सद्भावना-नैतिकता-नशामुक्‍ति स्यूं आदमी रो जीवन मंगल बण सके है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सद्भावना-नैतिकता-नशामुक्‍ति स्यूं आदमी रो जीवन मंगल बण सके है : आचार्यश्री महाश्रमण

अहिंसा यात्रा प्रणेता, जन-जन के उद्धारक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज प्रात: मध्य प्रदेश से राजस्थान की मरुधरा में प्रवेश किया। साध्वीप्रमुखा सहित संपूर्ण धवल सेना व श्रावक समाज के साथ मेवाड़ की धरती पर पावन प्रवेश हुआ। पूज्यप्रवर ने 2014 में राजस्थान से विदा ली थी। आज पुन: लगभग 7 वर्ष के पश्‍चात् मायड़ भूमि में परम पावन का पदार्पण हुआ है।
नैतिक क्रांति के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमण जी ने इस पावन प्रसंग पर मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन आगमों में एक हैउत्तराध्ययन। उसमें 36 अध्ययन हैं। अनेक चारित्रात्माएँ इस आगम को कोई पूर्णरूपेण कोई आंशिकतया कंठस्थ भी करते हैं।
इसका दसवाँ अध्ययन आकार में बहुत बड़ा नहीं है, छोटा है। पर इसमें एक विशेषता यह है कि बार-बार एक चरण उच्चारण को प्राप्त होता हैयानी गौतम के मानो संदेश है। उनके माध्यम से हमारे सबके लिए संदेश है कि समय मात्र भी प्रमाद मत करो। एक जागरूक रहने का निर्देश-संदेश देने वाला यह अध्ययन है।
प्रमाद क्यों मत करो, इसका एक आधार बताया गया कि जीवन अनित्य है। दुनिया में कोई भी आदमी आदमी के रूप में स्थायी नहीं है, सब राही हैं। मनुष्यों का जीवन कैसे अस्थायी है, जैसे एक वृक्ष का पत्ता पीला पड़ गया है, समय आने पर एक दिन वह पत्ता गिर जाता है। इसी प्रकार मनुष्यों का जीवन पत्ते के समान है। जीवन अवसान को प्राप्त हो जाता है।
जीवन तो अनित्य है, पर आत्मा आगे भी रहने वाली है। इस संदर्भ में आत्मा नित्य है। यहाँ जागरूक नहीं रहोगे तो आत्मा मलीन हो जाएगी। मलीनता का परिणाम तुम्हारी आत्मा को कहीं भोगना पड़ेगा। इसलिए प्रमाद मत करो। आत्मा स्थायी है, स्थायी का हित-सुरक्षा करनी है। हित का काम मनुष्य जन्म में ही कर सकेंगे और मनुष्य जीवन अनित्य है। इसलिए सचेष्ट-जागरूक रहो।
शरीर-वैभव अध्रुव-अशाश्‍वत है। मृत्यु निकट से निकट हो रही है, तो क्या करें? धर्म का संचय आदमी को करना चाहिए, त्याग-तपस्या के रूप में। ज्ञान, दर्शन, चारित्र के रूप में धर्म का संचय करना चाहिए। भारत एक ऐसा देश है, जहाँ संत संपदा है। जो धर्म की बात बताते हैं।
राजस्थान में भी कितनी संत-संपदा रही है। तेरापंथ धर्मसंघ के संदर्भ में कितने संत राजस्थान में जन्मे हुए हैं। अतीत के 10 आचार्यों में 9 आचार्य राजस्थान से जुड़े हुए हैं। तेरापंथ की जन्मभूमि भी राजस्थान है। भारत के पास ग्रंथ संपदा भी है और पंथ संपदा भी है। संत संपदा से ज्ञान मिलता रहे, ग्रंथ संपदा से ज्ञान बढ़ता रहे। पंथ संपदा से भी पथ दर्शन मिलता रहे।
हमारे आगम भी एक ज्ञान-ग्रंथ संपदा है। जहाँ हमें अध्यात्म की जानकारियाँ, ज्ञान मिलता है। राजस्थानी भाषा में भी कितने ग्रंथ हैं। आचार्य भिक्षु और जयाचार्य का साहित्य तो राजस्थानी भाषा में ही है। बाद के आचार्यों ने तो हिंदी में भी लिखा है।
भाषा एक माध्यम है, साध्य को पाने के लिए साधन है। आज राजस्थान आणो हुयो है। कित्ता प्रांता में घूमकर के, देश-विदश में घूमने के बाद कई वर्षा के बाद आज राजस्थान में आणो हुयो है। म्हारे धर्मसंघ रा कित्ता साधु- साध्वियाँ राजस्थान में प्रवास कर रह्या है। कामना है, अब सारा साधु- साध्वियाँ स्यूं मिलनो हुवै। मेवाड़ में भी कित्ता रत्नाधिक संत है, बांकै दर्शन को मौको मिले।

राजस्थान में जकां स्यूं वर्षा स्यूं मिलनो कोनी हुयो, अब मिलने को मौको मिलसी। भीलवाड़ा अब निकट हु रह्यो है। राजस्थान में आज कई वर्षा रे बाद आणो हुयो है। यात्रा को राजस्थान में प्रवेश हुग्यो। राजस्थान में दो चातुर्मास भी निर्णित करेड़ा है। 2 मर्यादा महोत्सव भी राजस्थान में निर्णित हैं।
मेवाड़ के केलवा में तेरापंथ की जन्म स्थली है। राजस्थान रा लोग बारे रहवण लाग गया तो भी राजस्थान तो आणो-जाणो रहवै ही है। राजस्थान की जनता में भी अहिंसा यात्रा की तीन बातां बता रह्या हांसद्भावना, नैतिकता, नशामुक्‍ति। ऐ बातां भी प्रमाद में नहीं जाणे की हैं। इणसूंं आदमी रो जीवन मंगल स्यूं युक्‍त रह सकै है। आदमी के जीवन में अहिंसा, संयम, नैतिकता, नशामुक्‍ति रहवै। ईमानदारी को भाव रहवे तो जीवन आदमी को अच्छो रह सकै।
जागरूकता को एक आधार बणै है, कि जीवन अनित्य है। पर आत्मा स्थायी है, ई वास्ते जागरूक रहो। समय मात्र भी प्रमाद मत करो। आगमा रो स्वाध्याय हुवै और सामै अनुप्रेक्षा की वृत्ति हुवै, प्रज्ञा री स्फुरणा हुवै, स्वाध्याय करतां-करतां बहुत अच्छी तन्मयता भी आ सकै है। श्‍लोका री-सूत्रां री गहराई में भी बैठणे को मौको मिल सकै।
आगम तो एक प्रकार रो समुद्र-सागर है। ईं में कित्ती डुबकी लगाई जा सकै, कित्तो बट्योरो जा सके, बियाकलो तत्त्व-बोध कर्यो जावे। साध्वीप्रमुखाजी भी हमारे साथ राजस्थान पधारी हैं। साथ में साधु-साध्वियाँ और समणियाँ भी हैं। हम सभी खूब अध्यात्म की, धर्म की आराधना करते रहें। आगे राजस्थान का प्रवास भी मंगलमय रहे, मंगलकामना।
आज चित्तौड़गढ़ जिला के निम्बाहेड़ा में आगमन हुआ है। यहाँ खूब अच्छा रहे।

पूज्यप्रवर ने सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई

अपना घर सबसे न्यारा होता है : सावीप्रमुखश्री कनकप्रभा
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि जहाँ-जहाँ गए हैं, पूज्यप्रवर की पुण्याई फलीभूत हुई है। राजस्थान में तो पूरा राजस्थान इकट्ठा हो गया। अपना अपना ही होता है। राजस्थान के साथ तेरापंथ का विशेष लगाव है। राजस्थान का अपना गौरव है। हम सब जगह घूमकर आए हैं, पर राजस्थान के प्रति आकर्षण है। यहाँ जगह-जगह तेरापंथ का इतिहास जुड़ा हुआ है। अपना घर सबसे न्यारा होता है।
राजस्थान प्रवेश पर राजस्थान के केंद्रीय मंत्री उदयलाल आंजणा, सांसद सी0पी0 जोशी, विधायक रामलाल जाट, अशोक नवलखा (पूर्व विधायक), सुभाष सारड़ा नगरपालिका चेयरमैन, बाबूलाल सिंघवी, सुनील ढीलीवाल, किश्‍नलाल डागलिया, कमल नाहर, प्रकाश बोड़ाला, आनंद संकलेचा (वर्धमान स्थानकवासी संघ), राजेंद्र गुप्ता (विजय गच्छ), खतरगच्छ संघ से सुरेंद्र चौधरी, नितिन जैन, दिगंबर समाज से मनोज सोनी, राजेश छाजेड़ (तेयुप, जयपुर), आनंद दुगड़, प्रकाश सुतरिया, मूलचंद नाहर, भावना बाफणा, राजू खटेड़ (लाडनूं) , रोशनलाल चिपड़ आदि ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।