व्यक्‍ति के जीवन में धर्म से अनुप्राणित व्यवहार हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्‍ति के जीवन में धर्म से अनुप्राणित व्यवहार हो : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म साधना केंद्र, महरौली,
13 मार्च, 2022
शांति का संदेश प्रदान कराने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने दिल्ली श्रावक समाज द्वारा आयोजित स्वागत समारोह के अंतर्गत मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे पास शास्त्रों की संपदा है। विभिन्‍न धर्मों के अपने-अपने धर्मशास्त्र हैं। शास्त्रों में विभिन्‍न बातें भी हमें उपलब्ध होती हैं। धर्मशास्त्र क्यों बने हैं? अनेक बातें हो सकती हैं। एक बात बताई है कि शास्त्रों का निर्माण शांति के लिए किया गया है। आदमी शास्त्रों की बात सुन अच्छे रास्तों पर चलें, उपशम को जीवन में आत्मसात करें। शास्त्र में दो चीजें होती हैंशासन भी और त्राण भी। शास्त्रों के द्वारा शासन विधि-विधान के अनुरूप किया जाता है। शास्त्रों की बातें जीवन में उतार लें तो पापों से त्राण हो सकता है। संविधान के अनुसार राष्ट्र का शासन चलता है, वह भी एक शास्त्र ही है। जिस व्यक्‍ति का मन शांति-संयम में रहता है, वह आदमी सर्व शास्त्रज्ञ हो जाता है। दुनिया में इतने शास्त्र हैं कि एक आदमी अपने जीवन में अक्षरस: पढ़ना शुरू करे तो सारे ग्रंथों को पढ़ पाना मुश्किल काम है। कवि ने कहा है कि शास्त्रों का पार नहीं है, काल सीमित है, विघ्न-बाधाएँ भी आती रहती हैं, पर जो सारभूत बातें शास्त्रों की है, उनकी उपासना कर लो। जैसे हंस दूध ग्रहण कर लेता है, पानी को छोड़ देता है। भारत में संत-ॠषि भी मिलते हैं। पंथ संपदा भी भारत में है। ग्रंथ ज्ञान बढ़ाने वाले, संत सद्बुद्धि देने वाले निमित्त भूत बनें। पंथ संपदा से पथ दर्शन मिलता रहे तो आदमी त्राण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। हमें इस जीवन में ही नहीं आगे भी शांति मिलती रहे। उस पर भी ध्यान दें। आगे तो अनंत काल है। पापों से बचने का प्रयास करने से आत्मा पवित्र रहती है, और शांति भी मिलती है। अहिंसा परम धर्म है और एक नीति का तत्त्व भी है। वह चाहे विदेश नीति, राष्ट्र नीति, राजनीति या समाज नीति हो। साधु और श्रावक के जीवन में अहिंसा का महत्त्व समझाया। भोजन में हिंसा का अल्पीकरण हो। संपति में संप का बंटवारा न हो। अर्थ के अर्जन में नैतिकता रहे। दुकानदारी में ईमानदारी का निवास हो। पैसा तनाव का कारण न बने। मन में शांति रहे। गृहस्थों के जीवन में धर्म से अनुप्राणित व्यवहार रहे, यह काम्य है। एक सप्ताह पहले दिल्ली में आना हुआ था। धर्म की चेतना का विकास हो इस द‍ृष्टि से आगे बढ़े। साध्वी कंचनकुमारी जी की सहवर्तिनी साध्वियों ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि कंचनकुमारी जी का काम सिद्ध हो गया। स्वागत समारोह कार्यक्रम में तेरापंथ महिला मंडल, दिल्ली ने गीत का संगान करने के पश्‍चात लगभग 600 सदस्याओं ने शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री जी के स्वास्थ्य के 10 तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। अहिंसा यात्रा समारोह समिति के अध्यक्ष महेंद्र नाहटा, के0एल0 जैन पटावरी, राकेश बोथरा, महासभा के उपाध्यक्ष संजय खटेड़, सुखराज सेठया, विकास परिषद के संयोजक मांगीलाल सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्‍ति दी। दिल्ली तेरापंथ समाज द्वारा गीत का संगान किया गया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भक्‍तामर स्तोत्र का पाठ किया।संसारपक्ष में दिल्ली से संबद्ध मुनि पार्श्‍वकुमारजी तथा मुनि नमन कुमार जी ने अपने आराध्य के श्रीचरणों में अपनी आस्थासिक्‍त अभिव्यक्‍ति दी। कार्यक्रम में उपस्थित पश्‍चिम दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा ने कहा कि मैं दिल्ली की जनता की ओर से राष्ट्रीय संत आचार्यश्री महाश्रमण जी का हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूँ। आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रहा हूँ। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्‍ति रूपी आपका आशीर्वाद पूरी दुनिया का कल्याण करने वाला है। आपकी कृपा से ही देश चल रहा है। आपकी कृपा हम सभी पर सदैव बनी रहे। साउथ दिल्ली के मेयर मुकेश सूर्यान ने कहा कि युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी के चरणों में वंदन करते हुए आपश्री का अपने क्षेत्र में हार्दिक स्वागत करता हूँ। हम आपके आभारी हैं जो आपने अपने चरणरज से दक्षिण दिल्ली को पावन बनाया है। आपका यहाँ विराजने मात्र से ही हम सभी के जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार हो रहा है। आपका दर्शन कर हमारा जीवन धन्य हो गया। आर0एस0एस0 के दक्षिण दिल्ली संघ चालक दीपक शुक्ला ने कहा कि श्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमण जी का मैं हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह मेरा सौभाग्य है जो मुझे आपश्री के दर्शन हुए। समाज के कल्याण के लिए आप द्वारा किया जा रहा महाश्रम महनीय है, वंदनीय है। आपकी कृपा सदैव बनी रहे, हमें आपकी सेवा का सुअवसर प्राप्त होता रहे। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।