दुर्लभ मनुष्य जीवन को अपने सद्आचरण से सुफल बनाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुर्लभ मनुष्य जीवन को अपने सद्आचरण से सुफल बनाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण

बीदासर बाहर, 3 फरवरी, 2022
अध्यात्म जगत के महासूर्य समता के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने चाड़वास से विहार कर वीरभूमि बीदासर में मंगल पदार्पण किया।
वीरभूमि-तपोभूमि बीदासर जहाँ पूज्यप्रवर 2022 का वृहद मर्यादा महोत्सव आयोज्य हैं। बीदासर के कई ऐतिहासिक प्रसंग धर्मसंघ से जुड़े हुए हैं। जहाँ आचार्यों की विशेष कृपा रही है, तो यहाँ के श्रावक भी संघनिष्ठ हुए हैं। बीदासर साध्वियों का सेवा केंद्र भी है।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी इस सृष्टि में अनंत जीव हैं। 84 लाख जीव योनियाँ बताई गई हैं। इन 84 लाख जीव योनियों में मानव जन्म दुर्लभ बताया गया है। चार चीजें शास्त्र में दुर्लभ कही गई हैंमनुष्य जन्म, श्रुति, श्रद्धा और संयम में पराक्रम।
मनुष्य जन्म मिलना कठिन है। वह मिल भी जाए तो धर्म का श्रवण कर पाना मुश्किल है। श्रुति भी हो जाए तो श्रद्धा का होना दुर्लभ है। श्रद्धा हो जाने के बाद भी आदमी वो आचरण नहीं कर सकता।
प्रश्‍न हो सकता है कि मनुष्य जन्म दुर्लभ कहा है। आबादी बहुत है। आबादी को नियंत्रण में लाने की बात होती है। जैन धर्म के सिद्धांतों के संदर्भ में देखें तो जमीकंद है, एक छोटे से हिस्से में अत्यंत जीव हैं। ऐसे अनंत-अनंत जीवों की तुलना में तो मनुष्य कितने कम हैं। मनुष्यों से ज्यादा तो देव होते हैं। इसलिए इस संदर्भ में यह ठीक सिद्ध हो सकता है कि मनुष्य जन्म दुर्लभ है।
धर्म की बात को सुनना भी मुश्किल माना गया है। वर्तमान के यंत्रों में भी श्रुति को कुछ सुलभ बना दिया है। बीदासर में मर्यादा-महोत्सव करने आए हैं। सुलभ होने पर भी श्रुति को कोई ध्यान से सुनें तो समझ में आ सकता है। सुनकर श्रद्धा का हो जाना दुर्लभ है। धर्म के संदेश को जीवन में उतारना, पराक्रम करना और भी मुश्किल हो जाता है। अतीत में अनेक तीर्थंकर, संत हुए हैं, वर्तमान में भी हो रहे हैं।
कोई प्रश्‍न कर ले कि तीर्थंकर 24 ही क्यों होते हैं। सृष्टि का अपना नियम है। जैसे दिन-रात में 24 घंटें ही होते हैं। श्रद्धा के साथ पराक्रम होता है, तभी इतने तीर्थंकर-साधु दुनिया में होते हैं।
इस मनुष्य जीवन का उपयोग अच्छा हो। यह मानव जीवन एक वृक्ष है। इसके फल लगे तो यह सफल ओर सुफल हो सकता है। आचार्य सोमप्रभ सूरि ने बताया कि मानव जीवन रूपी वृक्ष के छ:फल होते हैं। तीर्थंकर अध्यात्म के सबसे बड़े वेत्ता होते हैं।
गुरु की पर्युपासना करो। शुद्ध साधु हमारे गुरु हैं। बीदासर में इतनी चारित्रात्माओं का मर्यादा महोत्सव के निमित्त पधारना-एकत्रित होना विशेष बात है। संत-समागम हो रहा है। इस बार वृहद मर्यादा महोत्सव की तैयारी में हम लोग हैं। आचार्य मुख्य गुरु होते हैं।
प्राणियों के प्रति दया की भावना रखो। ‘तुलसी दया न पारकी, दया आपकी होय। तू किण ने मारे नहीं, तने ना मारे कोय।’ मैं किसी की सुख-शांति में बाधक न बन जाऊँ।
सुपात्र को दान दो। शुद्ध साधु को दान देना सुपात्रदान हो जाता है। गुणों के प्रति अनुराग करो। गुणों के प्रति प्रमोद भावना रखो। गुणों की पूजा करें। मानव जीवन रूपी वृक्ष के ये छ: फल लगाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य जन्म को इस प्रकार सार्थक बनाया जा सकता है।
पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों के बारे में समझाया। बीदासर में तो पूज्य मघवागणी जैसे जन्मे थे। सरदारशहर में उनका महाप्रयाण हुआ था। जयाचार्य जैसे गुरु उनको मिले। वे फरमाते थे कि मघजी तो पुण्यवान हैं। मघवागणी को वीतराग कल्प जैसा कहा गया है।
बीदासर में माताएँ भी विराजी हैं छोगाजी और वंदनाजी। साध्वीप्रमुखा गुलाबाजी एवं शासन स्तंभ मुनि घासीराम जी से जुड़े क्षेत्र हैं। साध्वीप्रमुखा गुलाबांजी तो हमारे धर्मसंघ में सबसे छोटी उम्र में दीक्षा लेने वाली साध्वीश्री जी भी यहीं से थी। आचार्य और साध्वीप्रमुखा देने वाला क्षेत्र है। हमारा यहाँ मर्यादा महोत्सव के निमित्त आना शुभ रहे, यह कामना।
अमृत वाणी को सेवा देने वाले जयसिंह व उनका पुत्र अमरसिंह भी सेवा दे रहे हैं। नगरपालिका अध्यक्ष सीताराम प्रजापति ने नगर की ओर से पूज्यप्रवर का स्वागत किया। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल गीत, जैविभा अध्यक्ष मनोज लुणिया ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि ये जो फोटोग्राफर कमल शर्मा सेवा दे रहा है, वो अगर गुरुदेव तुलसी का सपना पूरा हो जाता तो आज यह शिष्य के रूप में सेवा दे रहा होता।