अध्यात्म की साधना में आत्मानुशासन  जरूरी है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्यात्म की साधना में आत्मानुशासन जरूरी है : आचार्यश्री महाश्रमण

सिनोदिया, 6 जनवरी, 2022
अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी जन-जन को आशीर्वाद प्रदान करते हुए 14 किमी विहार कर बी0एल0 भारती विद्या मंदिर पधारे। विद्यालय में अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि एक शब्द हैआत्मानुशासन। अपने पर अनुशासन। दूसरों पर अनुशासन किया जाता है, उसमें भी संभवत: ज्यादा कठिन हो सकता है, स्वयं पर अनुशासन करना। शास्त्रकार ने कहा है कि अच्छा यही है कि स्वयं अपने आप पर अनुशासन कर लिया। संयम, तप के द्वारा स्वयं स्वयं का दमन करे, यह अच्छा है। यदि स्वयं का स्वयं पर अनुशासन नहीं होता है, तो फिर दूसरे अनुशासन करते हैं। अनुशासन करने वाली तो हमारी आत्मा है। चेतना, सम्यक् विचारधारा यह अनुशास्ता है। अनुशासन अपने शरीर, वाणी, मन और अपनी इंद्रियों पर करें। इन चारों पर अनुशासन हमारे द्वारा हो जाता है, तो अपने पर अनुशासन हो गया। शरीर पर हमारा अनुशासन हो, शरीर गलत काम न कर ले। शरीर से किसी को पीड़ा न पहुँचाएँ। शरीर की स्थिरता रखने का प्रयास करें। हाथों, पैरों का संयम रखो। वाणी पर कंट्रोल रखें। अनुपयोगी न बोलें। मौन का अभ्यास भी अच्छा है। अनावश्यक-अनपेक्षित न बोलें। प्रमाद में कटु-कर्कश व असत्य बोलने से बचें। मृषा-भाषण व मिथ्या लेखन न हो। मन पर अनुशासन हो। मन में खराब विचार न करें। बुरी कामना किसी के प्रति न करें। अशुभ चिंतन, अशुभ कल्पना से मन को बचाना चाहिए। कभी विचार मन में गलत आ जाए तो मन में ही बोल दें इस विचार को मेरा समर्थन नहीं है। पवित्र मंत्र का उस समय जाप कर लें। उसकी निंदा-गृहा कर लें। मन की चंचलता को कम करने का प्रयास करें। निर्विचारता का अभ्यास हो। प्रेक्षाध्यान में यह प्रयोग किया जा सकता है। साथ में तन की चंचलता भी कम करें। अपनी पाँचों इंद्रियों पर अनुशासन करना। बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत खाओ, राग-द्वेष से मुक्‍त रहो। इंद्रियों का अनावश्यक प्रयोग न हो। शरीरानुशासन, वचनोनुशासन, मनोनुशासन और इंद्रियानुशासनये चार आ गए तो आत्मानुशासन अपने आप हो गया। अध्यात्म की साधना में आत्मानुशासन जरूरी है। निज पर शासन, फिर अनुशासन। पहले स्वयं पर अनुशासन करें तो फिर दूसरों पर अनुशासन करने की योग्यता आ सकेगी। यह एक प्रसंग से समझाया। गुरु बनने के लिए साधना करनी होती है। तुम दूसरों के अनुशासन में रहने से कतराते हो तो दूसरे क्यों तुम्हारे अनुशासन में रहेंगे। आत्मानुशासन बन हम शरीर, वाणी, मन और इंद्रिय पर अनुशासन करने वाला बन सकते हैं।  कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
मंगल प्रवचन व कुछ घंटों के विश्राम के उपरांत सायं करीब तीन बजे आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा के साथ पुन: सांध्यकालीन विहार को गतिमान हुए। लगभग पाँच किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री खतवाड़ी कलां गाँव स्थित राजकीय उत्कृष्ट उच्च प्राथमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे। ग्रामीणों को आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास यहीं हुआ।