ज्ञान और क्रिया में पूरकता आए तो लक्ष्य की प्राप्ति  हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञान और क्रिया में पूरकता आए तो लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

नावां-कासेड़ा, 8 जनवरी, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी लाडनूं की ओर गतिमान महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 16 किलोमीटर विहार कर कांसेड़ा गाँव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने एक श्‍लोक में मोक्ष मार्ग के चार अंगों की मानो संक्षिप्त व्याख्या कर दी है। मोक्ष के मार्ग में चार अवयव होते हैं। जैसे किसी गाड़ी में चार पहिए हैं, चारों पहिए ठीक होंगे तभी गाड़ी चल सकेगी वरना कठिनाई हो सकती है। वे हैंज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। ये चारों होंगे तो आत्मा मोक्ष को प्राप्त हो सकती है। कोई सोचे चार में से एक ही स्वीकार करूँ तो समग्रता नहीं है। कई लोग सिद्धांत को, तत्त्व को जानते हैं, अहिंसा, संयम और तप को जानते हैं, पर उनका आचरण नहीं करते। कई आचरण करने में सक्षम हैं, किंतु उनके पास ज्ञान नहीं है। बिना ज्ञान के आचरण करें कैसे? दोनों अधूरे हैं, एक में कथा है, आचरण नहीं, एक में आचरण है, ज्ञान नहीं, यह अंधे-पंगु के द‍ृष्टांत से समझाया कि हम एक-दूसरे के पूरक बनें। अकेले कुछ नहीं कर सकता है। पूरक बनने से कार्य सुसंपन्‍न हो सकता है। ज्ञान और क्रिया में पूरकता आ जाए तो लक्ष्य प्राप्ति हो सकता है। चार अंगों की शास्त्रकार ने बात बताई है। ज्ञान के साथ श्रद्धा, निष्ठा, चारित्र और तप भी हो ये चारों मिलें तो मोक्ष मार्ग परिपूर्ण हो गया। खीर बनाने के लिए चावल, दूध, चीनी व मेवा चाहिए। एक पदार्थ कुछ नहीं कर सकता। चारों मिल गए तो खीर बढ़िया बन गई। इसी तरह चतुरंग मोक्ष मार्ग होता है। चारों का योग चाहिए। आदमी ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से वो श्रद्धा करता है, चारित्र से निग्रह-संयम करता है, तपस्या से परिशुद्धि करता है। तपस्या के अनेक प्रकार हैं, उसका एक अंग शुभ योग है। तपस्या से कर्म को पतला करो, शरीर पतला करने से क्या हेतु है। साधु के बाह्य तप न हों पर आभ्यंतर तप तो कर सकता है। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी ने तपस्या तो नहीं की पर उन्होंने जो कार्य किए वो हर किसी के बस की बात नहीं है। विवेक करो, अपना बल-श्रद्धा देखो, आरोग्य, क्षेत्र और काल को देखो। आचार्य भिक्षु सिर्फ तपस्या में ही लग जाते तो ये धर्मसंघ आगे कैसे बढ़ता। थिरपाल और फतेहचंद ने स्वामी जी से अच्छा सुझाव निवेदित किया था। विवेक देखकर तपस्या करें। हम ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इस चतुष्टयी की आराधना करते हुए मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ें, बढ़ते रहें, जब तक मोक्ष न मिल जाए, यह काम्य है। आज नावां गाँव के पास आए हैं, यह क्षेत्र जयाचार्य व माणकगणी से जुड़े हैं। कासेड़ा व नावां के लोगों में खूब धार्मिक भावना रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्कूल के प्रििंसपल हीरालाल बरवड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।