त्याग और संयममय जीवन से दुख मुक्‍त हो सकते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

त्याग और संयममय जीवन से दुख मुक्‍त हो सकते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

मौलासर, 11 जनवरी, 2022
कड़कड़ाती सर्दी में अध्यात्म की अलख जलाने वाले महान साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ 16 किलोमीटर का विहार कर मौलासर स्थित आदर्श बाल निकेतन उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे।
विद्यालय में धर्मज्ञाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि एक प्रश्‍न किया गया कि यह संसार दु:ख प्रचुर है। अशाश्‍वत है, अध्रुव है। इसमें ऐसा कौन सा कर्म-कार्य है, आचरण है, जिसको करने से मैं दुर्गति में न जाऊँ। एक सुंदर चिंतन होता है कि आदमी अपने आपको दुर्गति से बचाने पर कुछ ध्यान दें। संसार अशाश्‍वत क्यों है? ये आकाश ये लोग तो पहले भी थे और आज भी हैं। यह हमारा जीवन रूपी संसार है, वह अशाश्‍वत है। सब जीवों की द‍ृष्टि से देखें तो चारों गति के जीव हमेशा रहेंगे, प्रवाहरूपेण चारों गतियाँ शाश्‍वत है, पर एक जीव के लिए एक गति अशाश्‍वत है। इस संसार की एक विशेषता और है कि इसमें दु:ख बहुत होते हैं। देवता सहित सारे लोक में ये दु:ख होते हैं, जो कामानुवृत्ति से पैदा होने वाले हैं। 
जन्म, बुढ़ापा, रोग व मृत्यु दु:ख हैं। ये चार दु:ख तो स्पष्ट हैं, इसके सिवाय और दु:ख भी पैदा हो सकते हैं। आर्थिक समस्या भी दु:ख का कारण बन सकती है। समस्या का समाधान किया जा सकता है, पर दु:खी बनना जरूरी नहीं है। समस्या मानसिक दु:ख का निमित्त बन सकती है। कठिनाईयाँ तो जिंदगी में आ सकती हैं। रामचंद्रजी के समक्ष भी समस्याएँ आईं थीं, दु:खी भी हुए थे। राम-लक्ष्मण व सीता के प्रसंग को समझाया। सीता हरण का प्रसंग बताया। रामचंद्रजी अवसाद में आ गए थे।
दु:ख बहुल संसार में क्या करें कि दुर्गति में न जाना पड़े। मृत्यु के बाद भी दुर्गति हो सकती है। वर्तमान जीवन में भी दुर्गति हो सकती है। दु:ख है, दु:ख का कारण हो सकता है। दु:ख-मुक्‍ति है तो दु:ख मुक्‍ति का उपाय भी होता है। दु:ख का कारण ये मोहनीय कर्म, आश्रव, पाप कर्म किए हुए हैं। दु:खमुक्‍ति -मोक्ष का उपाय हैसंवर निर्जरा की साधना। वीतरागता की साधना करो। इसे गौतम बुद्ध के जीवन प्रसंग से समझाया कि बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु दु:ख हैं, पर साधुत्व मुक्‍ति का मार्ग है। दु:खों से मुक्‍ति पाने के लिए संन्यास लेना होगा। सारे गृहस्थ साधु तो न बन सकें पर कुछ अंशों में तो त्याग-संयम कर श्रावक बन जाओ। अणुव्रत के नियम ग्रहण करो। प्रेक्षाध्यान से भी वीतरागता में आगे बढ़ा जा सकता है। राग-द्वेष को कम करो, कषायों को पतला करें तो दु:ख मुक्‍ति की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। हम राग-द्वेष मुक्‍ति और त्याग-तपस्या, संयम को अपनाकर दु:ख मुक्‍ति प्राप्त कर सकते हैं। आदर्श बाल निकेतन के डायरेक्टर लुणाराम झाकड़, सांवरमल रोयल ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के चरणों में अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि आग्रह-विग्रह को गिराता है। अविग्रह आदमी को ऊँचाई पर ले जाता है।