शाश्‍वत की साधना में स्वयं का नियोजन करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शाश्‍वत की साधना में स्वयं का नियोजन करें : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म साधना केंद्र, महरौली,
9 मार्च, 2022
अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन शासन में आगम वाङ्मय महत्त्वपूर्ण साहित्य है। साहित्य का, ग्रंथों का, पुस्तकों का ज्ञान प्रदान करने में बड़ा योगदान होता है, वे माध्यम बनती है।
अनेक प्रकार का साहित्य दुनिया में है, विभिन्‍न विषयों पर लिखा हुआ साहित्य उपलब्ध होता है। धर्म के संदर्भ में भी साहित्य मिलता है। जैन धर्म के संदर्भ में भी साहित्य मिलता है। हमारी परंपरा में बत्तीस आगम बहुत सम्मानित साहित्य है। कई-कई आगम हमारे साधु-साध्वियाँ कंठस्थ भी करते हैं। उन बत्तीस आगमों में एक आगम हैउत्तराध्ययन। उसके 36 अध्ययन हैं। इस आगम में तत्त्व ज्ञान, व्यवहार प्रशिक्षण भी प्राप्त होता है। साधु के जीवन में 22 परिषह बताए गए हैं। अध्यात्म की साधना का सुंदर पथदर्शन इस आगम में उपलब्ध होता है। संयम, प्रश्‍नोत्तर का, जागरूक रहने का सुंदर विवरण दिया
गया है। गौतम के नाम से संदेश है, वो हम सबके लिए मान लें कि समयं गोयम मा पमायऐ। गौतम समय मात्र प्रमाद मत करो, उसके कारण दिए गए हैं। वृक्ष का पका हुआ पत्ता रात्रियाँ बीतने पर गिर जाता है, वैसे ही मनुष्यों का जीवन है, वह भी एक दिन अवसान को प्राप्त हो जाता है, इसलिए गौतम प्रमाद मत करो। जागरूक रहो, पापों से बचो। यह हमारे जीवन की अनित्यता है।
कोई प्राणी हो या देव सबका जीवन अनित्य होता है। शाश्‍वत सिद्ध भगवान है। वे जीवन मुक्‍त आत्मा है। वे एक जगह ही स्थित हो जाते हैं। यह शरीर अनित्य है। प्रेक्षाध्यान में अनित्य की अनुप्रेक्षा कराई जाती है। कोई प्राणी स्थायी नहीं है, सारे संसारी प्राणी राही हैं। आगे का ध्यान दें, आगे क्या होगा? यहाँ सुख-सुविधा है, यानी उसके पूर्व का पुण्य किया हुआ है। उसे भोग रहे हैं।
प्रश्‍न का उत्तर दिया गया कि इनकी पुरानी थकान है। पिछले भव में साधु थे, तप किया था, पहले पुण्य किया था, उसका फल है। आगे के लिए कुछ चिंतन करें। पुण्य-पाप से मुक्‍त हो मोक्ष चाहिए। पुण्य के उदयकाल में आदमी जागरूकता रखे, साधना-तपस्या करे। पुण्य आगे के पाप का निमित्त न बन जाए। पुण्य में आसक्‍त न बनें। पुण्य का दुरुपयोग न करें। अच्छा काम करे। आत्मा कि निर्मलता का ध्यान करें। शाश्‍वत की साधना में अपने को नियोजित करने का ध्यान रखना चाहिए। साध्वीप्रमुखाश्रीजी विराजे हुए हैं। उन्हें स्वास्थ्य एवं चित्त समाधि के लिए मंत्र-जाप करवाया है एवं मंगलकामना प्रेषित की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि पूज्यप्रवर साधन नहीं साधना के संकल्प बल पर यात्रा करते हैं।