राग के समान दु:ख नहीं और त्याग के समान सुख नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

राग के समान दु:ख नहीं और त्याग के समान सुख नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

सुजानगढ़, 1 फरवरी, 2022
अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे शरीर में आत्मा से जुड़ी पाँच ज्ञानेंद्रिय है। हम पंचेंद्रिय प्राणी है। पशु, देव और नारकीय जीव भी पंचेंद्रिय प्राणी होते हैं।
हमारे पाँच इंद्रियों के पाँच विषय हैं और उनकी प्रवृत्तियाँ-व्यापार भी है। जैसे श्रोतेंद्रिय का विषय है, इसका शब्द और व्यापार सुनना। इस तरह पाँचों के विषय अलग होते हैं। कान में शब्द पड़ते हैं, वे कभी मन को भी दुखी या सुखी बना सकता है। आदमी के सुखी या दु:खी बनने में मूल राग या द्वेष का भाव होता है। विषय तो निमित्त बनते हैं। आदमी की साधना ये होनी चाहिए कि राग और द्वेष में न जाएँ। राग होगा तो दु:ख होगा। राग के समान दु:ख नहीं और त्याग के समान सुख नहीं होता। राग है तो सामान्य आदमी में द्वेष भी हो सकता है। राग-द्वेष से कर्म बंध तो होता ही है, पर कहीं-कहीं कठिनाई भी पैदा हो सकती है। जो विषय है, वे आदमी में न तो समता भाव पैदा करते हैं, न ये विषमता या विकृति में ले जा सकते हैं। भीतर का मोह या राग-द्वेष का भाव इन विषयों के निमित्त में उदिप्त हो सकता है। अपराध के कार्य कराने वाले राग-द्वेष ही हैं। युद्ध भी शुरू होने से पहले आदमी के दिमाग या भावों में शुरू होता है। आदमी ध्यान दे कि वह इन विषयों के प्रति ज्यादा आसक्‍त न हो, ज्यादा राग-द्वेष ना करे, समता-शांति में रहने का प्रयास करें। यह एक प्रसंग से समझाया कि अति सर्वत्र वर्जित होती है। हम पदार्थ के प्रति ज्यादा आसक्‍त न हो। परहेज पर ध्यान रखें। कारण ऐसा बनता है कि अकाल मृत्यु हो जाती है। ये विषयासक्‍ति है, ये आत्मा की द‍ृष्टि से भी नुकसान करने वाला तत्त्व है और व्यवहार में भी कुछ कठिनाई पैदा हो सकती है। आदमी भोजन करे, उस समय भोजन की ज्यादा प्रशंसा या निंदा नहीं करनी चाहिए। इन बातों से हम आगे की ओर बढ़ सकते हैं। भीतर की ओर जा सकते हैं। रहो भीतर, जीयो बाहर। बाहर भी जीना होता है। आत्मा में भी रहने का प्रयास करना चाहिए। यह सूत्र अध्यात्म की साधना से बहुत महत्त्वपूर्ण है। सुजानगढ़ में कल आना हुआ था। कल विहार करना है। सुजानगढ़ के हमारे कई चारित्रात्माएँ भी हैं। सभी चारित्रात्माएँ अपनी साधना में, सेवा में विकास करते रहें। श्रावक-श्राविकाएँ भी हैं। अतीत में सेवाएँ दी हैं, वर्तमान में भी सेवाएँ दे रहे हैं। मांगीलाल सेठिया को गुरुदेव ने फरमाया थाअजात शत्रु। मुनि पदमकुमार जी भी आए हैं। इनकी संघ भक्‍ति-संघनिष्ठा अच्छी है। खूब सेवा भावना और चित्त समाधि बनी रहे।
सुजानगढ़ समाज द्वारा नागरिक अभिनंदन
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सुजानगढ़ विधायक मनोज मेघवाल, नगर परिषद चेयरमैन निलोफर गोरी, बी0एल0 भाटी, सविता राठी, मधु बागरेचा (पार्षद), धमेन्द्र चोरड़िया, अमित मारोड़िया, डालमचंद मालू, विद्याधर, सुभाष बेदी (गांधी आश्रम), तनसुख बैद, अजय चौरड़िया ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाते हुए कहा कि सुजानगढ़ के सभी समाज के लोग स्वागत में खड़े थे। सद्भावना प्रकट हो रही थी, वो अपने आपमें अच्छी बात है। सुजानगढ़ के पूरे शहर में सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्‍ति का विकास होता रहे, मंगलकामना।
मुनि योगेश कुमार जी ने ‘स्वाम साचा’ गीतिका का सुमधुर संगान किया।
कार्यक्रम से पूर्व तेरापंथ महिला मंडल व कन्या मंडल ने गीत, टीपीएफ से प्रगति चोरड़िया, मनीष बैद, तेयुप ने गीत, दिव्या सेठिया, पवन नाहटा, सुनीता डोसी, मोहना सुराणा, तरुण सेठिया, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी ने अपने भावों की प्रस्तुति पूज्यप्रवर की अभिवंदना-स्वागत में दी।
मुनि विजयकुमार जी, साध्वी सम्यक्त्वप्रभाजी, साध्वी विनीतयशाजी, मुनि पदमकुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति श्रीचरणों में अर्पित की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि पूज्यप्रवर तो भीड़ में रहते हुए एकांत में साधना शील रहते हैं।