प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो

प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो

साध्वी प्रबुद्धयशा 

आचार्यवरकियां है?
जिनप्रभाजीड्रीप, इंजेक्शन आदि लिया और अब उनकी मूर्च्छा टूटी है वे बैठी भी हुई हैं और बोल भी रही है।
आचार्यवर(आश्‍चर्य के साथ) अच्छा। बैठी भी है और बोल भी रही है तब तो हम भी एक बार वहाँ आते हैं। उनको बता देते हैं।
साध्वीश्रीजीगुरुदेव दिन कम हैं।
आचार्यवरनहीं, नहीं एक बार आ जाते हैं।
गुरुदेव तत्काल पधारे। दर्शन दिराए। उनसे बात की।
साध्वीप्रमुखाश्रीजीदेखो, चंद्रिकाश्रीजी! आज गुरुदेव तीन बार पधार गया। कित्ती कृपा करवाई है।
चंद्रिकाश्रीजी(बार-बार) गुरुदेव भयंकर (बहुत ज्यादा) कृपा करवाई। गुरुदेव बहुत कृपा करवाई।
आचार्यवर(मुस्कान के साथ) कृपा की कोई बात कोनी। बस थे ठीक हू ज्यावो। ठीक हू ज्यावो।
वहाँ उपस्थित साधु-साध्वियाँ भाव-विभोर हो रहे थे।

एक ही लक्ष्य

13 नवंबर। जयपुर रवाना होने से पूर्व आचार्यवर ने सेवा करवाई। हम साध्वियों को कहाजयपुर भेज रहे हैं। तुम्हारा एक ही लक्ष्य होइसको ठीक करना है। पूरा ध्यान रखना है। पूरी जागरूकता से सेवा हो। यह प्रयास रखना ये चलने लग जाएँ।
साध्वियाँगुरुदेव की शक्‍ति से ये लक्ष्य पूरा हो। चंद्रिकाश्रीजी ठीक हो जाएँ।
स्वागत ही नहीं सामने आना13 नवंबर
साध्वीप्रमुखाश्रीजीबोलो चंद्रिकाश्रीजी! गुरुदेव ने निवेदन करो।
चंद्रिकाश्रीजीगुरुदेव! म्हारी जल्दी संभाल लिज्यो।
जयपुर जल्दी पधारज्यो।
साध्वीप्रमुखाश्रीजीथै जयपुर में गुरुदेव को स्वागत करीज्यो।

चंद्रिकाश्रीजीतहत महाराज।

आचार्यवरस्वागत ही नहीं, चालकर सामनै
आइज्यो। सत्यां सामने पेय ले’र आवै है नी। थे भी बियां ही आइज्यो, साध्वीप्रमुखाश्रीजी पधारै बी टाईम सामने जाइज्यो।
गुरुवचन उनके भीतर शक्‍ति का संचार कर रहे थे।

म्हानै अच्छा सतियाँ लग्या

कुछ देर ठहरकर आचार्यवर ने बड़ी प्रसन्‍नता के साथ फरमायाए अच्छा सतियाँ हैं, अच्छा सतियाँ हैं, अच्छा सतियाँ लाग्या म्हानै। कामकाज करणियाँ हैं।

सभीतहत्

चंद्रिकाश्रीजीगुरुदेव बहुत कृपा कराई। म्हारै ऊपर आपरो अनंत उपकार है।
भीलवाड़ा प्रवास के दौरान धीरे-धीरे साध्वी चंद्रिकाश्रीजी की शारीरिक स्थिति तो जरूर कमजोर हो रही थी, लेकिन उनका मनोबल, आत्मबल, धृतिबल, आंतरिक आनंद, समता और समाधि अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही थी। इसका मुख्य कारण था उनकी आचार्य भिक्षु पर अटूट श्रद्धा, परमाराध्य आचार्यप्रवर की अनंत कृपा एवं श्रद्धेया मातृहृदया साध्वीप्रमुखाश्रीजी का असीम वात्सल्य। संपूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ केवल परिचित ही नहीं, अनुभूत है। श्रद्धेया साध्वीप्रमुखाश्रीजी के स्नेह-भाव का।
(क्रमश:)