ये चरण नहीं रुक पाएँगे

ये चरण नहीं रुक पाएँगे

साध्वी स्वस्तिक प्रभा

6 मार्च सन् 2022, सायंकाल लगभग 5:55 पर महान गुरु परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी से आध्यात्मिक मिलन कर अपनी गुरुता से एक गौरवपूर्ण इतिहास का सृजन कर दिया।
ज्ञातव्य है कि 13 फरवरी को थान सुथान, बीदासर से सा0प्र0 जी स्वास्थ्य लाभ की द‍ृष्टि से दिल्ली के लिए प्रस्थित हुई थीं। 15 फरवरी से डॉ0 राजेश कुंडलिया के निर्देशन में श्रीबालाजी एक्शन हॉस्पिटल में आपकी चिकित्सीय जाँचें एवं उपचार प्रारंभ हुआ। 27 फरवरी को आचार्यप्रवर के संदेश से आपको स्वयं की असाध्य बीमारी के बारे में जानकारी मिली। तत्पश्‍चात डॉ0 राजेश ने भी स्पष्टता और विस्तार के साथ शारीरिक स्थिति से अवगत करवा दिया। इस वार्तालाप के दौरान डॉ0 साहब ने सा0प्र0 से पूछाअब आपकी क्या इच्छा है। सा0प्र0 ने कहा कि मेरी तो एक ही भावना है कि गुरुदेव के दर्शन हो जाएँ।
इस शेष अभिलाषा को अशेष करने के लिए पिछले 8 दिनों से तूफानी वेग से गतिमान चरणों के साथ फाल्गुन शुक्ला चतुर्थी को लगभग 45:5 किमी का ऐतिहासिक विहार संपन्‍न कर प0पू0 आ0प्र0 ने शासनमाता को कृतकाम, कृतपुण्य बना दिया।
हॉस्पिटल की चतुर्थ मंजिल पर अवस्थित सा0प्र0 के कक्ष में पधारते ही, तेरापंथ अधिशास्ता ने तत्परता से भूमि पर बैठकर जिस प्रकार विनतभाव से तीन बार शासनमाता को वंदना की, उसको देखकर कक्ष में उपस्थित सभी व्यक्‍ति गद्गद् हो गए, आश्‍चर्यचकित रह गए।
आ0प्र0 के निर्देशानुसार सा0प्र0 की लिपिबद्ध भावनाओं को मुनि कुमारश्रमण जी ने उच्चारित किया, जो इस प्रकार है
परमपावन, परमपूज्य परमाराध्य आचार्यवर के श्रीचरणों में सविनय निवेदनएक गुरु का अपने शिष्य के प्रति कितना-कितना वत्सलभाव होता है। अस्वस्थता के संवाद सुनते ही एकदम से आचार्यप्रवर ने दिल्ली जल्दी पहुँचने की मानसिकता बना ली। आचार्यवर ने आहार, विश्राम, भूख, नींद सब गौण कर दी। एक दिन में तीन-तीन, चार-चार बार विहार करना इतिहास की दुर्लभ घटना है। लगातार एक सप्ताह तक इतने लंबे विहार कर आपने मेरे पर भारी कृपा की है और तेरापंथ धर्मसंघ में नया इतिहास बनाया है। प्रभो! आपका यह महाश्रम मेरे लिए कल्याणकारी बने, मेरी आत्मा का उद्धार करने में परम उपकारी बने।
शेष अशेष गुरु चरणों में समर्पण---आपकी शरण है, आपका आधार है---।
गुरुदेव के कालजयी पुरुषार्थ के प्रति मंगलकामना करती हूँकवि की इन पंक्‍तियों के साथ

ये चरण नहीं रुक पाएँगे,
पल के सागर चुक जाएँगे,
युग के हिमगिरि गल जाएँगे,
रवि-शशि के रथ रुक जाएँगे।
ये चरण नहीं रुक पाएँगे---॥
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
सा0प्र0 ने पुन: शाब्दिक निवेदन कियागुरुदेव! आपने मेरे लिए कितनी मेहनत करवाई है। न आहार का पता न पानी का।
फिर आपने साध्वियों से वंदना-खमतखामणा करने के लिए कहा। गुरुदेव ने ‘वंदे भगवन्!’ बोलकर शीघ्रता से खमतखामणा करने का निर्देश दिया। सूर्यास्त काफी करीब था, आ0प्र0 को लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर डालमचंदजी बैद के घर रात्रि प्रवास हेतु भी पधारना था। साध्वियों के निवेदन पर आ0प्र0 ने आहार के लिए मना फरमा दिया। सा0प्र0 ने निवेदन कियामेरी प्रसन्‍नता के लिए कुछ पेय पदार्थ ग्रहण करवाएँ। सा0प्र0 की मनुहार पर आ0प्र0 ने वहीं कुछ पेय ग्रहण कर त्याग करवा दिया।
तदुपरांत आ0प्र0 और सा0प्र0 का संक्षिप्त वार्तालाप चला
सा0प्र0गुरुदेव! आप महान हैं। इतनी तपस्या करवाई है। जैसे गुरुदेव तुलसी सुखलाल जी स्वामी के खातिर पधारे थे, वैसे ही आप मेरी खातिर पधारे हैं।
आ0प्र0 ने पुन: नीचे बैठकर तीन बार वंदना की।
आ0प्र0आपको तकलीफ न हो तो छोटा सा मंगलपाठ फरमाएँ।
सा0प्र0मंगलपाठ तो आप मुझे फरमाएँ।
आ0प्र0मैंने तो आपको आरोग्ग बोहिलाभं---सुना दिया।
सा0प्र0 ने मंगलपाठ सुनाया। आ0प्र0 ने वापस पधारने से पहले पुन: बैठकर वंदना की।
सा0प्र0गुरुदेव! मैं बहुत आशातना कर रही हूँ। आप ऐसा न करवाएँ।

(क्रमश:)