योग्य गुरु का मिलना शिष्य के लिए सौभाग्य की बात होती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

योग्य गुरु का मिलना शिष्य के लिए सौभाग्य की बात होती है : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन विश्‍व भारती, 24 जनवरी, 2022
भारतीय ॠषि परंपरा के महान संत, संयम रत्न के प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि जो व्यक्‍ति अहंकार-गुस्सा आदि कारणों से गुरु के पास विनय का शिक्षण नहीं लेता है, वह अपना विनाश-नुकसान करने वाला बन सकता है, बन जाता है। गुरु एक ऐसा स्थान है, जहाँ से शिक्षण मिल सकता है। गुरु का एक काम भी है, शिक्षण देना। ज्ञान देना। लौकिक गुरु भी होते हैं तो धर्म गुरु भी होते हैं। योग्य गुरु का मिल जाना भी एक महत्त्वपूर्ण बात होती है। जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ को प्रथम गुरु के रूप में आचार्य भिक्षु प्राप्त हुए थे। आचार्य भिक्षु को भी अनेक अच्छे शिष्य मिले थे। खेतसीजी जैसे शिष्य को सतयुगी कहा गया है। मुनि टोकरजी, हेमराजजी, भारमलजी स्वामी जैसे शिष्य मिले थे। कोई-कोई शिष्य ऐसा भी होता है, जो धर्मसंघ में अपने गुरु को भविष्य की चिंता से मुक्‍त बनाने वाला हो सकता है। गुरु को भावी व्यवस्था के प्रश्‍न का उत्तर मिल जाता है और व्यवस्थित सारी व्यवस्था हो जाती है, तो आचार्य भविष्य की चिंता से कुछ अंशों में पूर्णतया चिंतायुक्‍त हो सकते हैं। हमारे धर्मसंघ में तो आचार्य कुछ अंशों में मुक्‍त हो जाते हैं, जब योग्य उत्तराधिकारी प्रस्तुत-नियुक्‍त हो जाता है। आचार्य अनेक कार्यों का दायित्व उसमें सन्‍निहित कर देते हैं। आचार्य तुलसी युवाचार्य नियुक्‍त करने के बाद भी कई व्यवस्थाओं से जुड़े रहे। बाद में प्रशासनिक कार्य युवाचार्यजी को सौंप दिए थे। बाद में आचार्य तुलसी तो पदमुक्‍त भी हो गए थे। गुरुदेव तुलसी ने तो इतना कह दिया था कि तुलसी में महाप्रज्ञ या महाप्रज्ञ में तुलसी को देखो। आचार्य भिक्षु को भी योग्य शिष्य मिल गया जो उनकी भविष्य की चिंताओं से मुक्‍त करने वाला था। वे थेभारमलजी स्वामी मूँहा वाले। वि0सं0 1832 में आचार्य भिक्षु ने उनको युवाचार्य पद पर घोषित कर दिया था। उत्तराधिकारी नियुक्‍त करने के बाद धर्मसंघ में आचार्य युवाचार्य की जोड़ी हो जाती है। आचार्य व संघ का कोई भाग्य होता है, तब योग्य शिष्य भी आचार्य रूप में नियुक्‍त कर दिया जाता है। लगभग यह जोड़ी 28 वर्षों तक विराजमान रही थी। आचार्य भिक्षु ने भारमलजी स्वामी के लिए फरमाया था कि भारमल तो भागी है। मेरे बाद ये हेमक तैयार हो गया है। जिस मुनि के लिए आचार्य ये शब्द फरमाते हैं, वो मुनि तो मानो धन्य हो जाता है। आचार्य भारमलजी माने आचार्य भिक्षु की छाया की तरह कुछ अंशों में उनके पास रहने वाले थे। शिष्य होना एक बात है, साथ में विनीत हो, चित्त समाधि में निमित्त बनने वाला हो। ज्यादा चित्त समाधि तो वैसे स्वयं के पास है। जीवन में शांति-समाधि रहे। आचार्य का दायित्व है कि अगली पीढ़ी को तैयार कर दें, सामने प्रस्तुत कर दें। हमारे साध्वीप्रमुखाश्री जी को 50 वर्ष होने जा रहे हैं। प्रशासनिक प्रबंध सेवा देना लाजिम होता है। करने वाले कर सकते हैं। माष कृष्णा त्रयोदशी को हमने साध्वीप्रमुखाजी का अमृत महोत्सव मनाने का तय किया हो। साध्वीप्रमुखा अमृत महोत्सव। वैसे इस प्रसंग से गंगाशहर जुड़ा हुआ है। लाडनूं को अवसर मिल गया है। साध्वीप्रमुखाश्री जी तो तीसरी पीढ़ी में भी सेवा प्रदान करवा रही हैं। आचार्य के लिए उत्तराधिकारी तो मुख्य बात है ही। पर मैं सोचता हूँ कि आचार्य के लिए यह कार्य होना चाहिए कि कैसे योग्य साध्वीप्रमुखा हो। इसके लिए आचार्य चिंतन रखें कि उसको कैसे तैयार करें।
आज दीक्षा समारोह भी आयोजित है। जैविभा तो तपोवन, आध्यात्मिक भूमि है, जहाँ अध्यात्म की गंगा प्रवाहित होती रहती है। तीन प्रकार के सात व्यक्‍तियों की दीक्षा होने जा रही है। चार समणियों का श्रेणी आरोहण, दो मुमुक्षु बहनें व एक श्राविका की साध्वी दीक्षा। समणियों व मुमुक्षु बहनों का उत्थान होने जा रहा है।
मुनि कुमारश्रमण जी की संसारपक्षीय माताजी का भी मुनित्व की ओर प्रयाण होना है। योग है, पुरुषार्थ करते-करते पुरुषार्थ सफल हो जाता है। अवस्था प्राप्त है। दीक्षा बचपन, युवावस्था या वृद्धावस्था में भी आ सकती है। दीक्षा के लिए आज्ञा पत्र भी पहुँच चुके हैं। लिखित आज्ञा के साथ मौखिक आज्ञा भी लेना चाहता हूँ। पारिवारिक जनों ने आज्ञा प्रदान की। पूज्यप्रवर ने मुनि दीक्षा ग्रहण करने वालों से उनकी मानसिक भावना को अवगत किया। उन्हें मुनि जीवन के बारे में सारी बातें बताई। सारी परीक्षाएँ लीं। दीक्षा संस्कार प्रदान करते हुए परम पावन ने नमोत्थुणं के स्मरण से भगवान महावीर, आचार्य भिक्षु व आचार्य परंपरा व आचार्य तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का स्मरण करते हुए मंत्री मुनिश्री सुमेरमलजी का स्मरण किया। साध्वीप्रमुखाश्री जी का अभिवादन किया। धम्मो मंगल मुक्‍किट्ठं---की आर्षवाणी से सातों दीक्षार्थियों को तीन करणतीन योग से सर्व सावद्य योग का आजीवन सामायिक पाठ से प्रत्याख्यान करवाया। नव दीक्षित साध्वियों ने पूज्यप्रवर की वंदना की। पूज्यप्रवर ने आर्षवाणी से अतीत की आलोचना करवाई। एक लोगस्स का ध्यान करवाया। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने समणीजी, श्राविकाजी व मुमुक्षु बहनों का केश-लोचन किया। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि केश-लोच की प्राचीन परंपरा है। शिष्य की चोटी गुरु के हाथ में आ जाती है। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि सूरजबाई का केश लोचन एक विरल घटना है। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने खड़े-खड़े ही उनको बैठाकर उनका केश लोच किया है। आज परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के द्वारा मंत्री मुनि के रूप में स्थापित मंत्री मुनि मगनलालजी स्वामी का आज प्रयाण का दिन है। वि0सं0 2016 में मंत्री मुनि का सरदारशहर में प्रयाण हुआ था। आज 62 वर्ष पूरे हो गए। गुरुदेव तुलसी को अपने मंत्री मुनि के अंत समय में मिलने का मौका नहीं मिला तो मुझे भी अपने मंत्री मुनि के अंत समय में उनके दर्शन का मौका नहीं मिला। मैं मंत्री मुनि मगनलालजी स्वामी को भी सम्मान के साथ वंदन-स्मरण करता हूँ। हमारे धर्मसंघ के प्रथम मंत्री मुनि थे।
रजोहरण एवं नामकरण संस्कार
पूज्यप्रवर ने आगम वाणी का उच्चारण किया एवं साध्वीप्रमुखाश्रजी ने सातों नव दीक्षित साध्वियों को रजोहरण प्रदान करवाया। पूज्यप्रवर ने उनके ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में आगे बढ़ने की मंगलकामना की।
पूज्यप्रवर ने नामकरण संस्कार करते हुए नए नामों की घोषणा की।

समणी रुचिप्रज्ञा साध्वी रुचिप्रभा
समणी प्रशांतप्रज्ञा साध्वी परिधिप्रभा
समणी मनस्वीप्रज्ञा साध्वी मस्कप्रभा
समणी शरदप्रज्ञा साध्वी सिद्धांतप्रभा
सुरजबाई साध्वी सुधर्माप्रभा
मुमुक्षु चेतना साध्वी चिरागप्रभा
मुमुक्षु सुरभि साध्वी सुशीलप्रभा

पूज्यप्रवर ने नव दीक्षित को पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए संयम जीवन में किस तरह सावधानी रखनी, वो फरमाया। जीवन में संयम में सहन करना सीखें। अनुशासन का ओज आहार अलग स्थान में प्रदान करने का विचार है। दीक्षा संस्कार से पूर्व मुमुक्षु बहनों का परिचय मुमुक्षु समता ने दिया। समणीजी जिनका श्रेणी आरोहण हो रहा है, उनका परिचय समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने दिया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। पारिवारिक जनों ने मुमुक्षु बहनों के आज्ञा पत्र पूज्यप्रवर को भेंट किया।
मुमुक्षु सुरभि, मुमुक्षु चेतना, श्राविका सुरजबाई एवं समणी रुचिप्रज्ञा जी, समणी प्रशांतप्रज्ञाजी, समणी मनस्वीप्रज्ञा जी, समणी शरदप्रज्ञा जी ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अभिव्यक्‍त की। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दीक्षार्थी बहनें उपस्थित हैं। हमें पूज्यप्रवर जैसे ऐसे गुरु मिले हैं कि जिनकी शिक्षा से हम अपने आपको जान सकें। भारतीय संस्कृति में दीक्षा को एक अनुष्ठान के रूप में माना है। दीक्षा एक क्रांति है। इससे बाहर भी और भीतर का भी रूपांतरण होता है। दीक्षार्थी व्रतों का कवच स्वीकार करता है। दीक्षा के लिए जरूरी है कि व्यक्‍ति के मन में वैराग्य का भाव हो। ज्ञानयुक्‍त वैराग्य हो। दीक्षा की सब संप्रदायों में अपनी-अपनी परंपरा है, पर तेरापंथ धर्मसंघ की दीक्षा विशेष महत्त्वपूर्ण है, कारण यहाँ दीक्षा देने का अधिकार केवल आचार्य को है। तेरापंथ में दीक्षा ले साधना करने वाले अपना जीवन गुरु-चरणों में समर्पित कर निश्‍चिंत हो जाते हैं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।