मोह रूपी मूर्च्छा को तोड़ने के लिए अनित्यता का चिंतन कारगर होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोह रूपी मूर्च्छा को तोड़ने के लिए अनित्यता का चिंतन कारगर होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

कुचामन, 9 जनवरी, 2022
परमार्थ के लिए पुरुषार्थ कर रहे महायायावर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 15 किलोमीटर का विहार कर कुचामण सिटी स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय पधारे। विद्यालय भवन में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हर प्राणी का जीवन अध्रुव है, शरीर अनित्य है। दो चीजें हैंएक नित्यता। दूसरी अनित्यता। हमारी दुनिया में नित्यता है, तो अनित्यता भी है। हर पदार्थ नित्यानित्य होता है। एकांत नित्य और एकांत अनित्य की बात अमान्य है। दीपक से लेकर आसमान तक सब पदार्थ समान हैं। जीव का शरीर अनित्य है, पर उसमें जो परमाणु हैं, वो तो नित्य ही हैं। परमाणु में पर्याय का बदलाव होता रहता है। शरीर एक पर्याय है और पर्याय अनित्य है। अनेकांत के द‍ृष्टिकोण से हर बात सापेक्ष हो सकती है। ॠजुता, सरलता से बताया जाए तो अनेक दर्शनों की, धर्मों की बातें सही भी प्रतीत हो सकती हैं। बारह भावना या सोलह अनुप्रेक्षाओं में पहली भावना अनित्य भावना होती है। मूर्च्छा-मोह को तोड़ने के लिए अनित्यता का चिंतन कारगर, सहयोगी हो सकता है। मेरे सहयोगी कोई स्थायी नहीं हैं, फिर मैं मोह क्यों करूँ? शांत सुधारस में उपाध्याय विनय विजय जी लिखते हैं कि बचपन में जिसके साथ खेले थे, उनमें से कई चले गए हैं। हमसे जो बड़े थे, जिनको हम प्रणाम करते थे, वे भी कई चले गए हैं। इतने लोग चले गए हैं। इतना देख लेने के बाद भी मैं तो नि:शंक बैठा हूँ कि मुझे तो कभी जाना ही नहीं है। इस प्रमाद को धिक्‍कार है। बहुत आसक्‍ति वाले लोग अमर की तरह आचरण करते हैं कि उनको आगे जाना ही नहीं है। तीर्थंकर भी पधार जाते हैं, निर्वाण हो जाता है। जीवन अनित्य है, यह एक प्रसंग से समझाया। वर्तमान में हमारे धर्मसंघ में पूज्य कालूगणी के युग के एक भी साधु-साध्वी नहीं हैं। गुरुदेव तुलसी के युग के भी कितने साधु-साध्वियाँ चले गए हैं। जीवन अनित्य है, पर इस अनित्य जीवन में नित्य को यानी आत्मा को पाने का प्रयास करें। शरीरपिंड रूप अनित्य है। आत्मा के असंख्य पिंड नित्य है। इस अनित्य शरीर से ऐसी साधना करें कि नित्य आत्मा का कल्याण हो सके, वो है अध्यात्म की साधना। अनित्य अनुप्रेक्षा-भावना साधना का एक प्रयोग है। एक चिंतन का कोण है। राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार। मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बार। मोह-मूर्च्छा को भंग करने के लिए, कमजोर करने के लिए अनित्यता का अनुचिंतन करना चाहिए। किसको कितना जीवन मिला है, उसका कोई पता नहीं है।
महावीर बनने के लिए महावीर का अनुकरण करो। आदमी को यथा औचित्य चलना चाहिए। अध्यात्म का आसेवन भी करना चाहिए। हम अनित्य अनुप्रेक्षा के द्वारा मूर्च्छा, मोह, ममता को तोड़ने का प्रयास करें, यह काम्य है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। सोमवीर पुनिया ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। प्रवचन के पश्‍चात राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री यूनुस खान ने पहुँचकर आचार्यप्रवर से आशीर्वाद लिया।