संसार के सैकड़ों रत्नों से भी कीमती है संयम रूपी रत्न : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संसार के सैकड़ों रत्नों से भी कीमती है संयम रूपी रत्न : आचार्यश्री महाश्रमण

बीदासर, 13 फरवरी, 2022
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी थोड़े के लिए बहुत को खो देता है, तो वह उसकी असमीचीनता हो जाती है। बुद्धिमत्ता इसमें है कि लाभ थोड़ा-नुकसान ज्यादा वैसा काम नहीं करना। परंतु मोह का ऐसा प्रभाव होता है कि आदमी नुकसान को भी चाहे, अनचाहे स्वीकार कर लेता है। नुकसान भी ज्यादा मात्रा वाला परंतु तात्कालिक रूप में लाभ लगता है, तो उसके लिए आदमी वैसा कार्य भी कर लेता है, जो आगे नुकसान देने वाला होता है। जैसे पैसे के लोभ में आकर ईमानदारी छोड़ देता है। ईमानदारी को पैसे के लिए न छोड़ना बुद्धिमत्ता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि थोड़े लाभ के लिए ज्यादा न खोएँ। धर्म की द‍ृष्टि से, आत्मा की द‍ृष्टि से देखें कि हमसे कोई बड़ा पाप न हो। हम चारित्रात्माओं के लिए ये संयम जीवन संयम रत्न है, वो कभी छूट न जाए। महाव्रत बहुत सुख देने वाले हैं। उनको जो नष्ट कर सुख पाना चाहता है, वो कीमती रत्न खो देता है। ऐसी भूल जीवन में न हो। संसार के सैकड़ों कीमती रत्नों के सामने संयम रत्न बड़ा कीमती है। साधुपन के सामने दूसरे रत्न कुछ नहीं है। संयम रत्न कभी न जाए। जो धृति बल से दुर्बल है, वो थोड़े से सांसारिक सुखों के लिए संयम रत्न खो देता है। एक प्रसंग से समझाया कि हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है। मनुष्य जीवन अपने आपमें बहुत कीमती है। इसको नहीं खोना। चारित्रात्माएँ हैं, संयम रत्न है, वो कितना अमूल्य है। कौआ उड़ाने के लिए चिंतामणी रत्न को फैंक दें, उसे क्या कहें? छोटी-मोटी बात के लिए संयम रूपी रत्न को खो देने वाला दयनीय आदमी है। साधु है और निदान कर ले कि मेरी संयम साधना का फल हो तो मैं आगे के जीवन में चक्रवर्ती या वासुदेव बन जाऊँ। तो कहाँ संयम का फल और कहाँ यह तुच्छ समृद्धि। यह भी थोड़े के लिए बहुत को खोना हो गया। निदान भी चूल है, हो गया तो आलोयणा-प्रतिक्रमण कर लो। आलोयणा नहीं की तो बड़ा नुकसान हो सकता है। श्रावक के भी व्रत-नियम लिए हुए हैं, उनमें दोष लगा दे या पालना छोड़ दे, वो भी एक प्रमाद है। लिए हुए त्याग-नियम न छोड़ें। धर्म की द‍ृष्टि से बड़ा लाभ मिले ऐसा हमारा कार्य होना चाहिए, यह काम्य है। पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में साध्वी जगवत्सलाजी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। एकता सुराणा, सरोज बांठिया व बहनों ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।