साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

(43)

नए निर्माण की खातिर नया आलोक बरसाओ
नए अरमान दो मन को नई अब राह दिखलाओ॥

बुहारें पंथ जीवन का करें शृंगार शूलों से
लताएँ शुष्क जीवन की भरें खुशहाल फूलों से
नया स्वर दो अगर मन में नया अनुराग जग जाए
तुम्हारे नाम गीतों की अनूठी भीड़ लग जाए
बनाएँ नीड़ आस्था का वही आवास अविनश्‍वर
समर्पण के सुगम पथ से हमें उस पार पहुँचाओ॥

सुखद सोपान किरणों की सत्य की राह बतलाए
नई हर साँस की गाथा नया इतिहास गढ़ जाए
बुझे क्यों दीप झंझा से सुबह का आगमन निश्‍चित
अमर उपहार करुणा का तुम्हारा प्राप्त कर उपचित
तोड़ दो राग के बंधन बढ़े वैराग्य का स्यंदन
चपल संसार सपनों का तुम्हीं आधार बन जाओ॥

सुकोमल कांत कलियों पर नहीं हिमपात हो पाए
तरी तूफान से डरकर नहीं मझधार खो जाए
विकल है प्राण वसुधा पर देखकर साँझ की वेला
निशा का कर पराभव तुम लगा दो तेज का मेला
नया दिन आज दीवाली खड़ी है सामने होली
दशहरा ईद सब कुछ है नए मधुमास! मुसकाओ॥


(44)

द‍ृष्टि तुम देते रहो मुझको अगर तो
बदल दूँगी आज ही पूरा नजारा।
सृष्टि तुम करते रहो पग-पग अगर तो
बदल दूँगी मैं स्वयं संसार सारा॥

स्वप्न के दर पर खड़ी कब से निहारूँ
सत्य से मिलना कभी भी हो न पाया।
कल्पना के पंख से नभ को समेटूँ
किंतु अब तक भी न उसका छोर आया।
शून्य में भी प्राण भर दूँगी अगर तुम
समय पर करते रहो समुचित इशारा॥

जिंदगी की घाटियों में है अरुण फिर
दे निमंत्रण तमस को किसने बुलाया।
लग रही हाटें सुखों की हर दिशा में
व्यर्थ ही क्यों वेदना का गीत गाया।
तिमिर को आलोक मैं करती रहूँगी
आँख में भर दो अगर शाश्‍वत उजारा॥

(क्रमश:)