स्वयं का स्वयं पर अनुशासन श्रेष्ठ होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

स्वयं का स्वयं पर अनुशासन श्रेष्ठ होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

जावद

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: विहार कर जावद पधारे। जावद तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास की द‍ृष्टि से भी जुड़ा है। महातपस्वी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि एक शब्द हैआत्मानुशासन यानी आत्मा पर अनुशासन।
उत्तराध्ययन आगम में कहा गया है कि अपनी आत्मा का दमन करना जिसे हम आत्मानुशासन मानें। स्वयं, स्वय पर अनुशासन कर लेना, यह श्रेष्ठ है। यह काम न पड़े कि दूसरों को हम पर अनुशासन करना पड़े। जब आदमी स्वयं पर अनुशासन नहीं कर पाता है तो फिर दूसरों को कठोर अनुशासन करना पड़ सकता है।
प्रश्‍न है स्वयं पर अनुशासन किस रूप में किया जाए। आत्मानुशासन करने के लिए हमें चार अनुशासनों पर ध्यान रखने या देने की अपेक्षा हैं पहला हैकायानुशसन, दूसरा वचनोनुशासन, तीसरा मनोनुशासन और चौथा हैइंद्रियानुशासन। ये चार प्रकर के अनुशासन सिद्ध हो जाते हैं, तो मानना चाहिए कि आत्मानुशासन हो गया।
एक घटना प्रसंग से समझाया कि जब हमारे गाँव, मोहल्ले और परिवार के लोग वश में नहीं हैं, स्वयं का मन और जबान कंट्रोल में नहीं है, तब देवता हमारे वश में कैसे हो सकते हैं? पहले अपने आपको वश में करो फिर देव शक्‍ति को वश में करने की बात सोचो।
आदमी दूसरों को वश मे ंकरने की बात सोचता है, तो पहले खुद को वश में करने की बात भी सोचे। गुरुदेव तुलसी ने फरमायानिज पर शासन, फिर अनुशासन। आदमी दूसरों को अपने अनुशासन में रखना चाहता है, पर खुद दूसरों के अनुशासन में कितना रह सकता है, यह सोचने की बात है।
जो खुद अच्छा शिष्य नहीं बन सकता है, वो कितना अच्छा गुरु बन पाएगा, सोचने की बात है। अच्छा शिष्य होता है, वो अच्छा गुरु बनने के लायक बन सकता है। जो संत-गुरु के सामने ऊँचा बैठता है, वो आदमी नीचा हो जाता है।
आचार्य भिक्षु के समय मुनि खेतसी जी के जीवन का प्रसंग समझाया। आचार्यश्री भारमल जी ने पीछे की व्यवस्था के लिए दो नाम लिख दिए थेखेतसी और रायचंदजी। मुनि खेतसी जी बड़े विनम्र प्रकृति के थे। उनको सतजुगी भी कहा गया है। वे अच्छे शिष्य रहे।
तेरापंथ के आसन पर नाम तो एक ही चाहिए। खेतसी जी स्वामी का नाम हटा दिया गया। पर उनके मन पर किंचित मात्र कोई अन्यथा भाव नहीं। घोड़ी पर बेटा बैठता है, बाप तो नीचे ही रहता है। पर बाप को खुशी बहुत होती है कि मेरे बेटे की शादी हो रही है। वैसी खुशी ही मुझे होगी कि मेरा भाणजा ऊँचा बैठ रहा है। यह निस्पृहता की बात है।
आदमी उम्र की अपेक्षा से भी बड़ा हो सकता है। साधु समुदाय में संयम-पर्याय की अपेक्षा से बड़ा हो सकता है। पद की अपेक्षा से भी आदमी बड़ा हो सकता है ज्ञान आदि गुणों से भी आदमी बड़ा हो सकता है। पद के सामने उम्र छोटी बात हो जाती है।
हमें दूसरों पर अनुशासन करने का मौका मिले, न मिले पर खुद पर तो अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। जो स्वयं पर अनुशासन करता है, वो यहाँ और आगे सुखी रह सकता है।
आज जावद में आना हुआ है। जावद के हमारे मुनि कुंदनमल जी स्वामी, मुनि चौथमल जी स्वामी, इनका अपना नाम है, हमारे धर्मसंघ में। दोनों का सेवा का काम रहा है। जावद की जनता में खूब धार्मिक भावना रहे। अच्छे संस्कार बने रहें, मंगलकामना।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना
पूज्यप्रवर के स्वागत एवं अभिवंदना में तेरापंथ महिला मंडल-गीत, स्थानीय सभाध्यक्ष सुनील बीकानेरिया, नरेंद्र डांगी (साधुमार्गी जैन संघ महामंत्री), सकल ब्राह्मण समाज से जगदीश शर्मा, डीएल अहिंसा, प्रदीप चौपड़ा, प्रतिभा कोठारी, वैश्य समाज की ओर से विजय मुछाल, अग्रवाल समज से सुधीर अग्रवाल, जैन सोशियल ग्रुप से विरेंद्र चौधरी, गायत्री परिवार से कमल ऐरन ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।