अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’

(3) चारित्र मार्ग

प्रश्‍न-29 : क्या यह चारित्र संघबद्ध साधना में होता है?
उत्तर : इस चारित्र वालों की चर्या पृथक् होती है। उनका संघ से सीधा संबंध नहीं रहता। उनके गोचरी आदि का क्रम अलग ही रहता है।

प्रश्‍न-30 : क्या परिहार विशुद्धि चारित्र की परंपरा चलती है?
उत्तर : परिहार विशुद्धि चारित्र सबसे पहले तीर्थंकर से ग्रहण किया जाता है। उसके बाद उसी मुनि से ही यह चारित्र ग्रहण किया जा सकता है। इससे आगे उसकी साधना नहीं की जा सकती।

प्रश्‍न-31 : यथाख्यात चारित्र चरम शरीरी में होता है या अचरम शरीरी में?
उत्तर : दोनों में हो सकता है। अचरम शरीरी में उपशम यथाख्यात चारित्र हो सकता है जबकि चरम शरीरी में क्षायक यथाख्यात चारित्र होता है।
(क्रमश:)