझ ले कि मेरे आत्मा है, तो दूसरों के भी आत्मा है। जीवन सबको प्रिय है। आदमी हिंसा में जाता है, उसका कारण है, भीतर का भाव। असद्, लोभ, अहंकार का भाव। ये भाव हिंसा की ओर ढकेल देता है। बाहर का युद्ध तो बाद में होता है, पहले मस्तिष्क में युद्ध होता है। व्यवहार में गृहस्थों को आवश्यक हिंसा करनी भी पड़ती है। पर क्रोध, लोभ में आकर हिंसा न करें। अपराधिक हिंसा न हो। हिंसा एक तो भावों से होती है। दूसरा हिंसा करने का कारण हैगरीबी, बेरोजगारी, भूखमरीइन कारणों से आदमी हिंसा में जाने के लिए बाध्य हो सकता है। अभाव से कभी स्वभाव बिगड़ जाता है। निमित्तों का प्रभाव पड़ सकता है, पर हमारे मनोबल के भाव मजबूत हों। हिंसा के निमित्तों का उभार न हो। हिंसा से बचने के लिए सिर्फ नियम से ही काम नहीं चलता साथ में हृदय परिवर्तन भी होना चाहिए। दोनों के मिलने से सुधार जल्दी हो सकता है। संत लोग समझकर हृदय परिवर्तन करा सकते हैं। योग-अध्यात्म से मानव का मन बदला जा सकता है। व्यवस्था तंत्र का भी अपना उपयोग हो सकता है। पर साथ में अध्यात्म तंत्र भी चले। उपदेश-संदेश से लोगों को समझाया जा सकता है।

सारे लोग उपदेश से समझ जाएँ संभव नहीं हो तो फिर उन पर व्यवस्था का, डंडा का प्रयोग करना पड़ता है। शास्त्रकार ने कहा है कि ज्ञान से अहिंसा को जानकर उसका आचरण करें। अहिंसा, सुख-शांति का मार्ग हैं आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अहिंसा यात्रा के माध्यम से अहिंसा का संदेश दिया था। 2002 में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के अहमदाबाद प्रवास का अहिंसा यात्रा के प्रकरण को समझाया। विकास अहिंसा से ही हो सकता है। अहिंसा एक धर्म है, नीति हैं अहिंसा सुख का मार्ग है। हमेशा अहिंसा में रहो। अहिंसा-समता, सुख-शांति का बहुत बड़ा मार्ग है। साध्वीप्रमुखाश्री जी के स्वास्थ्य की मंगलकामना हेतु मंत्र जप करवाया। पूज्यप्रवर के स्वागत में शाहदरा से राजेश सिंघी, अनिल पटवा, चंद्रकांत कोठारी, नोएडा व उत्तरी दिल्ली की महिला मंडल, गांधीनगर सभा समुह ने गीत से अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।