सभी लोगों में धार्मिक भावना, सद्भावना और नैतिकता-नशामुक्‍ति के संस्कार रहें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सभी लोगों में धार्मिक भावना, सद्भावना और नैतिकता-नशामुक्‍ति के संस्कार रहें : आचार्यश्री महाश्रमण

चाड़वास, 18 फरवरी, 2022
वीतरागता की प्रतिमूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी वीरभूमि बीदासर में ‘वृहद् मर्यादा महोत्सव सहित 15 दिवसीय पावन प्रवास संपन्‍न कर ज्यों ही विहार किया बीदासरवासी अपने आराध्य को विदा करने के साथ ही चल पड़े। आचार्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ 12 किलोमीटर विहार कर चाड़वास के तेरापंथ भवन पधारे।
वीतराग तुल्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी पंचेन्द्रिय प्राणी होता है। पंचेन्द्रिय प्राणी वही होता है, जिसके पास श्रवण का साधन होता है। श्रोतेन्द्रिय होती है। श्रवण शक्‍ति का मिलना इस बात का भी द्योतक है, कि शेष चार इंद्रियाँ तो उसके हैं, ही। आदमी बुरा बोले नहीं, बुरा देख नहीं, बुरा सुने नहीं और बुरा सोचे नहीं। दूसरों की निंदा व स्वयं की प्रशंसा सुनने में भी रस नहीं लेना चाहिए। शास्त्रकार ने कहा है कि आदमी सुनकर कल्याण को जान लेता है। सुनकर आदमी पाप-बुरी चीज को भी जान लेता है। जान लेने से ज्ञान हो जाता है कि अच्छा क्या है? बुरा क्या है? दोनों को जानकर आदमी जो अच्छा है, उसका अपने जीवन में आचरण करे। आँखों से पढ़कर भी ज्ञान किया जा सकता है। कितने ग्रंथ आज उपलब्ध हैं। पर जब ग्रंथ नहीं थे तो गुरु से सुनकर ज्ञान ग्रहण किया जाता था। आँख भी एक सशक्‍त माध्यम हैज्ञान प्राप्त करने का। वर्तमान में कान और आँख दोनों ज्ञान प्राप्ति के ोत हैं। सुनना ज्यादा चाहिए, बोलना कम चाहिए। कान दो मिले हैं मुँह एक ही मिला है। सुनने में भी धैर्य अपेक्षित होता है। आदमी सुनकर इतनी बातें जान लेता है, पर हर बात को मुँह से नहीं निकालना चाहिए। आदमी का सारा कानों से सुना हुआ, आँखों से देखा हुआ, वापस कहने के लायक नहीं होता है। कहने की बात कही जा सकती है, बाकी बातों को भीतर में पचाकर रखना चाहिए। यह आचार्य भिक्षु के एक द‍ृष्टांत से समझाया कि हर बात को बताना उचित या अपेक्षित नहीं हो सकता है। अच्छा बोलने वाला हो तो, अच्छा सुनने को मिले। हम लोग आज वापस चाड़वास आए हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने तो चाड़वास में मर्यादा महोत्सव भी किया था। चाड़वास छोटा गाँव होते हुए भी श्रद्धा का अच्छा क्षेत्र है। मुनि सोहनलाल जी तो चाड़वास से थे ही, मैं उनके पास रहा हुआ हूँ। बोलने वाले में भाषण की शक्‍ति हो, सुनने वाले में श्रवण की शक्‍ति हो तब कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकता है। सुनने वाला एकाग्र और जागरूक हो तो बात पकड़ी जा सकती है। अच्छी बात सुनकर उसे आचरण में लें आएँ तो और लाभ हो सकता है, तत्त्व-बोध का माध्यम श्रुति होती है। हेय-उपादेय का बोध हो सकता है। आगे बढ़ते-बढ़ते निर्वाण-मोक्ष को प्राप्त हो सकता है। चाड़वास तपोभूमि है। कितनी चारित्रात्माओं का प्रवास हुआ है। चाड़वास की जनता जैन-अजैन जो भी है, सभी लोगों में धार्मिक भावना, सद्भावना और नैतिकता-नशामुक्‍ति के संस्कार रहें। पूज्यप्रवर ने छापर चतुर्मास के अंतर्गत एक दिन का प्रवास चाड़वास के लिए फरमाया। कार्यक्रम में तेरापंथी सभा, चाड़वास के अध्यक्ष जुगराज भंडारी, उपाध्यक्ष अशोक दुगड़, महासभा और जैन विश्‍व भारती के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र चोरड़िया, तेयुप के सह-अध्यक्ष विक्रम भंडारी, महिला मंडल की अध्यक्ष कमलेश चोरड़िया, मोनिका चोरड़िया, छत्रसिंह बच्छावत व कल्पना बच्छावत ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्‍ति दी। बादरमल सेठिया, संजय भटेरा, काव्या चोरड़िया, अनिता बैद, तेरापंथ महिला मंडल तथा तेरापंथ कन्या मंडल ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। चाड़वास ग्राम पंचायत सरपंच प्रतिनिधि रामदेव गोदारा ने चाड़वास की जनता की ओर से आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत-अभिनंदन किया। चाड़वासवासियों की पुरजोर प्रार्थना पर आचार्यश्री ने विशेष कृपा करते हुए छापर चतुर्मास के दौरान एक दिन का प्रवास तथा प्रवचन कार्यक्रम चाड़वास में करने की घोषणा की तो चाड़वासवासियों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। पूरा प्रवचन पंडाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा।