लोकतंत्र में अनुशासन का आलोक रहना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

लोकतंत्र में अनुशासन का आलोक रहना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

जोबनेर, 5 जनवरी, 2022
समता के साधक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 15 किलोमीटर विहार कर जोबनेर स्थित श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्‍वविद्यालय पधारे। स्थानीय श्रावकों ने पूज्यप्रवर का भावभीना स्वागत किया। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए महाश्रमणजी ने फरमाया कि शास्त्रकार ने मानो एक सुंदर सूक्‍त बनाया है कि जो अभिजीत हो तो उसके ------ मानो फुफकारने लगता है। आदमी को ज्ञान, जाति, बल, रूप आदि अनेक बातों का घमंड या अहंकार हो सकता है। अनुशासन-विनय ये ऐसे तत्त्व हैं, जिनसे परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्‍व अच्छा रह सकता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि जो अनुशासन में रहता है, वह कुछ प्राप्त कर सकता है। हमारे जीवन में अनुशासन विनय का गुण होता है, तो व्यक्‍ति का पारिवारिक, सामाजिक जीवन अच्छा हो सकता है।
भारत देश में लोकतंत्र प्रणाली है। राजतंत्र से लोकतंत्र अच्छा रहता है। जनता द्वारा जनता का काम चलता है। जहाँ लोकतंत्र है, वहाँ अहिंसा, सहअस्तित्व, समानताये तत्त्व विद्यमान रह सकते हैं। लोकतंत्र में आलोक रहना चाहिए। अंधेरा न हो। लोकतंत्र में भी अनुशासन चाहिए। आदमी निर्भीक रहे, पर व्यवस्था का ध्यान रखे।
लोकतंत्र में अनुशासन न हो तो देश गड़बड़ा सकता है। लोकतंत्र रूपी जो रथ है, उसके अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा पहिए हैं। सारथी रूप में लोकतांत्रिक प्रणाली है। घमंड, उद्दंडता, उच्छृंखलता जहाँ होती है, वहाँ दु:ख हो सकता है। देवता, मनुष्य या पशु कोई हो जहाँ अविनीतता है, वहाँ दु:खी हो जाते हैं। सुविनीत हैं, तो वे सुखी रहते हैं।