उत्सव आनंद रो ओ आयो

उत्सव आनंद रो ओ आयो

उत्सव आनंद रो ओ आयो

साध्वी अणिमाश्री 

अमृत मोच्छव सबनै भायो, गण में नई बहारां ल्यायो।
म्हारो रोम-रोम हरसायो, उत्सव आनंद रो ओ आयो।
चरणां शीश झुकावां हां, थांरो गौरव गावां हां॥

झरणै सो जीवन है थांरो, निर्मल, गतिमय, उज्ज्वल।
नयणां स्यूं करुणा रो दरियो, बहतो रह्वै हरपल।
जीवन री पोथी ज्योतिर्मय, पढ़णै वालो बणज्या तन्मय॥

थांरी पावन प्रेरक सन्‍निधि, सबमै जोश, जगावै।
मन-मंदिर में मूरत थांरी, अमृत-रस बरसावै।
कोयल पंचम-स्वर में गावै, जीवन गुलशन नै महकावै॥

नयो सूर्य ओ नई किरण ले, उतर्यो है अवनी पर।
भोर रुपाली आई दीवाली, हर्षित धरती अम्बर।
बाजै थांरी यश-शहनाई, कण-कण में पुलकन है छाई॥

महाश्रमणी जी क्रोड-दीवाली, करो राज म्हे चावां।
मनोनयन रै शुभ-अवसर पर, आ सौगात सजावां।
साध्वी-गण रा मुकुटमणी हो, तुलसी युग रा हीरकणी हो॥

धो आशीर्वर, महाश्रमणीवर! गण रो मान बढ़ावां।
मिली शिवंकर सन्‍निधि थांरी, म्हारा भाग्य सरावां।
पाकर नेहिल नजरां थांरी, खिलगी जीवन री फुलवारी॥
खिलगी अणिमा री फुलवाणी॥

लय : नीलै घोड़े रा---