मैत्री की चेतना के विकास से हो सकता है अनेक समस्याओं का समाधान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मैत्री की चेतना के विकास से हो सकता है अनेक समस्याओं का समाधान : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन विश्‍व भारती, 16 जनवरी, 2022
लाडनूं प्रवास के द्वितीय दिन परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अहिंसा एक प्रसिद्ध शब्द है। ऐसा कौन सा धर्म-संप्रदाय होगा जो अहिंसा को नहीं मानता। कुछ सीमाएँ हो सकती हैं। कोई सूक्ष्मता से अहिंसा का प्रतिपादक धर्म-संप्रदाय हो सकता है, कोई उतनी सूक्षमता में नहीं जाए। परंतु सामान्यतया अहिंसा एक व्यापक धर्म है। अहिंसा एक ऐसी नीति है कि राजनैतिक नीतियों में भी अहिंसा का स्थान रहना चाहिए। अहिंसा की नीति नहीं है, तो एक देश दूसरे देश के साथ सौहार्द भाव कैसे रख पाएगा? अच्छा यही है कि पूरे विश्‍व में मैत्री की चेतना हो। विद्वेष न रखें। वार्ता से समझौता करने का प्रयास चलता रहे, तो समस्या का समाधान हो सकता है। सामाजिक नीतियों में भी अहिंसा अच्छा रोल अदा कर सकती है। पारिवारिक नीति में भी अहिंसा बहुत सुखदायिनी सिद्ध हो सकती है। अहिंसा धर्म है। आत्मशुद्धि के लिए अहिंसा पर तो आस्था होनी ही चाहिए। अहिंसा और समता दोनों अभिन्‍न या गहराई से जुड़े हुए तत्त्व हैं। समता के बिना अहिंसा का पालन कठिन हो सकता है। अहिंसा के लिए अभय का भाव भी चाहिए। न डरना, न डराना। डरना दौर्बल्य है, डरना एक पाप है। अहिंसा के लिए सहिष्णुता भी आवश्यक है। आदमी सहन कर ले। मौके पर कहना भी चाहिए और सहना भी चाहिए। प्रतिक्रिया करनी हो तो मौका देखकर बात कहनी चाहिए। आदमी यह प्रयास रखे कि मुझे सुख प्रिय है, तो दूसरों को भी सुख प्रिय होता है। मैं दूसरों के सुख में बाधा पैदा न करूँ।
जो व्यवहार में आपसे नहीं चाहता वो व्यवहार में आपके साथ क्यों करूँ? यह आत्मतुला की बात है। हिंसा-अहिंसा की गहरी बात है। जीव के मरने न मरने पर भी साधु के भाव हिंसा नहीं होती है, पर गृहस्थ के भाव हिंसा का पाप लग सकता है। आत्मा ही हिंसा और अहिंसा है। अप्रमत्त आत्मा अहिंसक और प्रमत्त आत्महिंसक है। किसी को भी दु:ख मत दो। छोटी-छोटी बातों में गृहस्थ अहिंसा का ध्यान दे सकता है। अहिंसा तो भगवती है, सब जीवों का कल्याण करने वाली है। पूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी ने कहा था कि अहिंसा से शांति रहती है, हिंसा में जाओगे, पिछड़ जाओगे। विकास के लिए भी अहिंसा सहायक बनती है। सरकारें भी ध्यान दें देश में अहिंसा और शांति का कैसे विकास हो। अहिंसा और डरना एक नहीं है। निर्भीक रहने हुए अहिंसा के पथ पर चलना चाहिए। क्षमता होने पर भी क्षमा रखना। ये बड़ी बात होती है। शास्त्रकार ने कहा है कि ज्ञानी के ज्ञान का सार यह है कि वह किसी की हिंसा न करे। ज्ञान आचरण में आए, जीवन में अहिंसा व भाव शुद्धि हो। बुद्धि का महत्त्व है, तो शुद्धि का भी महत्त्व है। हम व आप लोग गृहस्थ अहिंसा के पथ पर गतिमान रहने का प्रयास रखें, यह काम्य है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कर्म की अवस्था के बारे में समझाया।