एक विधान एक प्रधान है तेरापंथ धर्मसंघ की पहचान- आचार्यश्री महाश्रमणजी

गुरुवाणी/ केन्द्र

एक विधान एक प्रधान है तेरापंथ धर्मसंघ की पहचान- आचार्यश्री महाश्रमणजी

बीदासर, 7 फरवरी, 2022
माघ शुक्ला सप्तमी वि0सं0 1921 को बालोतरा में प्रज्ञा पुरुष श्रीमद्जयाचार्य ने आचार्यश्री भिक्षु के अंतिम लिखत मर्यादा पत्र के आधार पर ही मर्यादा महोत्सव का शुभारंभ किया था। आज 158वाँ मर्यादा महोत्सव जो बीदासर का रजत महोत्सव है, तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता के पावन सान्‍निध्य में आयोजित हो रहा है, जिसे पूज्यप्रवर ने वृहद् मर्यादा महोत्सव से उपमित किया है। आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर, महातपस्वी, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने नमस्कार महामंत्र के मंगल स्मरण से मर्यादा महोत्सव समारोह का त्रिदिवसीय समारोह के मुख्य दिवस का कार्यक्रम शुरू हुआ। महामहिम आचार्यप्रवर ने फरमाया कि वीर पुरुष महान पथ के प्रति प्रणत समर्पित हो जाते हैं। दुनिया में दो प्रकार के मार्ग हैंअध्यात्म का मार्ग और दूसरा भौतिकता का मार्ग। दोनों रास्ते अलग-अलग हैं। पूर्व और पश्‍चिम में जैसे अंतर होता है, वैसे ही इन दोनों के मार्ग में अंतर होता है। हम लोगों ने भौतिकता के मार्ग को अब स्वीकार नहीं कर रखा है। हमने अध्यात्म के पथ को व्यावहारिक रूप में स्वीकार किया है। हमने जैन शासन के माध्यम से अध्यात्म के पथ पर चलना स्वीकार किया है। जैन शासन में भी हमने भैक्षव शासन जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ शासन को अपने उस अध्यात्म मार्ग का एक सहायक तत्त्व और माध्यम बनाया है। जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ शासन का प्रारंभ आज से लगभग 262 वर्ष पूर्व हुआ था। हमारे इस संघ संप्रदाय के प्रवर्तक प्रथम अनुशास्ता, प्रथम आचार्य, प्रथम गुरु परमपूज्य भिक्षु स्वामी थे। उन्होंने हमारे धर्मसंघ में मर्यादाएँ बनाई। उनकी मर्यादाओं में एक मर्यादा पत्र हैवि0सं0 1859 माघ शुक्ला सप्तमी का। वह पत्र और उस पत्र की भावना-मर्यादाएँ बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। यह पत्र अध्यात्म की चेतना संगठन की चेतना का निर्देश देने वाला है। (पूज्यप्रवर द्वारा पत्र दिखाया गया) 219 वर्ष पुराना यह पत्र है।
आज हम मर्यादा महोत्सव का मुख्य समारोह आयोजित कर रहे हैं। आयोजन का मुख्य आधार मैं इस पत्र को मानता हूँ। हमारे धर्मसंघ के जनक परमपूज्य भिक्षु थे। उनका उपकार मानें कि हमें ऐसा धर्मसंघ प्राप्त हुआ है। ये हमारा सौभाग्य है। मर्यादा महोत्सव का प्रारंभ करने वाले प्रज्ञा पुरुष श्रीमद् जयाचार्य थे। आज 158वें वर्ष का मर्यादा महोत्सव है। अतीत में दस आचार्य हुए हैं। मैं पूर्वाचार्यों के प्रति प्रणत हूँ। वंदन करता हूँ। किस प्रकार से भैक्षव शासन की उन्होंने सेवा की है। वर्तमान में भी परंपरा चल रही है। हम चारित्रात्माएँ इस धर्मसंघ के महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं। हमने अध्यात्म का मार्ग स्वीकार किया है। तो हमारे मन में अध्यात्म निष्ठा पुष्ट रहनी चाहिए। आत्मा का कल्याण करने के लिए हमने अभिनिष्क्रमण किया है। ‘मर पूरा देरयां, आत्मा रा कारज सारस्यां’ ऐसे वाक्य हमें प्रेरणा देते रहें। प्राणों की परवाह नहीं है, प्रण को अटल निभाएँगे। यह पंक्‍ति यदा-कदा हमारे मस्तिष्क में स्मृति में आ जाए। हमारा आदर्श है। हमारा धर्मसंघ न तो राजनैतिक दल है, न कोई मूलत: सामाजिक संगठन है। हमारा धर्मसंघ मूल में आध्यात्मिक-धार्मिक संगठन है। हमारे में संघ-निष्ठा भी रहनी चाहिए। संघ मेरा है। जितनी हो सके इस संघ की सेवा करें। संघ हमारा उपकारी है। शासन हमारा आसरा है। हमारी सार-संभाल करने वाला यह संघ है। संघ के प्रति श्रद्धा-निष्ठा का भाव हमारे में बना रहे।
हमारे धर्मसंघ में आचार्यश्री भिक्षु एवं उत्तरवर्ती आचार्यों ने जो मर्यादाएँ बनाई हैं, वो भी कई-कई तो बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हमारे धर्मसंघ की मर्यादाओं में एक शिरोमणी मर्यादा हैसर्व साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें। सबसे बड़ी और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संगठन की द‍ृष्टि से है। विहार-चातुर्मास आचार्य की आज्ञा से करें। यह निष्ठा बहुलांश में है।
साधु-साध्वियों में संघ के प्रति निष्ठा है, परस्पर सौहार्द भाव है। मुझे सौहार्द भाव वर्धमान लग रहा है। कोई साधु-साध्वी अपना शिष्य-शिष्या न बनाएँ। यह हमारे धर्मसंघ की खूबी है। शिष्य-शिष्याएँ एक आचार्य की हैं। यह हमारे धर्मसंघ की विशेषता है। दीक्षा देना है, आचार्य भी योग्य व्यक्‍ति को दीक्षित करे। अयोग्य की संख्या न बढ़े। मुमुक्षु संख्या बढ़े यह काम्य है, अभिष्ट है। हमारी महत्त्वपूर्ण मर्यादा है कि भावी आचार्य का मनोनयन आचार्य करे, सर्व साधु-साध्वियाँ उस मनोनयन को सहर्ष स्वीकार करें। हमारे धर्मसंघ में मैं देखता हूँ कि आचार्यों को बहुत पावर प्राप्त है। पावरफुल तेरांपथ के आचार्य होते हैं। जिसको उचित समझें उसे उत्तराधिकार सौंपा जा सकता है। साध्वीप्रमुखा बनाना हो या अग्रणी, सारा अधिकार आचार्य का ही होता है। हमने चारित्र स्वीकार किया है, पाँच महाव्रतपाँच समिति और तीन गुप्ति की अखंड आराधना करें। ये तेरह नियम हमारा साधुपना है। पाँच महाव्रत पाँच हीरे हैं, जो अमूल्य हीरे हैं। ये जिन्हें प्राप्त होते हैं, वह महान संपदा वाला है। हमारे धर्मसंघ में आज्ञा का भी बहुत महत्त्व है। महाव्रती है, पर गुरु आज्ञा में रहें। साध्वियाँ प्रमुखाश्रीजी की भी आज्ञा में रहें। संघीय मर्यादाएँ हैं, शास्त्रीय मर्यादाएँ हैं, मर्यादा-निष्ठा चाहिए। मर्यादा बनाने वाले बना सकते हैं। बनाकर लागू करने का घोष भी कर सकते हैं। पालने वाले हो, तब पूरी बात हो सकती है। मर्यादाओं के पालन के प्रति भी हमारी निष्ठा रहे। हमारे धर्मसंघ में आचार्य अनुशासन भी करते रहे हैं। उलाहना भी देते रहे हैं। आचार्यों के उलाहना को विनयपूर्वक सहन करना चाहिए। हमारे धर्मसंघ में आचार्यों के प्रति विनय का भाव अच्छा है और आगे बढ़ता रहे। सहनशीलता की भावना बढ़ती रहे। हमारे संघ में एकता की बात है। एक आचार, एक विचार, एक आचार्य और एक संविधान। इन चार चीजों में एकता देख रहा हूँ। हमारी श्रद्धा सिद्धांत की एक मान्यता है। हमारी संघीय मान्यता एक ही है।
सबका एक ही आचार्य होता है, एक ही विधान है। एक विधान-एक प्रधान। ऐसा धर्मसंघ हमें प्राप्त हुआ है। आचार्यों के गौरवशाली इतिहास हैं। यहाँ साधु-साध्वियों का भी इतिहास है। तपस्याएँ भी अच्छी होती हैं। ज्ञानाराधना भी अच्छी हो रही है, शिक्षा का भी विकास हुआ है। पर आज भी ज्ञान के विकास की अपेक्षा है। हमारा ज्ञान और गहराई में बैठें।
हमारी चिंतन-शक्‍ति भी गहरी हो। विकास को अवकाश है। जो हमें मिला हुआ है, वो मर्यादा-अनुशासन, कुछ अंशों में बौद्धिकता और सौहार्द भाव की द‍ृष्टि से हमें अच्छा धर्मसंघ प्राप्त है। समणियाँ भी गृह त्यागिनी हैं, उनकी भी आचार के प्रति जागरूकता रहे। अपना विकास करती रहें।
हमारे धर्मसंघ में श्रावक-श्राविकाएँ भी हैं। मैं देखता हूँ कि श्रावक-श्राविकाएँ भी विशिष्ट हैं। उनमें सेवा-भावना, विनय भावना, अनुशासन निष्ठा, और अपने त्याग संकल्प के प्रति भी जागरूक है। शनिवार की सामायिक की बात को समाज ने गहराई से पकड़ा है, लिया है। सुमंगल साधक भी बन रहे हैं। सुमंगल साधना गृहस्थ जीवन की उच्च कोटि की साधना है। बारह व्रतों से ऊपर की साधना है। हमारे धर्मसंघ में संस्थाएँ भी अनेक हैं। संस्थाओं को भी मैं देखता हूँ तो अच्छा लगता है। तेरापंथ समाज का कोई ऐसा भाग्य है कि ऐसी संस्थाएँ समाज के पास हैं। समाज के लोगों में उनके प्रति निष्ठा है। ये संस्थाएँ आध्यात्मिक-धार्मिक विकास करती रहें। उनमें आर्थिक शुचिता बनी रहे। इनकी गतिविधियाँ भी अच्छी है। मुझे आत्मतोष हो रहा है।
हमारे यहाँ ज्ञानशालाएँ चलती हैं, अच्छा लगता है। बच्चों के विकास-निर्माण का प्रयास हो रहा है। ज्ञानशालाओं व ज्ञानार्थियों की जितनी संभव हो संख्या बढ़नी चाहिए। बढ़ाने का प्रयास भी होना चाहिए।
उपासक श्रेणी मैं देखता हूँ। उसके लिए भी मैं कुछ अंशों में संतोषानुभूति करता हूँ। उपासक श्रेणी भी कितनी अच्छी श्रेणी है, जगह-जगह जाकर काम कर सकती है। वो भी एक अच्छी विद्या है।
अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान का भी विकास हो रहा है, कितने मानवोपयोगी कार्य कर रहे हैं। जीवन-विज्ञान भी यथोचित्य कार्य करती रहे। चारित्रात्माएँ भी इन्हें बल देने का प्रयास करते रहें, यह काम्य है।
मर्यादा महोत्सव वार्षिक उत्सव का दिन है। साध्वीप्रमुखाश्री 50 वर्षों से सेवा देती आ रही हैं। कितनी बड़ी सेवा आपकी रही है। कितना श्रम-पुरुषार्थ आपने रखा है। मुझे संतोष है कि आपका पुरुषार्थ देखता हूँ तो 10 साल पहले और आज में क्या फर्क है? मेरी मंगलकामना है कि साध्वीप्रमुखाजी
का स्वास्थ्य अच्छा रहे। आपकी सक्रियता लंबे काल तक बनी रहे। यह हमारी मंगलकामना है।
हमारे धर्मसंघ में मुख्य नियोजिकाजी, साध्वीवर्या जी भी सेवाएँ दे रही हैं। मुख्य मुनि भी प्रबंधन, प्रशासन व संघीय कार्यों में मैं भी इनसे सहयोग ले लेता हूँ। ये हमारे व्यवस्था तंत्र में महत्ता के साथ जुड़े हुए हैं। बहुश्रुत परिषद भी सात सदस्यों वाली है। मुनि महेंद्र कुमार जी इसके संयोजक हैं। इनसे भी चिंतन-सुझाव मिलते रहते हैं। हमारे साधु-साध्वियाँ, न्यूरोपियन फोर्ट का सेवन न करें। श्रावक-श्राविकाएँ भी अभक्ष्य के सेवन से बचें। नित्यपिंड की जो छूट थी, वो एक मार्च से बंद की जा रही है। साधन के बारे में 2023 जनवरी से छेदप्रायश्‍चित की बात जो रायपुर में बताई थी वो यथासंभव रह सकती है। आज स्मरण करा रहा हूँ। हम अपनी मर्यादाओं के प्रति पालन में सजग रहे। पूज्यप्रवर ने छापर चतुर्मास में दो दीक्षा समारोह आयोजन करने का फरमाया। छापर चतुर्मास प्रवास स्थल प्रवेश का समय व चतुर्मास के पश्‍चात् विहार के दिन की घोषणा की। बायतू मर्यादा महोत्सव के प्रवेश व विहार की घोषणा करवाई। मर्यादा पत्र का पूज्यप्रवर ने श्रीमुख से वाचन किया। मर्यादा महोत्सव पर पूज्यप्रवर ने स्वरचित नव गीत ‘नंदनवन भैक्षव शासन की सुषमा बढ़ाएँ’ का सुमधुर संगान किया।
दोनों समय साधु-साध्वियों में दोनों समय नियमित प्रतिक्रमण हो प्रायश्‍चित की भावना रहे। आचार अच्छा रहे।
पूज्यप्रवर वर्ष 2022 के लिए साधु-साध्वियों के चतुर्मास-विहार क्षेत्रों की एवं समणी केंद्रों की घोषणा की। जो साधु-साध्वियाँ बीदासर में उपस्थित हैं, वो शीघ्र ही सेवा केंद्रों एवं चतुर्मास विहार क्षेत्रों की ओर विहार करें। धर्मशासन की प्रभावना करें। श्रावक-श्राविकाआं की संभाल करें, साथ में मुमुक्षु भी तैयार करें।
पूज्यप्रवर के सान्‍निध्य में बड़ी हाजरी का आयोजन हुआ। साध्वियों का बड़ा समुदाय इस बार देखने को मिल रहा है। साधु-साध्वियाँ व समणियाँ धर्मसंघ की सेवा करने के लिए कटिबद्ध रहें। चारित्रात्माओं द्वारा लेख पत्र का वाचन हुआ। पूज्यप्रवर ने मर्यादाओं का महत्त्व समझाया। जागरूकता की प्रेरणा दिलाई। श्रावक-निष्ठा पत्र का भी उच्चारण करवाया।
संघगान के साथ समारोह के समापन की घोषणा की।
संघ हमारा त्राण है - प्राण है-साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
शासन माता, असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने कहा कि मर्यादा महोत्सव का आयोजन हो रहा है। गुरुदेव तुलसी के मुखारविंद से सुना है कि यह एक कल्प का प्रयोग है, जो आंतरिक स्वास्थ्य देने वाला है। साधु-साध्वियों को पौष्टिक पाथेय आचार्यप्रवर से प्राप्त होता है। मर्यादा महोत्सव को कुंभ मेले की उपमा दी गर्ई है।
आचार्य के लिए यह सर्वाधिक श्रम का समय है। तेरापंथ धर्मसंघ आज्ञा, मर्यादा केंद्रित धर्मसंघ है। आचार्य भिक्षु महामेधावी, महामानव थे। वे अनुभवी विज्ञ थे। उन्होंने मर्यादाओं के द्वारा संघ को संगठित
किया था। संघ में व्यक्‍ति रहता है, तो आचार्य उसकी संभाल करते हैं, पालन-पोषण करते हैं, जैसे कमल पानी में स्थिर रहता है, तो पानी और सूर्य दोनों उसको पोषण देते हैं। संघ के व्यक्‍ति एकजुट रहते हैं, तो संघ का विकास होता है। संघ हमारा त्राण है, प्राण है। संगठन व्यक्‍ति को कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सुरक्षित रह सकता है। हमारी आस्था लोहे की लकीर बनकर रहे, मोम की लकीर नहीं। हमारा श्रावक समाज भी जागरूक है। सभी में श्रद्धा और गुरु आज्ञा में निष्ठा हो। भैक्षव शासन में सबसे बड़ा प्रमाण गुरु की आज्ञा है। गुरु आज्ञा में हम सुरक्षित रह सकते हैं। आज्ञा के पति हमारी इतनी गहरी निष्ठा हो कि हम इधर-उधर की न सोचें। गुरु के आदेश-निर्देशों का पूरे मन से पालन करें। संघ की रीति-नीति के प्रति भी श्रद्धा हो। संघ का विकास करना हमारी जिम्मेवारी है। तो हमारा विकास करना संघ की जिम्मेदारी है। गुरुदेव की आज्ञा के अनुसार हम साधना-संयम में निरंतर आगे बढ़ते रहें। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि दिनेश कुमार जी ने संघीय घोषों का उच्चारण किया। मर्यादा गीत का संगान किया। मुनिवृंद, साध्वीवृंद व समणीवृंद ने सामुहिक गीत की अति भावपूर्ण प्रस्तुति दी। वृहद् मर्यादा महोत्सव में 82 साधु, 309 साध्वियाँ एवं 41 समणियाँ सहित कुल 432 चारित्रात्माएँ प्रवाहित हैं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि भगवान महावीर की तुलना में आचार्यश्री महाश्रमणजी कई संदर्भों में आ जाते हैं। हमें गुरुओं के आदेश पर कुर्बान हो जाना चाहिए।