धर्म की शरण में पूर्ण त्राण मिल सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म की शरण में पूर्ण त्राण मिल सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म साधना केंद्र, महरौली,
10 मार्च, 2022
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि निर्बल आदमी त्राण और शरण की अपेक्षा रखता है। निर्बल कौन है और सबल कौन है, यह सापेक्ष बात है। किसी स्थिति में आदमी अपने आपको सबल महसूस करता है, तो किसी स्थिति में वह अबल और निर्बल अपने आपको अनुभूत करता है। शरण उसको चाहिए जो किसी संदर्भ में असबल हैनिर्बल है। जो पूर्णतया सबल है, उसको किसी की शरण क्यों चाहिए। त्राण या रक्षा का स्थान मिल जाए यह आदमी चाहता है। शास्त्रकार ने एक ऊँची बात बताई है और कहा है कि वे लोग त्राण और शरण देने वाले नहीं हो सकेंगे जो तुम्हारे स्वजन, प्रियजन, मित्रजन, बंधुजन, आत्मीयजन हैं। तुम भी उनको त्राण-शरण देने वाले नहीं बन पाओगे। यह निश्‍चयनय की बात है, यह प्रतीत हो रहा है।
व्यवहार में पारिवारिकजनों से त्राण-शरण भी मिलती है। सरकार भी त्राण-शरण देती है, जैसे अभी जो यूक्रेन में संकट में फँसे हुए हैं, उनको सरकार सहयोग दे रही है। कितनी संस्थाएँ भी आपत्ति में सहयोग करती हैं। शरणार्थियों को रखा जाता है।
नय के द्वारा निश्‍चय और व्यवहार में संगति बिठाई जा सकती है। अनेकांत की द‍ृष्टि से हर बात सापेक्ष हो सकती है। कभी-कभी बीमारी के समय सब संसाधन उपलब्ध होते हुए भी कोई त्राण नहीं दे सकता है। इलाज नहीं हो पाता है। यह अत्राणता की बात है। मृत्यु के समय भी कोई त्राण नहीं दे सकता है। एक परम त्राण देने वाला धर्म-अध्यात्म है। ये ऐसा त्राण देता है, फिर कोई खतरा नहीं मृत्यु नहीं। मंगलपाठ सुनते हैं, उसमें भी यही कहा गया हैमैं अरहंतो, सिद्धों, साधुओं और केवली प्रज्ञप्त धर्म की शरण जाता हूँ। सबसे बड़ी शरण धर्म है। यह शरण ले लें तो पूर्ण त्राण मिल सकता है। मोक्ष का स्थान मिलने के बाद कोई खतरा नहीं। अनाथी मुनि के प्रसंग से समझाया। मृत्यु से किसी को भी कोई बचा नहीं सकता। कभी-कभी पूर्णतया रोगमुक्‍त बना देना डॉक्टर की भी सीमा की बात नहीं रहती है। तीर्थंकरों को भी एक बार तो मृत्यु आती है। त्राण पाने का एकमात्र कारण हैधर्म-अध्यात्म। धर्म की साधना करें। जीवन है तो एक बार तो मृत्यु आएगी ही पर बाद में मोक्ष का स्थान मिल जाए तो फिर न जन्म है, न मृत्यु। न वाणी है, न शरीर, न मन है, न इंद्रियाँ, न राग है, न द्वेष, न संकलेष है, न आवेश, न बीमारी का प्रवेश। परम आनंद का स्थान दिराने वाला धर्म है। मोक्ष धन से नहीं, धर्म से मिलता है। हम उस परम त्राता की शरण में रहें, यह काम्य है।
पूज्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्री जी के स्वास्थ्य की साता-समाधि के लिए मंत्र-जाप करवाया। दिल्ली से संबद्ध साध्वीवृंद ने गीत की प्रस्तुति दी। मुनि अमन कुमार जी ने भी अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।