जिसका मन धर्म में रमा हो उसे देवता भी नमस्कार करते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जिसका मन धर्म में रमा हो उसे देवता भी नमस्कार करते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

बीदासर, 4 फरवरी, 2022
मर्यादापुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी का अपनी धवल सेना के साथ वीरभूमि बीदासर में वृहद मर्यादा महोत्सव जो बीदासर में 25वाँ मर्यादा महोत्सव है। मर्यादा महोत्सव के मंगल प्रवेश के अवसर पर वीरभूमि बीदासरवासी अपने आराध्य को साक्षात पाकर धन्यता का अनुभव कर रहे थे। शांतिदूत ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में मंगल के प्रति आकर्षण होता है। कोई भी कार्य प्रारंभ होकर सानंद सफलतामपूर्वक संपन्‍न हो जाए ऐसी भी मनोकामना रहती है। निर्विघ्नता की भी कामना रहती है। आदमी स्वयं का भी मंगल चाहता है और दूसरों के प्रति भी वह मंगलकामना करता है। प्रश्‍न है, मंगल कैसे हो? मंगल निष्पन्‍न कर सकें, ऐसा मंगल भी दुनिया में क्या है? अनेक चीजों को मंगलकारक निमित्त के रूप में देखा जा सकता है। गुड़ आदि पदार्थों को भी मंगल रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। शास्त्रकार ने एक उद्घोष कियाउत्कृष्ट मंगल धर्म है। धर्म के सिवाय जितनी भी चीजें हैं, जिन्हें मंगल माना जाता है, वे उत्कृष्ट मंगल तो नहीं है।
जो मंगल सर्वोत्तम है, वो हमें प्राप्त हो। वह मंगल हैधर्म। दुर्गति की ओर गति कर चुके जीवों को जो धारण कर लेता है। अच्छे स्थान में उनको स्थापित कर देता है, वह धर्म होता है। शास्त्रकार ने कहा है कि अहिंसा, संयम और तप धर्म है। अहिंसा परम धर्म है। प्राणियों को अपने तुल्य समझो। जो व्यवहार मेरे लिए प्रतिकूल है, जो व्यवहार दूसरों से अपने साथ नहीं चाहता, तो मैं भी वह व्यवहार दूसरों के साथ न करूँ। जो व्यक्‍ति अहिंसा के पथ पर चलता है, वो व्यक्‍ति महान होता है। अहिंसा एक नीति होनी चाहिए। संयम भी धर्म है। मन, वाणी, शरीर और इंद्रियों का संयम हो। त्याग धर्म-भोग अधर्म, व्रत धर्म, अव्रत अधर्म। असंयम युक्‍त भोग है, वहाँ अधर्म है। तप भी धर्म है। तपस्या में तेज होता है। शुभ योग अपने आपमें तप होता है। अहिंसा, संयम और तप धर्म मंगल है। देव भी उसको नमस्कार करते हैं, जिसका मन धर्म में रमा रहता है।
आज मैंने अपने चारित्रात्माओं के साथ, साधु-साध्वी समुदाय के साथ बीदासर के प्रवास स्थल में मर्यादा महोत्सव के संदर्भ में प्रवेश किया है। मर्यादा महोत्सव हमारे धर्मसंघ का एक वार्षिक महोत्सव होता है, उसका अपना महत्त्व है। आचार्य भिक्षु द्वारा प्रवर्तित जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ हमारा आश्रय है, हम इसमें रह रहे हैं। इसे नंदन वन कहा गया है। आचार्य भिक्षु की उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा आगे बढ़ी है। प्रज्ञापुरुष श्रीमद् जयाचार्य ने यह मर्यादा महोत्सव का क्रम प्रारंभ किया था। हमारे अतीत के दस आचार्य हमारे पूजनीय-वंदनीय हैं।
आचार्य तुलसी द्वारा निर्मित यह समण श्रेणी भी त्याग और संयम से जुड़ी हुई है। मुमुक्षु बाईयाँ और श्रावक-श्राविकाएँ भी हैं। अनेक संस्थाएँ धर्मसंघ से संबद्ध हैै। परमपूज्य मघवागणी हमारे धर्मसंघ के पंचम आचार्य जिनको वीतराग-कल्प के रूप में स्वीकार किया गया है, ऐसे आचार्य की जन्मभूमि में हम लोग आज यहाँ प्रविष्ठ हुए हैं। महासती गुलाबांजी, मातुश्री छोगांजी, वंदनाजी, महासती लाडांजी से जुड़ा हुआ बीदासर क्षेत्र है।
इस बार का मर्यादा महोत्सव, वृहद् मर्यादा महोत्सव है। कितने साधु-साध्वियाँ यहाँ पहुँचे हैं। धर्मसंघ से मिलने का मौका आया है। शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी, मुख्य नियोजिकाजी, साध्वीवर्याजी, मुख्य मुनि आदि चारित्रात्माएँ व समण श्रेणी पधारे हैं।
हमारा धर्मसंघ जैन शासन का ही एक अंग है। हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसा धर्मसंघ प्राप्त हुआ है, जिसमें सुरम्यता है, शोभा भी है। भिक्षु स्वामी ने क्रांति की और एक नया संप्रदाय संपादित हो गया, संपुष्ट हो गया। इतने हमारे श्रावक-श्राविकाएँ जो जगह-जगह प्रवास करने वाले हैं।
हमारे धर्मसंघ में मर्यादाओं का महत्त्व है। मर्यादा अपने आपमें सुरक्षा कवच के रूप में होती है। हम मर्यादा का सम्मान करें तो मर्यादा हमारी सुरक्षा कर सकेगी। मर्यादा महोत्सव का सम्यक्तया आयोजन हो। सभी जागरूकता बनाए रखें, यह काम्य है। मैं हमारे सभी पूर्वाचार्यों का स्मरण-वंदन करता हुआ मंगल प्रवेश पर यह मंगलकामना करता है कि हमारा उद्देश्य है, मर्यादा महोत्सव को समायोजित करना, वह लक्ष्य का सम्यक्त्व संपन्‍न हो। शुभाशंसा। बीदासर कई चारित्रात्माओं का जन्म स्थल, दीक्षा भूमि या चाकरी स्थल है, उनमें सभी में आध्यात्मिक साधना-संस्कार बने रहें। समाधि केंद्र बीदासर की व्यवस्थापिका साध्वी कार्तिकयशाजी, तपस्वी मुनि नमि कुमार जी, साध्वी अमितप्रभाजी, मुनि धन्यकुमार जी, साध्वी अनन्यप्रभा जी, मुनि मुदितकुमार जी, साध्वी परमयशाजी ने अपनी भावना परमपूज्य के स्वागत-अभिनंदन में अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। पूज्यप्रवर ने मुनि नमिकुमार जी को 31 की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाते हुए कहा कि तपस्वी को नजर नहीं लगे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ सभाध्यक्ष अशोक बोथरा, नवीन बांठिया (तेयुप अध्यक्ष), तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष चंदा देवी गिड़िया, स्वागताध्यक्ष भीकमचंद बैंगाणी, व्यवस्था समिति अध्यक्ष कन्हैयालाल गिड़िया, तेरापंथ कन्या मंडल, तेरापंथ समाज, रूपचंद दुगड़, मीता डागा, ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों द्वारा गीत, प्रस्तुति व भावों से अपनी भावना अभिव्यक्‍त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।