माया से यथार्थ को छिपाने का प्रयास न हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

माया से यथार्थ को छिपाने का प्रयास न हो : आचार्यश्री महाश्रमण

भांतखेड़ा, 4 जुलाई, 2021
धर्माचार्य, परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी आज 14:5 किमी विहार कर राधादेवी रामचंद्र मंगल इंस्टीट्यूट पधारे। परम पावन ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी चेतना, अशुद्ध चेतना है। चेतना के दो प्रकार किए जा सकते हैंएक विशुद्ध चेतना, दूसरी अशुद्ध चेतना।
सर्वथा कर्म-मुक्‍त चेतना विशुद्ध चेतना हाती है। वह मोक्ष गई हुई, सिद्धों की चेतना होती है। बाकी जितनी भी सांसारिक चेतनाएँ हैं, वे आत्माएँ कर्म से युक्‍त होती हैं। किसी आत्मा के आठों कर्म लगे हुए होते हैं। किसी-किसी आत्मा के सात कर्म लगे होते हैं, एक मोहनीय कर्म चला गया। कई आत्माओं के केवल चार कर्म लगे होते हैं।
इस प्रकार अशुद्ध चेतनाएँ हैं, उनको तीन भागों में बाँटा जा सकता है। 4 कर्म वाली, सात कर्म वाली और 8 कर्म वाली अशुद्ध चेतना। कर्मों का हल्कापन कितना है, वह भी एक महत्त्वपूर्ण विषय है। कर्म तो हैं ही, पर एक साधु है, उसके क्षयोपशम भाव चेतना में है या क्षायिक भाव आया है, तो अशुद्धता कम हो गई।
सिद्धों में इस तरह का कोई भेद नहीं, चेतना अशुद्ध यानी उसमें चार कषाय हैं। इन चार कषायों में एक हैमाया, जो यथार्थ को आवृत्त करने में प्रयास कर लेता है। लोहावरण करने का प्रयास कर लेता है। आदमी छलना, माया, वंचना कर लेता है। यह माया चेतना की अशुद्धता की प्रतीक है। आगे और ज्यादा चेतना को अशुद्ध बनाने वाली बन सकती है।
सरलता और सच्चाई का गहरा संबंध है। सरलता नहीं है, तो फिर सच्चाई में तेजस्विता नहीं हो सकती, ऐसा लगता है। माया और मृषा का भी गहरा संबंध है। जो बात प्रकट करे उसमें मन में जो है, उसमें भिन्‍न नहीं होनी चाहिए। मन में कुछ, बात में कुछ तो फिर वो यथार्थ सामने न आए।
कई बार आदमी शब्दों के स्तर पर तो यथार्थ बोलता है, पर उस यथार्थ में प्राणवत्ता नहीं होती। उस यथार्थ के भीतर भी छल होता है। यह यथार्थ शोभित नहीं होता। जिसके भीतर छलना है, वह अयथार्थता है, यह एक प्रसंग से समझाया कि शब्दों में तो अयथार्थता नहीं है, पर भीतर अयथार्थता है।
माया से यथार्थ को ढ़कने का प्रयास न हो। साधु को तो सरलता रखनी ही चाहिए। गलती को तोड़-मरोड़कर बताने का प्रयास न हो। गुरु के सामने शिष्य को ज्यादा होशियारी नहीं छाँटनी चाहिए। छलना से युक्‍त होशियारी अध्यात्म की द‍ृष्टि से व व्यवहार की द‍ृष्टि से भी कहीं-कहीं नुकसानदेह हो सकती है। सरलता है तो सच्चाई अच्छी तरह टिक सकती है। सरलता एक तरह से सत्य रूपी महाराज के विराजने के लिए सिंहासन है।
सरलता के आसन पर देवी सच्चाई विराजमान हो सकती है। सच्चाई के सामने कठिनाइयाँ तो आ सकती हैं, परेशानियाँ, समस्याएँ आ सकती हैं, परंतु भविष्य सच्चाई का उज्ज्वल होता है। झूठ-कपट है, वर्तमान में राहत मिलने की संभावना हो जाए, भविष्य उसका अंधकारमय होता है।
वर्तमान तो छोटा सा है। भविष्य का काल लंबा है। भविष्य को भी
उज्ज्वल रखने पर ध्यान देना
चाहिए। बात को मान लो यहाँ छिपा
भी लोगों पर आगे छिपाना मुश्किल है। एक दोहा है
भूल छिपाना पाप है,
करो निवेदन साफ।
यहाँ बचोगे पर नहीं,
आगे होगी माफ॥
आगे नानी-दादी का घर नहीं है। एक-एक चीज का फल भोगना होता है। जो छल-कपट, माया-वंचना करता है, दोषों को छिपा लेता है, आलोचना नहीं करता, उसका क्या हाल होगा। देवगति-देवगति में भी अंतर होता है। चेतना निर्मल नहीं रहती है। साधु को तो सरलता रखनी ही चाहिए।
गृहस्थ जो है, सरलता तो सबके लिए काम की है। आप छल-कपट धोखाधड़ी करेंगे तो आपका विश्‍वास चला जाएगा तो अपसे कौन व्यावसायिक संबंध रखेगा। ईमानदारी-सच्चाई का लंबे काल तक अच्छा व्यावहारिक परिणाम आ सकता है। साथ में आत्मा के कल्याण की बात भी है।
आदमी को विश्‍वस्तता रखनी चाहिए। साफ-सुथरा काम, पारदर्शिता रहे। हर क्षेत्र में स्पष्टता रहे। सरलता-सच्चाई के अनेक विषय हैं। हम चेतना पर ध्यान दें कि चेतना की शुद्धता को बढ़ाने के लिए आदमी को सरलता-सच्चाई की शरण में रहना चाहिए।
आचार्यप्रवर के दर्शनार्थ राज्यसभा सदस्य एवं मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पहुँचे। उन्होंने पूज्यप्रवर के दर्शन कर आचार्यप्रवर की अहिंसा यात्रा को अद्वितीय बताया।