अपने मत की प्रशंसा करने वाले कहते हैं- अपने-अपने सांप्रदायिक अनुष्ठान में ही सिद्धि होती है, दूसरे प्रकार से नहीं होती। - आचार्य श्री भिक्षु
अपने मत की प्रशंसा करने वाले कहते हैं- अपने-अपने सांप्रदायिक अनुष्ठान में ही सिद्धि होती है, दूसरे प्रकार से नहीं होती।