आचार्य महाप्रज्ञ जी शीर्षस्थ कोटि के विद्वान  संत थे : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आचार्य महाप्रज्ञ जी शीर्षस्थ कोटि के विद्वान संत थे : आचार्यश्री महाश्रमण

आसाढ़ कृष्णा त्रयोदशी, तेरापंथ के दशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का 102वाँ जन्म दिवस। आज ही के दिन लगभग 101 वर्ष पूर्व राजस्थान के झूंझनूं जिले के टमकोर कस्बे में तोलारामजी चोरड़िया के घर माँ बालूजी की कुक्षी से बालक नथमल का जन्म हुआ था जो आगे जाकर तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित हुए और धर्मसंघ के सर्वोच्च अधिशास्ता भी हो गए थे।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के अनंतर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना देते हुए फरमाया कि आज आसाढ़ कृष्णा त्रयोदशी परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी का 102वाँ जन्म दिवस है।
दुनिया में जन्म तो बहुत शिशु लेते हैं। हर माँ के लिए उसके शिशु का जन्म महत्त्वपूर्ण हो सकता है। दुर्लभ मनुष्य जन्म उस आत्मा के लिए सुलब्ध हो गया है। परंतु शिशु-शिशु में अंतर होता है। एक जन्म माँ-बाप के लिए सुखद होता है, पर एक का जन्म बहुतों के लिए सुखद होता है।
आचार्य मानतुंग ने भक्‍तामर में भगवान ॠषभ की स्तुति में कहा हैसैकड़ों महिलाएँ-माताएँ, सैकड़ों पुत्रों को जन्म देती है। पर भगवान ॠषभ के लिए कहा गया आप जैसी माँ ने और कोई पुत्र को जन्म नहीं दिया। सारी दिशाएँ नक्षत्र आदि को धारण करती है, किंतु सूर्य को धारण करने वाली पूर्व दिशा ही होती है।
जैसा तीर्थंकरों की माता ने तीर्थंकरों को जन्म दिया है, वैसा और किसी ने नहीं किया। एक द‍ृष्टि से हर माँ का अपना महत्त्व है कि किसी को जन्म दिया है। जन्म और मृत्यु तो शाश्‍वत सच्चाईयाँ हैं, घटनाएँ हैं। सब अपनी माँ के लाड़ले हो सकते हैं। बड़ी बात यह है कि हमने जन्म लेने के बाद क्या किया है।
जो व्यक्‍ति अपने जीवन काल में महनीय कार्य करता है, उसका जन्म अपने आपमें महत्त्वपूर्ण हो जाता है। उसका जन्म दिवस भी मनाने वाले मनाते हैं। जिसने अच्छा काम कर लिया, वह तो धन्य हो गया। अच्छा काम करते जाओ।
परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी ने आज के दिन वि0सं0 1977 में टमकोर गाँव में जन्म लिया था। वर्तमान जीवन के पीछे अतीत कितना बड़ा है, उसको देखना हर किसी के वश में नहीं है। मैं पहले क्या था? पूर्वजन्म का ज्ञान किसी-किसी को हो सकता है। वह प्राय: अज्ञात रहता है, पर उसकी पृष्ठभूमि मजबूत होती है।
आचार्य महाप्रज्ञ जी एक विद्वान संत के रूप में उभरे। एक दार्शनिक में उनका नाम आया। एक ध्यानी-योगी के रूप में भी वो प्रादुर्भूत हुए। तेरापंथ के आचार्य के रूप में भी सामने आ गए। एक युगप्रधान आचार्य के रूप में भी उन्होंने गौरव प्राप्त कर लिया। करीब 90 वर्षों का उनका जीवनकाल रहा।
आचार्य महाप्रज्ञ जी का वर्तमान हमारे सामने है। अतीत और अनागत को हम न भी जान पाएँ। वर्तमान की जो स्थिति बनी है, उसमें अतीत की पृष्ठभूमि हो सकती है। भविष्य की भी वर्तमान की आधारशिला हो सकती है।
आचार्य महाप्रज्ञ जी ने बौद्धिकता भी प्राप्त की थी। ज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने विशिष्ट विकास किया था। मेरे जैसे अनेकों ने उनके चरणों में अध्ययन किया था। अनेक-अनेक ग्रंथों का पारायण मेरे देखने में उन्होंने युवाचार्य काल में करवाया था। वे अनौपचारिक रूप में उपाध्याय भी थे। संस्कृत भाषा का अच्छा अध्ययन था। एक विशिष्ट वैदुष्य उन्होंने प्राप्त कर लिया था।
जैन आगमों के संपादन का जो कार्य उन्होंने किया वह उनके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण देन वांङ्मय जगत को है। प्राचीन साहित्य को सुबोध बना दिया। भिक्षु वांङ्मय संपादन का कार्य उन्होंने मुझे दिया था। वह भी आगे बढ़ा है। वे ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़े हुए व्यक्‍तित्व थे।
आचार्य महाप्रज्ञजी हमारे धर्मसंघ के शीर्षस्थ कोटि के विद्वत्ता के क्षेत्र में संत थे। उनकी भाषा स्पष्ट थी, कंठ मधुर था। उनके गीत भी मुझे अच्छे लगते थे। ज्योति का अवतार बाबा---। व चैत्य पुरुष जग जाए।
आचार्य महाप्रज्ञ जी जावद भी पधारे थे। मुझे याद है, उस समय ओमप्रकाश संकलेचा भी साथ में थे। एक प्रांत के मंत्री हैं, वे इस यात्रा में चार बार आ गए हैं, उनके संस्कार उनकी भक्‍ति है। ओमप्रकाश भी आध्यात्मिकता, धार्मिकता, नैतिकता आदि सिद्धांतों को रखते हुए उनका अच्छा जीवन रहे। आध्यात्मिकता, परोपकारतापूर्ण कार्य होता रहे।
मध्य प्रदेश में मेरे लिए नए रास्ते से आना हुआ। मध्य प्रदेश में भी अच्छा प्रवास हो गया। नए रूप में यात्रा हो गई। ये मालवा की यात्रा अच्छे ढंग से संपन्‍नता की ओर है। यहाँ अच्छी धार्मिक भावना देखने को मिली। वो धार्मिक भावना पुष्ट होती रहे। जावद हमारे धर्मसंघ में योगदान देने वाला क्षेत्र है। दो संत मुनि कुंदनमल जी, मुनि चौथमल जी हुए हैं।
संस्कृत भाषा से कालू कौमुदि बहुत ही अच्छा ग्रंथ है। इसके रचियता मुनि चौथमल स्वामी जावद से थे। भिक्षु शब्दानुशासन भी उनकी रचना है। मुनि कुंदनमल जी ने कितने नव दीक्षितों को प्रेरणाएँ दी हैं। जावद में भी खूब अच्छा रहे। मुनि सत्यकुमार व मुनि सिद्धप्रज्ञ भी मालवा से हैं। खूब विकास करते रहें।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि मध्य प्रदेश की यात्रा संपन्‍नता का प्रसंग भी चर्चित हुआ है। परमपूज्य डालगणी हमारे धर्मसंघ के जो सप्तम आचार्य थे, उनसे जुड़ा यह मध्य प्रदेश है। मैं मध्य प्रदेश की यात्रा की संभावित संपन्‍नता पर परम पूज्य डालगणी का स्मरण करता हूँ। हम तो उनसे संबंधित भूमि में अभी विचरे हैं। अब उनकी कर्मभूमि राजस्थान जा रहे हैं। डालगणी जी से भी हमें प्रेरणा मिलती रहे। पूज्यप्रवर ने सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि मालवा मध्य प्रदेश के अनेक क्षेत्रों से संबंधित लोग हैं। विभिन्‍न क्षेत्रों में जाना हुआ है। कहीं जाना नहीं भी हुआ। मालवा-मध्यप्रदेश में खूब अच्छी भावना भक्‍ति बनी रहे। खूब अच्छा काम होता रहे। मंगलकामना।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के बारे में बोलना हो तो सोचना पड़ता है किस से शुरू करें। उनका जीवन बहुआयामी रहा है। उनके व्यक्‍तित्व को समझना भी सरल नहीं है। उनके व्यक्‍तित्व में सादगी थी तो उनके साहित्य में गूढ़ दर्शन था। उनकी कथा अज्ञ से प्रज्ञ और प्रज्ञ से महाप्रज्ञ बनने की कथा है। उनका बड़ा विचित्र जीवन रहा है।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि उनकी मृदु अनुशासन शैली थी। वे एक दार्शनिक थे। उनका चिंतन-मंथन गहरा था किंतु वे व्यवहार में बड़े मृदु थे। उनका व्यवहार विनोद प्रिय था।
मुनि उदित कुमार जी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जी गुरुदेव तुलसी के प्रति समर्पित थे। मुनि सिद्धप्रज्ञ जी एवं मुनि सत्यकुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। समणी डॉ0 कुसुमप्रज्ञाजी ने भी अपनी मंगलभावना अभिव्यक्‍त की।
मंगलभावना के स्वर
पूज्यप्रवर की मंगलभावना के स्वर में तेरापंथी सभा जावद मंत्री निर्मल गोयल, ज्ञानचंद गोयल, ज्ञानशाला प्रस्तुति, कन्या मंडल, कल्प बीकानेरिया, अर्चना चौधरी (अखिल भारतीय दिवाकर महिला मंडल अध्यक्षा) स्थानीय महिला मंडल, प्रमोदिता बोथरा, मालवा सभा से दिलीप भंडारी आदि श्रावकों ने पूज्यप्रवर के दर्शन कर अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। मध्य प्रदेश के मंत्री ओमप्रकाश संकलेचा ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की।