व्यक्‍ति को अपनी आत्मा की ओर उन्मुख होना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्‍ति को अपनी आत्मा की ओर उन्मुख होना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म साधना केंद्र, महरौली,
12 मार्च, 2022
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आत्मा स्थायी, शाश्‍वत तत्त्व है। शरीर अस्थायी व अशाश्‍वत है। जैन दर्शन नित्यानित्यवादी है। उसके अनुसार हर पदार्थ अपने आप में नित्य भी है तो हर पदार्थ अपने आप में अनित्य भी है। ध्रौव्य या द्रव्य की अपेक्षा हर पदार्थ नित्य है तो पर्याय की अपेक्षा हर पदार्थ अनित्य भी होता है।
बताया गया है कि दीये से लेकर आकाश तक हर पदार्थ एक समान स्वभाव वाले नित्य-अनित्य हैं। ध्रौव्य और पर्याय हर पदार्थ में होता है। पर्याय रहित द्रव्य नहीं होता और द्रव्य रहित पर्याय नहीं होता। कहीं नित्य धर्म की और कहीं अनित्य धर्म की प्रधानता सामने आ जाती है। कहीं गौणता भी सामने आ जाती है। शरीर का पर्याय स्वरूप अनित्य है। परमाणु तो हमेशा रहेगा। शरीर रूप में परमाणुओं का जो पिंड है, वह आश्‍चर्य है। हर आत्मा में असंख्य प्रदेश होते हैं। पर आत्मा अमूर्त्त है। अमूर्त्त भी पदार्थ हो सकता है। दिखने वाला तो पदार्थ है ही पर आँखों से न दिखने वाला भी पदार्थ दुनिया में होता है। आत्मा असंख्य प्रदेशों वाली है पर कोई ऐसा शस्त्र दुनिया में नहीं कि असंख्य प्रदेशों में पिंड में से पाँच-सात प्रदेशों को काटकर अलग कर दे। असंख्य-असंख्य ही रहेंगे, उनमें कभी विच्छेद नहीं होगा। आत्मा अछेद‍्य, अदाह्य अमूर्त है। समुद्र भी आत्मा को भिगो नहीं सकता। अगला जन्म होता है, तब वर्तमान शरीर पीछे रह जाता है, आत्मा आगे चली जाती है। इसलिए आत्मा स्थायी है। अध्यात्म के जगत में आत्मा ही प्रमुख तत्त्व है। मैं आत्मा हूँ, मैं शरीर नहीं हूँ। साधक का एक आत्मा की ओर मुख रहे। मैं अकेला हूँ। अकेला आया हूँ, अकेला जाना है। व्यवहार में अनेक भी हैं, साथ में है, पर निश्‍चय नय में आत्मा अकेली है। द्रव्य आत्मा एक है, भाव आत्माएँ अनेक हैं। हम पाप कर्मों से बचें। स्वयं के किए कर्म, स्वयं को ही भोगने पड़ेंगे। यह एक प्रसंग से समझाया कि कर्मों का कर्ता ही भोक्‍ता होता है। अपने किए हुए कर्मों से सुख-दु:ख मिलता है। पूज्यप्रवर ने चेतन चिदानंद चरणों में गीत के एक पद्य का सुमधुर संगान किया। जन्म लेना, मरना, कर्म का फल भोगना अकेले को ही है। हम एकत्वपन की बात को मानकर पाप कर्मों से बचें, ताकि बुरे फल न भोगने पड़ें। पूज्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्री जी के स्वास्थ्य की साता, समाधि हेतु मंत्र-जप का प्रयोग करवाया। जैविभा के कार्यकर्ताओं को मंगलपाठ व आशीर्वचन फरमाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभा के मंत्री जोधराज बैद, डालमचंद बैद, महिला मंडल मंत्री यशा़ बोथरा, जैविभा से विकास बोथरा, टीपीएफ अध्यक्ष डॉ0 कांती सामसुखा, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष शांतिलाल पटावरी, कल्पना सेठिया, के0सी0 जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। पूज्यप्रवर ने दिल्लीवासियों को आशीर्वचन फरमाया।