रहो तुम निरामय

रहो तुम निरामय

साध्वी मुक्‍ताप्रभा

शुचिता पूर्ण जीवन शैली
प्रज्ञा प्रखर विशुद्ध तुम्हारी
क्षमात समता ममता की मूरत
गंभीरता है अति गहरी
अनमोल निधि को करें प्रणाम।

पुरुषार्थ की मशाल निरंतर जलती
काव्य कला निराली
बात-बात में संबोध देते पिलाते
नित्य नई सुधा प्याली
परम पारदर्शी को प्रणाम॥

अमल धवल सुधाकर सी शुभ्र
चांदनी प्रश्‍न है शासन प्रांगण में
मुक्‍ता मणियों की आभा बिखरी
प्रभा महकी है गण नंदनवन में
ओजस्वी प्रज्ञा को करें प्रणाम।

स्वाध्याय प्रियता मधुर वाणी
समर्पण का संगम देखा
आत्मस्थ स्वस्थ मस्त रहते
यही है जीवन का लेखा-जोखा
शांत प्रज्ञा को करें प्रणाम।

शक्‍ति भक्‍ति का दो वरदान
कर दो चेतन उद्योग
चयन दिवस की पावन बेला
आनंद उमंग का हो प्रद्योत
वचन वर्चस्विता को करें प्रणाम।

हर डगर हर मंजिल करती है तुझे सलाम
हर राहे हम सफर है करती है प्रणाम
शुभकामना शुभ भावना है
रहो तुम निरामय
बनो निरंजन बरसे अमृत चंदन।