आलोचना का जवाब कार्य से दें तो आलोचक भी प्रशंसक बन जाते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आलोचना का जवाब कार्य से दें तो आलोचक भी प्रशंसक बन जाते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

अर्बन विलेजेज, 2 जनवरी, 2022
युग प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि धर्म के अनेक प्रकार बताए गए हैं, उनमें एक प्रकार हैक्षमा धर्म। क्षमा को खड्ग भी कहा गया है। जिस आदमी के पास क्षमा रूपी खड्ग है, दुर्जन उसका क्या बिगाड़ पाएगा। एक शस्त्र होता है, आयस शस्त्र-लोहे का शस्त्र। दुनिया में बैर-भाव भी होता है। युद्ध-लड़ाई भी होती है। द्रव्य शास्त्रों द्वारा दूसरों को पराजित करने का और जीतने का प्रयास किया जाता है। जहाँ परिग्रह है, वहाँ हिंसा भी हो सकती है। दोनों का गहरा संबंध है। हिंसा कार्य है, परिग्रह उसका कारण है। परिग्रह हिंसा का मूल है। हिंसा के अनेक कारण हैं, उसमें मूल कषायराग-द्वेष हैं। आयस एक शस्त्र है, तो मैत्री और मार्दव रूपी शस्त्र द्वारा दूसरे को जीता जा सकता है। यह एक आध्यात्मिक व परम शस्त्र है। सबको आयस शस्त्र से जीत पाना मुश्किल है। मार्दव-मैत्री के शस्त्र से दूसरों को निकट किया जा सकता है। आदमी प्रणत हो सकता है, अहिंसा की प्रतिष्ठा हो जाती है, आदमी का मन अहिंसा से आप्लावित-ओत-प्रोत हो जाता है, उसकी सन्‍निधि में कोई आता है, तो बैर-भाव दूर हो जाता है। खुद की अहिंसा सामने वाले को झुका सकती है। हम झुकेंगे तो दूसरों को भी झुका सकेंगे। प्रेम-मैत्री का प्रयोग करो। दूसरों के मन को जीतना है, तो वहाँ आयस शस्त्र काम का नहीं, मार्दव शस्त्र का प्रयोग करो। हमारे जीवन में क्षमा का बड़ा महत्त्व है। आई-गई करो तो दिमाग हल्का रहता है। गुस्सा तो किसी के भी काम का नहीं है। असफलता का कारण गुस्सा बन सकता है। दस धर्मों में क्षमा एक धर्म है। क्षमा मुक्‍ति का द्वार है। जीवन में क्षमा का प्रयोग करें। सार की बात है, तो उसे ग्रहण कर लो पर गुस्सा न करो। यह एक प्रसंग से समझाया कि उपयोगी चीज को ले लेना चाहिए।
कोई आलोचना-निंदा करे उसका जबान से जवाब न देकर, लेखनी से न देकर, अच्छे कार्यों से जवाब दो। तो निंदा करने वाले प्रशंसक बन सकते हैं। वाक् युद्ध में समय न लगाकर संबुद्ध बनें। अच्छे कार्यों से जवाब दो। हमारे तन-मन की शक्‍ति अच्छे प्रयोजन में लगे। गाली देने वाले का मुँह बिगड़ेगा। अध्यात्म जगत में बुरी बात के लिए जेसे को तैसा आवश्यक नहीं है। क्षमा धर्म हमारे जीवन में विकसित हो, पुष्ट हो जाए। क्षमा की साधना से हम मुक्‍ति की साधना में आगे बढ़ सकते हैं। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अर्बन विलेजेज से उमेश भंडारी, डागा परिवार, दलपत लोढ़ा, ने अपनी भावना-अभिव्यक्‍त की। संजय भानावत ने अपनी कृति मेरे महाश्रमण भगवान श्री चरणों में अर्पित की। शशि लोढ़ा ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।