जीवन व्यस्त भले हो पर अस्त-व्यस्त ना हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन व्यस्त भले हो पर अस्त-व्यस्त ना हो : आचार्यश्री महाश्रमण

ऊनी, 18 जून, 2021
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: विहार कर ऊनी पधारे। जिन प्रवचन प्रवर्तक ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि तीन शब्द हैंहेय, उपादेय और ज्ञेय। हेय यानी छोड़ने योग्य चीज, उपादेय यानी ग्रहण करने योग्य चीज और ज्ञेय यानी जानने योग्य चीज।
तात्त्विक भाषा में ज्ञेय तो सभी पदार्थ है। जहाँ केवल जानना है, वहाँ ज्ञान मात्र हो गया। ज्ञान होने के बाद छोड़ने योग्य क्या और ग्रहण करने योग्य क्या? इस विवेचन के आधार पर आदमी छोड़ने योग्य को छोड़ने का और ग्रहण करने योग्य को ग्रहण करने का प्रयत्न करे।
यह जो ज्ञान हैहेय, उपादेय का कैसे हो सकता है? इस ज्ञान का एक माध्यम है श्रवण। सुनने से ज्ञान होता है। हमारी श्रोतेन्द्रिय कान ज्ञान का माध्यम बन जाता है। एक घटे तक अच्छे गुरु-साधु की वाणी सुनता है, तो एक घंटे का समय सार्थक हो गया।
गृहस्थ गार्हस्थ्य में रहते हुए भी प्रवचन आदि सुनने के लिए समय निकालता है, तो विशेष बात हो जाती है। गृहस्थ व्यस्त रहते हैं, पर कुछ समय निकालने का प्रयास करे तो समय निकल सकता है।
आगे धंधों, पाछै धंधो,
धंधा मांहि धंधो।
धंधा मांस्यू समय निकाले,
वो साहिब को बंदो॥
दिन भर में कई काम कर लिए, कई काम पीछे करने बाकी हैं, बीच में और कोई काम आ सकता है, पर इन सब कामों के बीच जो धर्म के लिए समय निकाल ले, वो कुछ अंशों में अच्छा धार्मिक हो सकता है। जीवन व्यस्त हो सकता है पर अस्त-व्यस्त नहीं होना चाहिए। काम का तनाव नहीं रखना चाहिए। समय प्रबंधन करें।
टाइम मैनेजमेंट अच्छा हो तो सारे कार्य अच्छी तरह से संपादित हो सकते हैं। कार्यों की भीड़ में खो जाना नहीं चाहिए। रास्ता निकालें, व्यवस्था अच्छी करें। कार्य अधिक है, समय सीमित है तो पहली बात है कि चित्त की प्रसन्‍नता रहनी चाहिए। चिंता-तनाव न रहे। यह टाइम मैनेजमेंट का ही एक सूत्र है। दूसरी बात है कि प्राथमिकता किस काम को दी जाए। सबसे पहले जल्दी संपन्‍न करने वाले काम को प्राथमिकता दें।
मुख्य और महत्त्वपूर्ण काम को प्राथमिकता दें। जो कार्य विलंबित किए जा सकते हैं, उन्हें बाद में करें। कार्य और समय में सामंजस्य बिठाया जा सकता है। जैसे केवली समूदघात करते हैं। टाइम मैनेजमेंट का प्राकृतिक सूत्र हैकेवली-समूदघात। मुनि वर्धमान कुमार जी को बहिर्विहार का निर्देश दिया गया है, उनको लक्ष्य करके पूज्यप्रवर ने समय की नियमितता के बारे में समझाया।
करणीय कार्य और दिनचर्या के हिसाब से समय का प्रबंधन करें। समय-सारिणी बनाकर कार्य करें। बहिर्विहार में सफलता पाने के लिए टाइम मैनेजमेंट और परिश्रम करना होता है। तीसरी बात हैत्याग करना पड़ता है। भ्ंचचपदमेेए च्तपवतपजलए ैंबतपपिबम एच0पी0एस0 यह टाइम मैनेजमेंट का फार्मूला है। इससे बहिर्विहार सफलतम और लाभदायी हो सकता है। मुनि वर्धमान और मुनि राहुल न्यारा में अच्छा काम करें।
पूज्यप्रवर आज ऊनी ग्राम पधारे हैं। ग्राम पंचायत के सरपंच बाबूलाल राठौड़ ने पूज्यप्रवर का स्कूल में पधारने पर स्वागत किया। व्यवस्था समिति की ओर से उनका सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि मनन कुमार जी ने किया।