धर्मसंघ में विनय के भाव सुरक्षित रहें, वर्द्धमान रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्मसंघ में विनय के भाव सुरक्षित रहें, वर्द्धमान रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

बीदासर, 6 फरवरी, 2022
बीदासर का वृहद रजत मर्यादा महोत्सव। त्रिदिवसीय समारोह का दूसरा दिवस। तेरापंथ धर्मसंघ का यह महाकुंभ है, जो प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला महा-उत्सव है। कितनी-कितनी चारित्रात्माएँ श्रीचरणों में पहुँचते हैं। वर्ष भर की सारणा-वारणा और भविष्य में करणीय कार्यों का आंकलन कर योजनाएँ बनती हैं। गुरु के प्रति समर्पण भाव और श्रद्धा ही तेरापंथ है। तीर्थंकर के प्रतिनिधि, तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अर्हत वाङ्मय में शास्त्रकार ने बताया कि विनीत को संपत्ति प्राप्तकर्ता के रूप में प्रदर्शित कहा गया है और अविनीत व्यक्‍ति को विपत्ति प्राप्तकर्ता के रूप में दिखाया गया है। हमारे जीवन में विनय का बहुत महत्त्व है। निरहंकारिता, घमंडरहित करना। घमंड हानिकारक सिद्ध हो सकता है। हमारे धर्मसंघ में विनय के संस्कार दिए जाते रहे हैं। आज माघ शुक्ला षष्ठी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ का आचार्य पदारोहण दिवस है। मैंने परमपूज्य आचार्य महाप्रज्ञजी को देखा है, कई वर्षों तक उनके निकट रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी में विनय का व्यवहार था। गुरु के पास तो उनका अपना विनय भाव था। गुरुदेव तुलसी उन्हें कहा करते थे कि तुम कैसे आचार्य हो जो साधारण साधु की तरह वंदना करते रहते हो।
गुरुदेव महाप्रज्ञ जी में जो विनय के भाव थे वो हम साधु-साध्वियों में आएँ। आज हमारे धर्मसंघ में साधु-साध्वियों को देख लो, उनमें गुरुओं के प्रति व औरों के प्रति भी यथोचित विनय व्यवहार देखने को मिलता है। श्रावक-श्राविकाओं में भी विनय के भाव है, सेवा का भाव है, वो उल्लेखनीय है, ऐसा मुझे लगता है।
निष्कर्ष के रूप में देखें तो हमारे धर्मसंघ में अतीत में भी और वर्तमान में भी विनय का भाव, सेवा का भाव देखने को मिलता है।
आचार्य महाप्रज्ञजी आचार्य तुलसी के पास लंबे काल तक रहे, वे आचार्य तो ऐसे बने थे कि हमारे धर्मसंंघ में आज तक कोई बना ही नहीं है कि गुरु के सामने आचार्य बन जाना। इस मायने में वे कीर्तिमान पुरुष हैं। आचार्य बनने के बाद भी उनका अपने गुरु के प्रति इतना ही विनय भाव था।
गुरुदेव तुलसी में भी कितने विनय-समर्पण के भाव थे। जयपुर प्रसंग को समझाया। गुरुदेव तुलसी पट्ट से उतरकर मंच पर विराज गए। आचार्य भिक्षु एवं पूज्य कालूगणी के प्रति भी कितने विनय के भाव थे। ये विनय के भाव सुरक्षित रहे व आगे भी वर्धमान रहे। मर्यादावली में बाँचते हैंआज्ञा धर्म है। आज्ञा की सम्यक् आराधना करूँ। शास्त्र-आगम की आज्ञा। आगम में उल्लेखित है, उसके प्रति हमारा सम्मान का भाव हो। आगम की वाणी व्याख्यान का आभूषण होती है। अग्रणी को तो व्याख्यान के प्रति रूझान रखना चाहिए। आगम में जीवनोपयोगी साधनोपयोगी सामग्री प्राप्त हो सकती है। हमारे यहाँ जो आगम का कार्य हुआ है, वो विशेष है, फिर भी और ध्यान देने की अपेक्षा है। टिप्पण-अनुवाद की कई जानकारियाँ मिल सकती हैं। आचार्य की आज्ञा भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। साधु-साध्वियों की इतनी विशेषता है कि कोई गुरु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता है। आचार्य की आज्ञा के प्रति सम्मान का रूझान हो। युवाचार्य जीत के जीवन के प्रसंग को समझाया। यह हमारे लिए आदर्श है।
मर्यादा का सम्यक् पालन करूँगा। मर्यादाओं का भी सम्यक् पालन होता है। हमारे धर्मसंघ में अहंकार और ममकार से व्यवस्थागत भी कुछ दूर रहने का मौका मिला हुआ है। जैसे पद का उम्मीदवार नहीं बनूँगा। शिष्य नहीं बनाना। अनेक छोटी-बड़ी मर्यादाएँ हैं, उनके प्रति सम्मान का भाव हो।
आचार्य की आराधना करो। आचार्य की सेवा-सुश्रुषा जो की जाती है। आचार्य भिक्षु और खेतसीजी स्वामी के प्रसंग को समझाया। हमारे साधु-साध्वियाँ अपनी सीमा में सेवा करते रहते हैं। आचार्यों के इंगित-द‍ृष्टि की आराधना करना भी एक प्रकार की सेवा है। गण का सम्यक् अनुगमन करूँगा। संघ की आराधना करना, अनुगमन करना और संघनिष्ठा रखना। संघ मेरा है। मैं संघ का हूँ। संघ की सेवा करें, इसके विकास में योगदान दें। सभी किस प्रकार सेवा में संलग्न हैं। धर्म को मैं कभी नहीं छोडूँगा। धर्म कोई कपड़ा नहीं जो पहन लिया और उतार दिया। धर्म है, वह चेतना जो भिन्‍नता सहता नहीं। धर्म वह चेतना है, जो अभिन्‍न है। धर्म के प्रति निष्ठा भी अभिन्‍न रूप में रहे। यह भी काम्य है। यह मर्यादा महोत्सव का समय, आज अनेक चारित्रात्माओं ने वक्‍तव्य दिए हैं। हम उनकी बातें सुनकर जीवन में उतारें तो वो हमारे लिए श्रेयस्कर और कल्याणकारी हो सकती है। हम अपने धर्मसंघ और आत्मा के प्रति जागरूक रहे। मूल तो हमें आत्मा का कल्याण करना है। आत्मा के कल्याण के लिए हमने संघीय व्यवस्था को किया है। हम सभी आत्मोत्थान की दिशा में आगे बढ़ें, यह काम्य है। महासभा द्वारा समाज भूषण अलंकरण समर्पण समारोह पर पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आज समाजभूषण अलंकरण प्रदान का उपक्रम चल रहा है। जैन श्‍वेतांबर तेरापंथी महासभा जो संस्था शिरोमणी है। तेरापंथ समाज का सर्वोच्च सम्मान हैसमाज भूषण। कई-कई महानुभावों को वह दिया जाता रहा है। उसी शृंखला में आज दो व्यक्‍तियों-श्रावकों को जो एक-दो विद्यमान और एक असाक्षात विद्यमान को प्रदान किया गया है।
यह समाज भी एक ऊँची कोटि का समाज है। कन्हैयालाल ने लंबे काल तक धर्मसंघ की सेवा की है, मैंने उनको देखा है। समाज सेवा के साथ साधु संस्था की अंतरंग सेवा में उनका विशेष योगदान रहा। वे विश्‍वासपात्र श्रावक रहे हैं। जिस कार्य के लिए वे भेजे जाते थे, उसमें बहुधा वे सफल संपन्‍न कर आ जाते थे। वे हमारे अंतरंग सेवी थे। मैंने उनको संघ-सेवी के रूप में सरदारशहर में कहा था। शासन सेवी तो वे पहले से ही थे। अनेक रूपों में उन्होंने सेवाएँ दी थी।
पद्मचंद पटावरी भी समाज की, धर्मसंघ की सेवा में लगे रहते हैं। ये समाज के लिए सोचते हैं। सुझाव देना भी इनका काम है। छाजेड़ परिवार पर भी कन्हैयालाल का प्रभाव जमा रहे। उनकी बातों से प्रेरणा मिलती रहे। साध्वी वंदनाश्री उनकी संसारपक्षीय पौत्री हैं।
जेसराज सेखाणी का इतनी अवस्था में भी उनका पुरुषार्थ अपने ढंग का है। इस उम्र में उठ-बैठ कर वंदना करना आश्‍चर्य है। इनकी साधना भी अच्छी चल रही है। अमृतवाणी का जो कार्य हुआ है, वो तो उनका बड़ा योगदान है, जो आचार्यों की वाणी को सुरक्षित रखा है। वयोवृद्ध श्रावक है। सुखराज भी सेवाएँ दे रहे हैं। परिवार पर भी सेवा का प्रभाव बना रहे। सेखाणी में श्रावकत्व भी बोलता है। साधु-संतों के प्रति इनके भक्‍ति-विनय के भाव हैं। साधक है। सेखाणी का भी खूब अच्छा साधना का क्रम चलता रहे, चित्त में समाधि रहे। आध्यात्मिक साधना आगे प्रवर्धमान रहे।
पूज्यप्रवर ने बायतू निवासियों के लिए फरमाया कि आगामी सन् 2023 का मर्यादा महोत्सव बायतू में होना घोषित है। बायतू का मर्यादा महोत्सव भी खूब आध्यात्मिक-उत्साह से परिपूर्ण हो। बायतू के लिए तो एकदम पहला मौका है कि अपने गाँव में मर्यादा महोत्सव देखना गौरवपूर्ण बात हो सकती है। आध्यात्मिक-धार्मिक अच्छा कार्य होता रहे, मंगलकामना। उत्साह बना रहे। मुख्य मुनिश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु एक दूरदर्शी आचार्य थे और उन्होंने दूरदर्शी मर्यादाओं का निर्माण किया था। जयाचार्य ने इन मर्यादाओं को महोत्सव के रूप में स्थापित किया था। तेरापंथ धर्मसंघ अनूठा धर्मसंघ है, जहाँ मर्यादाओं का इतना सम्मान है। ‘वार्षिक मर्यादा महोत्सव आगम, खुशियों की झोली भर लाया’। गीत का सुमधुर संगान किया। हमारे में गुरुभक्‍ति संघ के प्रति अनुरक्‍ति और मर्यादाओं की शक्‍ति हो। हमारा स्वार्थ परमार्थ के लिए हो। संघ एक महान सागर है। संघ हित को प्रमुखता देने वाला स्वयं का हित कर लेता है। जो वृक्ष से जुड़ा होता है, उसे ही सींचन प्राप्त होता है। संघ में रहकर ही व्यक्‍ति सम्यक् साधा व विकास कर सकता है। साध्वी वर्याजी ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें मर्यादित तेरापंथ धर्मसंघ प्राप्त हुआ है। संघ हमारे लिए शरण, श्रण-श्राण, गति, प्रतिष्ठा और साधना का आधार है। संघ में रहने वाला ही सम्मान को प्राप्त करता है। संघ के सहारे ही हम गंतव्य स्थान तक पहुँच सकते हैं। विकास की द‍ृष्टि से तेरापंथ जैन धर्म का अग्रणी संघ है। संघ से ही दिशा और व्यवस्था मिलती है।
शासन गौरव साध्वी कनकश्रीजी ने समझाया कि यह महोत्सव बहुआयामी कार्यक्रम का महोत्सव है। मर्यादा महोत्सव आध्यात्मिक और अलौकिक पर्व है। संकल्प और समर्पण रूपी दोनों पंख हो तो ऊँचे आकाश में उड़ान भरी जा सकती है। पाँच निष्ठाएँ हैंनायक निष्ठा, न्यायनिष्ठा, नीति निष्ठा, नेमनिष्ठा और नवनिर्माण निष्ठा।
मुनि उदित कुमार जी ने समझाया कि आचार्य भिक्षु का समर्पण भाव वीर वाणी के प्रति बेजोड़ था। समर्पण चेतना अद्वितीय थी। आचार के साथ अनुशासन साथ-साथ में चले तो जीवन में पूर्णता आ सकती है। गुरु के प्रति सर्वात्मना समर्पण का भाव हो।
विकास परिषद के सदस्य पद्मचंद पटावरी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। उन्होंने बताया कि श्रावक समाज में जो स्नेह समर्पण की भावना है, उससे संघ की श्रीवृद्धि हुई है। जैन श्‍वेतांबर तेरापंथी महासभा द्वारा समाज भूषण अलंकरण समारोह का कार्यक्रम आयोजित हुआ। स्व0 कन्हैयालाल छाजेड़, श्रीडूंगरगढ़ एवं जेसराज सेखाणी-बीदासर को समाज भूषण अलंकरण से सम्मानित किया गया। महासभा अध्यक्ष सुरेश गोयल ने दोनों परिवारों के प्रति अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। प्रशस्ति पत्र का वाचन मुख्य न्यासी भंवरलाल बैद एवं पूर्व महासभाध्यक्ष किशनलाल डागलिया द्वारा किया गया। छाजेड़ परिवार की ओर से कन्हैयालाल छाजेड़ की पौत्री मनीषा राखेचा एवं सेखाणी परिवार की ओर से सविता सेखाणी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की।
छापर चातुर्मास व्यवस्था समिति एवं बायतू मर्यादा महोत्सव समिति द्वारा प्रस्तुति हुई। बायतू मर्यादा महोत्सव प्रतीक चि का अनावरण हुआ। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि हम संघ और संघपति का सम्मान करें।