अपनी संतान को संपत्ति के साथ संस्कारों की संपदा भी दें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अपनी संतान को संपत्ति के साथ संस्कारों की संपदा भी दें : आचार्यश्री महाश्रमण

चांदगोठी, 1 मार्च, 2022
अटूट संकल्प के धनी महामहिम आचार्यश्री महाश्रमण जी 16 किलोमीटर का विहार कर चांदगोठी स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में दो तत्त्वों का योग हैएक है आत्मा और दूसरा तत्त्व हैशरीर। आत्मा और शरीर इनका समिश्रण होने से जीवन होता है। आत्मा और शरीर इन दोनों में बड़ा अंतर है। आत्मा अपने आप में सचेतन है। जबकि शरीर अपने आप में अचेतन-निर्जीव होता है। आत्मा स्थायी तत्त्व है, शरीर अस्थायी है। शरीर का नाश हो जाता है, परंतु आत्मा शाश्‍वत है, शरीर अशाश्‍वत है। शरीर का छेदन-भेदन हो सकता है, पर आत्मा का नहीं। आत्मा में असंख्य परमाणु हैं, वे कभी अलग नहीं होते हैं। मृत्यु के बाद आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। शरीर पड़ा रहता है, आत्मा और कहीं चली जाती है। यह एक भेद विज्ञान का सिद्धांत है कि आत्मा और शरीर का अस्तित्व अलग-अलग है। यह अध्यात्म का सिद्धांत है कि आत्मा और शरीर एक नहीं, अलग-अलग हैं। आदमी लोभ करता है, पर मेरा है, क्या? ये शरीर भी मेरा नहीं, यह भी छूटने वाला है। भौतिक पदार्थ साथ जाने वाला नहीं है। मेरे साथ क्या जाएगा, उस पर मैं ध्यान दूँ। कर्म साथ मे जाते हैं। जब आत्मा मोक्ष में जाती है, तो कर्म भी साथ नहीं रहते। संसारी आत्मा के पुण्य-पाप साथ में जाते हैं। संवर-निर्जरा का फल आत्म-शुद्धि रूपी धर्म साथ में जाता है। साथ जाने वाले ऊपर ध्यान दें। कर्म का सिद्धांत है कि कर्म करने वाला ही कर्म को भोगता है। स्कूल के बच्चों को भी ये जानकारी दी जाए। उनके जीवन में आध्यात्मिकता, नैतिकता, सद्भावना और ईमानदारी का विकास हो। विद्या संस्थान ज्ञान के संस्थान हैं। यहाँ ज्ञान का आदान-प्रदान और अध्ययन होता है। दुनिया में ज्ञान बहुत पवित्र तत्त्व होता है। अपनी संतानों को संपत्ति के साथ संस्कारों की संपदा भी दें, धर्म भी साथ में देने का प्रयास करें। धर्म जीवन में है, तो यह जीवन भी अच्छा होता है, और आगे के लिए भी हमारी आत्मा के हितावह स्थिति का निर्माण हो सकता है। जीवन-विज्ञान, प्रेक्षाध्यान सभी लोगों के लिए उपयोगी है। जैन बनें न बनें गुडमैन अवश्य बनें। आस्तिक विचारधारा में आध्यात्मिकता को और नास्तिकता में भौतिकता को प्राधान्य प्राप्त हो जाता है। अध्यात्मवाद में शरीर अलग, आत्मा अलग है। आत्मा का कल्याण कैसे हो, आदमी वैसा प्रयास करे। अणुव्रत आध्यात्मिकता की ही शाखा-प्रशाखा है। अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों को समझाया एवं स्वीकार करवाए। स्कूल की ओर से प्रििंसपल निशा चौधरी ने पूज्यप्रवर का स्वागत किया।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।