राग-द्वेष से मुक्‍त होना साधना का मुख्य लक्ष्य हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

राग-द्वेष से मुक्‍त होना साधना का मुख्य लक्ष्य हो : आचार्यश्री महाश्रमण

भाकरोटा, 31 दिसंबर, 2021
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता जयपुर में हर क्षेत्र को अपने चरणों से पावन कर रहे हैं। श्यामनगर स्थित तुलसी साधना केंद्र से विहार कर महाप्रज्ञ इंटरनेशनल स्कूल पधारे। स्कूल के विद्यार्थियों को पावन प्रेरणा प्रदान कर दोपहर तीन बजे कॉश्मोस गार्डन पहुँचे। विश्राम कर आचार्यप्रवर 6 किमी विहार कर महापुरा स्थित शृंगार वैली पहुँचे जहाँ रात्रि विश्राम किया। मुख्य प्रवचन में अनंत आस्था के केंद्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने कहा हैराग और द्वेष ये दोनों कर्म के बीज हैं। आदमी जो भी पाप-अपराध करता है। उसमें या तो राग भाव की अभिप्रेरणा होती है या द्वेष की। राग और द्वेष ये दोनों न हों तो फिर आदमी अपराध-पाप नहीं कर सकता। राग और द्वेष इन दोनों में ज्यादा गहरे में राग-भाव होता है। राग हो और द्वेष का अस्तित्व न हो ऐसा नहीं हो सकता, द्वेष के न होने पर भी राग हो सकता है। द्वेष के बिना भी राग का अस्तित्व हो सकता है। दसवें गुणस्थान में राग तो है, परंतु द्वेष नहीं है। राग-द्वेष, कषाय और मोहनीय कर्म ये पाप कर्मों का मूल है। साधना के क्षेत्र में राग-द्वेष को पतला करना यही मुख्य बात होती है। साधना एकत्व में हो या समूह में राग-द्वेष जीतना अपेक्षित है। प्राचीन साहित्य में एकल विहार की बात भी आती है। उसका अपना महत्त्व है। एकल विहार न करना भी कहीं-कहीं सम्मत होता है। जैसी भी साधना हो राग-द्वेष को पतला करें, यह एक प्रसंग से समझाया कि गुस्सा हमारी कमजोरी है, आ सकता है, पर हम कषाय को पतला करें। आदमी कहीं भी रहे, उसका गुस्सा कम हो। ज्यादा गुस्सा काम का नहीं। अहंकार को भी कम करें।गुस्से-अहंकार से आदमी बड़ा नहीं बनता है। कषाय व राग-द्वेष मुक्‍ति होगी तभी मोक्ष मिलेगा। सन् 2021 विदाई की तरफ है। इस वर्ष की समीक्षा की जा सकती है। नए वर्ष में क्या करना है, उसका चिंतन भी किया जा सकता है। हम राग-द्वेष मुक्‍ति की साधना में आगे बढ़ें, यह काम्य है। आज पन्‍नालाल बांठिया के फार्म हाउस पर आए हैं। उनके पुत्रों में धर्म संघ की सेवा की भावना रहे, परिवार में अच्छे संस्कार रहें। राजस्थान के भाजपा अध्यक्ष पूनिया ने भी पूज्यप्रवर से मार्ग में आशीर्वाद लिया। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में महेंद्र व राजेंद्र बांठिया एवं पारिवारिकजनों ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। काव्य नाहटा ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि गुस्से में आदमी अंधा हो जाता है। चण्डकौशिक के प्रकरण को समझाया।