कामधेनू स्वरूपी जैन विश्‍व भारती तेरापंथ समाज के भाग्योदय का प्रतीक है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कामधेनू स्वरूपी जैन विश्‍व भारती तेरापंथ समाज के भाग्योदय का प्रतीक है : आचार्यश्री महाश्रमण

लाडनूं, 15 जनवरी, 2022
शनिवार को घने कोहरे के कारण परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलपुरा में अपने दिन के प्रवास को रद्द करते हुए सीधे लाडनूं में पधारने व मुख्य प्रवचन कार्यक्रम रात्रि आठ बजे जैन विश्‍व भारती परिसर में करने की घोषणा की तो मानो लाडनूंवासियों को एक दिवसीय प्रवास और अधिक प्राप्त हो गया। लगभग ग्यारह बजे तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग शिमला ग्राम से मंगल प्रस्थान कर लगभग 17 किलोमीटर की प्रलंब विहार कर आचार्य पदारोहण के बाद आचार्यश्री तीसरी बार लाडनूं में पधार रहे थे। पूरा नगर बैनर, पोस्टर और तोरण द्वारों से पटा नजर आ रहा था। आचार्यश्री जैसे ही आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ द्वार से लाडनूं की सीमा में मंगल प्रवेश किया, पूरा नगर बुलंद जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री श्रद्धालुओं पर आशीष वृष्टि करते हुए नबर में स्थित प्राचीन सेवाकेंद्र में पधारे और वहाँ वयोवृद्ध साध्वियों से सुखपृच्छा कर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें अनुशास्ता आचार्य तुलसी के जन्मस्थान पर पधारे। वहाँ कुछ क्षण आसीन हो ध्यानस्थ होने के उपरांत चार बजे के आसपास आचार्यश्री जैन विश्‍व भारती के मुख्य द्वार पर पधारे तो जैन विश्‍व भारती के पदाधिकारियों व कर्मचारियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ से जैन विश्‍व भारती के मुख्य द्वार का शुभारंभ हुआ। आचार्यश्री भिक्षु विहार के निकट बने प्रवचन पंडाल में पधारे। जहाँ असाधारण साध्वीप्रमुखाजी सहित बहिर्विहार से पूज्य सन्‍निधि में उपस्थित सैकड़ों साधु-साध्वियों ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री ने मंगलपाठ का उच्चारण किया। जैन विश्‍व भारती में नवनिर्मित जय-कुंजर के पास भी आचार्यश्री ने मंगलपाठ का उच्चारण करने के पश्‍चात विश्‍व भारती परिसर में नवनिर्मित ‘महाश्रमण विहार’ में पधारे। जहाँ आचाय्रश्री के मंगलपाठ से इस नवनिर्मित भवन का लोकार्पण हुआ। भवन से संबंधित उम्मेद बोकाड़िया एवं जैविभा के अध्यक्ष मनोज लुणिया आदि लोगों ने आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। इस ‘महाश्रमण विहार’ में ही आचार्यश्री का 15 दिवसीय पावन प्रवास निर्धारित है। आचार्यप्रवर ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी साधु की उपासना-पर्युपासना करता है, उससे क्या लाभ हो सकता है। श्रमण महान साधु की उपासना करने से एक लाभ यह हो सकता है कि ज्ञान की कोई बात सुनने को मिल जाए। साधु त्यागी-तपस्वी धर्म का वेत्ता है, तो कोई तत्त्व-ज्ञान, अध्यात्म, कल्याण की बात साधु के मुख से सुनने को मिल सकती है। सत्संगति से बड़ा लाभ
होता है। साधुओं के तो दर्शन ही पवित्र हैं। साधु तो तीर्थ के समान है। दर्शन तो लाभदायी है, पर श्रवण को मिल जाए तो और अच्छी बात हो सकती है। साधु की पर्युपासना का पहला लाभ है कि कुछ सुनने को मिल जाए, ज्ञान की बात मिल जाए। सुनते-सुनते ऐसी बात प्राप्त हो सकती है, जो उस श्रोता के जीवन की समस्या का समाधान देने वाली हो। सुनने से श्रोता को ज्ञान मिल सकता है। अज्ञान दूर हो सकेगा। गुरु शब्द का अर्थ हैगु का अर्थ हैअंधकार, रु का अर्थ हैउसका निवारण करने वाला। जो अंधकार का निवारण करता है वह गुरु होता है। ज्ञान होने पर विज्ञान हेय-उपादेय का बोध होता है। बुरी चीज को छोड़े, अच्छी कल्याणकारी बात को अपनाना चाहिए। विज्ञान मिल जाता है, तो आदमी प्रत्याख्यान कर सकता है। गुस्सा, आक्रोश, चोरी, झूठ, कलह छोड़ने लायक है। प्रत्याख्यान करने से जीवन में संयम आ जाता है। अणुव्रत की आत्मा संयम है। संयम होने से अनाश्रव हो जाता है, पाप कर्म का बंध निरुद्ध हो जाता है। तप हो जाता है। कर्म निर्जरा होती है। आगे चलते-चलते आदमी अक्रिय-योग निरोधी बन जाता है। अंतिम निष्पति होती है, सिद्धि। उस आदमी को मोक्ष की प्राप्ति हो
जाती है। साधु की पर्युपासना से दस लाभों की एक सूची है। श्रवण, ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान, संयम, अनाश्रव, तप, व्यवदान, अक्रिया और सिद्धि। साधु त्यागी-ज्ञानी और उपदेष्टा हो तो उससे बड़ा लाभ होता है। गृहस्थ
साधु का प्रवचन सुनता है, तो वह कितने पापों से बच सकता है। साथ में सामायिक का भी लाभ हो जाता है। ज्ञान मिलने से कई प्रेरणा, जानकारियाँ प्राप्त हो सकती है। आज हम 15 जनवरी, 2022 को लाडनूं आए हैं। कई बरसों के अंतराल के बाद साधिक आठ वर्ष हो गए हैं। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अनेक चतुर्मास यहाँ किए थे। मैंने भी सन् 2012 का चतुर्मास यहाँ किया था। लंबा अंतराल हो गया।  इतने वर्षों बाद नवीनता भी देखने को मिली। नव्यता और भव्यता दिखाई दे रही है। अनेक गतिविधियाँ यहाँ चलाई जा रही है। जैन समाज का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। हम तो आज ही वर्धमान हो गए हैं। जैविभा में एक ज्ञान की गंगा प्रवाहित होती है। शिक्षा-साधना जैसे कितने उपक्रम हैं। तेरापंथ समाज का मानो भाग्योदय है कि इतनी बड़ी गतिविधि संपन्‍न संस्था इसके पास है। कामधेनू और जय कुंजर हैं। ये जैविभा के प्रतीक हैं। हमारे साध्वीप्रमुखाश्री जी भी आज पधार गए हैं। हमारा यहाँ का प्रवास भी निष्पत्ति युक्‍त बने, ऐसी शुभाशंसा है।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।