अपनी इच्छाओं को जीतने वाला सुखी रह सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अपनी इच्छाओं को जीतने वाला सुखी रह सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

मल्हारगढ़, 3 जुलाई, 2021
जन-जन के तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: लगभग 10 किमी का विहार कर मल्हारगढ़ पधारे। ज्योतिचरण ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि तीन शब्द हैंअनिच्छ, अल्पेच्छ और महेच्छ। अनिच्छ वह होता है, जिसके कोई इच्छा, लालसा, आकांक्षा, कामना नहीं होती। इच्छा रहित वह अनिच्छ होता है।
अल्पेच्छ वह होता है, जिसके इच्छाएँ अल्प-सीमित होती हैं। महेच्छ वह होता है, जिसके बहुत ज्यादा इच्छा, लालसा, कामना होती है। इच्छा ज्यादा होती है, तो मानना चाहिए वह दु:ख का कारण होती है। जितना आदमी संतोषी, आत्मतोषी रहता है, सुखी रहता है।

कामनाओं का अतिक्रमण करो, दु:ख अपने आप अतिक्रांत हो जाएगा। दु:ख पदार्थों की आसक्‍ति से, अनुवृद्धि से उत्पन्‍न होता है। आदमी के पास सोने-चाँदी के पर्वत हैं, पर आदमी लोभी है, लालसावान है, तो वह उतने से भी संतुष्ट नहीं होगा। इच्छा आकाश के समान अनंत है। आकाश का कहीं अंत नहीं, प्रारंभ नहीं। इच्छाओं को बढ़ाएँगे तो और बढ़ती जाएगी।
इच्छा पर ब्रेक लगा दें तो इच्छा कंट्रोल में रह सकती है। अपनी छाया को पीछे करने के लिए दौड़ लगाने की जरूरत नहीं, मोड़ की जरूरत है। मुड़ जाओ, दिशा बदल दो। इसी तरह इच्छाएँ हैं। इच्छाओं का जिसने परिसीमन कर लिया, कंट्रोल कर लिया, लालसा मुक्‍त हो गया वह आदमी उस संदर्भ में बहुत सुखी रह सकता है।
साधु में न उत्कर्ष का न अपकर्ष का भाव आना चाहिए। आहार मिलता है तो ठीक है, न भी मिलता है तो भी ठीक है। आहार नहीं मिलेगा तो तपस्या की वृद्धि हो जाएगी। मिल गया तो शरीर को पोषण मिल जाएगा। नहीं मिला तो आत्मा को पोषण मिल जाएगा। साधु दोनों स्थितियों में शांत रहे।
नियंत्रण करना है तो विपरीत दिशा में चलना पड़ेगा। निद्रा पर विजय प्राप्त करनी है यदि बहुत सोता है, तो निद्रा पर विजय नहीं मिलेगी। निद्रा को कम करने का प्रयास करो। नींद को उड़ा सकेंगे तो निद्रा विजय प्राप्त कर पाएँगे। खाता हुआ भूख पर विजय प्राप्त कर नहीं सकता। कम खाओगे तो क्षुधा विजय हो पाएगी।
आदमी निद्रा विजय, क्षुधा विजय और आसन विजय कर ले। पदार्थों के प्रति लालसा करते जाओगे तो लोभ कम कैसे होगा। प्रतिकूल प्रहार करो। जिसके प्रति आकर्षण है, उसका त्याग ही कर दो। प्रतिस्त्रोत में चलो। जिसके प्रति आकर्षण है, उसको छोड़ो तो इच्छाओं का परिसीमन होगा। हम विजय की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
कामनाओं से जो मुक्‍त है, वह आदमी बड़ा सुखी है। कामनामुक्‍त, लालसामुक्‍त चेतना होती है, तो कामना विजय की दिशा में आदमी आगे बढ़ सकता है। जैसे-जैसे उत्तम तत्त्व का ज्ञान होता है, वैसे-वैसे पदार्थों के प्रति आकर्षण कम हो जाता है। ज्यों-ज्यों आकर्षण कम होता है, हम उत्तम तत्त्व प्राप्त कर सकते हैं।
दो ध्रुव हैंपदार्थों के प्रति आकर्षण और उत्तम तत्त्व की प्राप्ति। यह एक द‍ृष्टांत से समझाया कि जिसे चिंता नहीं, दु:ख नहीं, कोई कामना नहीं है, वह परमसुखी है। गृहस्थ है, वो देखें कि हमारी कितनी आकांक्षाएँ हैं। कामनाएँ हैं, उतनी दु:ख की स्थिति बन गई।
श्रावकों के बारह व्रतों में पाँचवाँ व्रत हैइच्छा परिमाण व्रत। इच्छाओं का परिमाण परिसीमन कर लो तो तुम अल्पेच्छ बन सकते हो। संतोष ऐसा धन है, जिसके सामने और चीजें धूल के समान हैं। एक प्रसंग से समझाया कि जिसके पैरों में जूते हैं, उसके लिए पूरी धरती चमड़े की हो जाएगी। संतोष का जूता जिसने पहन लिया उसको कामना के काँटे नहीं चुभेंगे। आदमी सुखी रह सकता है, कामनाओं पर कंट्रोल करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में उत्कृष्ट हाई स्कूल से अशोक दक, ओमप्रकाश पटवा, अशोक दुगड़, ललित कुमावत, उत्कृष्ट हाई स्कूल के प्राचार्य, उमेश कुमार मोदी ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी। भीलवाड़ा स्थानकवासी समाज से कंवरलाल सूर्या ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि मल्हारगढ़ में जैन-अजैन लोग रहते हैं। हम लोग सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्‍ति की बात बताते हैं। सभी अच्छा जीवन जीएँ।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।