ज्ञान रूपी आत्मा और अनुभव रूपी शरीर व्याख्यान के दो अंग होते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञान रूपी आत्मा और अनुभव रूपी शरीर व्याख्यान के दो अंग होते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

बीदासर, 9 फरवरी, 2022
धर्मज्ञाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ज्ञान का महत्त्व है। ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्याभ्यास करना होता है। कोई ज्ञान देने वाला भी अच्छा मिल जाए और ज्ञान लेने वाला भी अच्छा मिल जाए, सहायक साधन-सामग्री भी अच्छी मिल जाए तो आदमी विद्या के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है।
ज्ञान लेने वाले विद्यार्थी में उसके लायक योग्यता हो तो वह ज्ञान प्राप्ति में पुरुषार्थ कर सकता है और प्राप्त कर सकता है। ज्ञान देने वाला भी अपने विषय को अच्छा वेत्ता-अधिकृत हो और ज्ञान देने का प्रयास हो। साधन सामग्री रूप में पुस्तकें भी उपलब्ध हो। मुनि जीतमल जी को मुनि हेमराज जी स्वामी जैसे गुरु मिले थे।
विद्यार्थी में ज्ञान प्राप्ति में पुरुषार्थ के साथ प्रतिभा भी अच्छी हो। साथ में भावात्मक शुद्धि भी चाहिए। शास्त्रकार ने बताया है कि पाँच ऐसे कारण हैं जिनसे आदमी शिक्षा को प्राप्त नहीं करता। पहला कारण हैअहंकार। ज्ञान और ज्ञानदाता के प्रति निरहंकारता हो। दूसरी बात हैक्रोध। मन शांत रहता है, तो अच्छा एकाग्र हो सकता है। तीसरी बाधा प्रमाद है। व्याकरण एक अलूणी शिक्षा है। साहित्य में तो स्वाद आ सकता है। व्याकरण के बिना आदमी अंधा है। जिज्ञासा ज्ञान की जननी है। चौथी बाधा हैरोग, बीमारी। शरीर की स्वस्थता भी अपेक्षित होती है, ज्ञान प्राप्त करने के लिए। पाँचवीं बाधा हैआलस्य, पुरुषार्थ का अभाव। इतिहास को पढ़ें। संस्कृत-प्राकृत भाषा का अर्थ भी सीखें। आगम के अनुवाद-टिप्पण पढ़ने से कई जानकारियाँ मिल सकती हैं। नवदीक्षित दत्त-चित्तता से स्वाध्याय कर सीखने का प्रयास करें। ज्ञान का उपयोग हम प्रवचन में भी कर सकते हैं। प्रवचन में भी समय की नियमितता रखनी चाहिए और समय पर ही पूरा करने का प्रयास करें। तैयारी के साथ जाएँ। आगम-सूत्र का भी प्रयोग होता रहे। व्याख्यान के दो अंग होते हैंआत्मा और शरीर। आत्मा है, वक्‍ता का ज्ञान व शरीर हैअनुभव। अप्रामाणिक बात बोलने से बचें। साधार बात बोलनी चाहिए। व्याख्यान के तरीकों को समझाया। व्याख्यान देने के लिए पहले ज्ञान होना जरूरी है। मुनि विजय कुमार जी स्वामी ने गीत की प्रस्तुति दी। ॠतिक बोथरा, सीमा गिड़िया ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।