साध्वी कमलप्रभा जी के प्रति - उपकार मैं कभी भूल नहीं सकता

साध्वी कमलप्रभा जी के प्रति - उपकार मैं कभी भूल नहीं सकता

9 साल का अबोध बालक। अपने घर में विराजमान साध्वियों को निहारता रहा। सुबह मंगलपाठ सुनकर स्कूल जाना फिर स्कूल से आते ही उनकी सेवा उपासना, दोपहर में फिर सेवा, रात्रि में उनका प्रवचन श्रवण करना आदि दिनचर्या के अभिन्‍न अंग बन गए। उनमें कुछ तो ऐसा था जो मुझ जैसे अबोध बालक को अपनी आभा में शांति का अनुभूत कराता। उस समय मुझे केवल नमस्कार महामंत्र कंठस्थ था। उनके सान्‍निध्य में अन्य चीजों का कंठस्थीकरण करना, महाप्राण ध्वनि आदि साधना के बीज प्रशिक्षण देते-देते कब उन्होंने मुझे संन्यास की ओर अग्रसर कर दिया कुछ पता ही नहीं चला। 27-28 वर्ष पूर्व की ये सुखद स्मृतियाँ आज पुन: तरोताजा हो रही हैं, क्योंकि इन स्मृतियों की मुख्य किरदार आज इस संसार से ओझल हो गई। अपने नाम के अनुरूप कमल की भाँति निर्लिप्त रहकर सौम्य आभा बिखेरने वाली साध्वी कमलप्रभा जी, लाडनूं आज सदेह भले द‍ृश्यमान नहीं हैं, किंतु उनका महान उपकार मैं कभी भूल नहीं सकता, क्योंकि उन्होंने मुझे संसार समुद्र से तैरने का पथ दिखाया। मेरी दीक्षा के बाद भी उनकी सत्प्रेरणा मुझे प्राप्त होती रहती कि संघ-संघपति के प्रति सदा सर्वात्मना समर्पित रहे। आपको सौभाग्य से गुरुकुलवास में रहने का दुर्लभ अवसर मिला है, इसका अच्छा उपयोग करें। गुरु इंगितानुसार ही सारा कार्य करें, क्योंकि गुरुद‍ृष्टि ही हमारी सृष्टि है।
संयोग से उनकी सहवर्ती साध्वियों में से दो साध्वियाँ मेरी संसारपक्षीय मौसी हैंसाध्वी ललितकला जी एवं साध्वी योगप्रभा जी। मैंने अनुभव किया कि शासनश्री कमलप्रभा जी के सिंघाड़े में परस्पर अच्छा आत्मीय भाव था। सहवर्ती साध्वियों को उन्होंने साधना, व्यक्‍तित्व विकास की दिशा में आगे बढ़ाया। शिक्षण-प्रशिक्षण दिया। सहवर्ती साध्वियों ने भी निष्ठा के साथ उनकी मनोयोग से सेवा की, उनकी चित्त समाधि में योगभूत बनी रही।
काश! भीलवाड़ा में वे गुरुदर्शन कर पाती और मैं उनके दर्शन कर पाता लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था। उनका प्रयाण एक शांत, सौम्य, आभामयी, धर्मसंघ की एक अच्छी साध्वी की क्षति है, ऐसा मेरा मानना है। मैं यही मंगलकामना करता हूँ कि उनकी आत्मा उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर गति करती हुई परम मंजिल को प्राप्त करे और मैं भी उनके भी शीघ्र उनके उपकारों का स्मरण करता हुआ उनके द्वारा दिखाए हुए संयमपथ पर बढ़ता हुआ उसी मंजिल को प्राप्त करूँ।