अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’

(3) चारित्र मार्ग

प्रश्‍न-23 : चारित्र की अल्पाबहुत्व का क्या क्रम है?
उत्तर : सबसे कम सूक्ष्म संपराय, उससे संख्यात गुण अधिक परिहार विशुद्धि, उससे संख्यात गुण अधिक यथाख्यात, उससे संख्यात गुण अधिक छेदोपस्थापनीय, उससे संख्यात गुण अधिक सामायिक चारित्र वाले हैं।
प्रश्‍न-24 : चारित्र कौन से क्षेत्र में होता है?
उत्तर : सामायिक, सूक्ष्म संपराय व यथाख्यात पंद्रह कर्मभूमि में तथा अवशिष्ट दो चारित्र पाँच भरत, पाँच एरावत कुल दस क्षेत्रों में ही होता है। साहरण (अपहरण) की अपेक्षा परिहार विशुद्धि को छोड़कर शेष चार का अढ़ाई द्वीप क्षेत्र है। परिहार विशुद्धि चारित्र संपन्‍न मुनियों का साहरण नहीं होता। सूक्ष्म संपराय व यथाख्यात चारित्र वालों का वैसे साहरण तो नहीं होता, पर इन चारित्र की प्राप्ति से पूर्व उनका साहरण हो सकता है। वहीं उन्हें ये चारित्र प्राप्त हो जाते हैं। यथाख्यात संपन्‍न मुनि के जब केवली समुद्घात होता है, तब उनका क्षेत्र पूरा लोकव्यापी हो जाता है।
(क्रमश:)