शांति के साथ चिंतन करने से मिलता है समस्या का समाधान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शांति के साथ चिंतन करने से मिलता है समस्या का समाधान : आचार्यश्री महाश्रमण

निवाई, 20 दिसंबर, 2021
राजस्थान के सर्द मौसम में धर्म की अलख जगाने महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 10 किमी का विहार कर निवाई के दिगंबर जैन मंदिर परिसर में पधारे। मंदिर प्रांगण में अमृत देशना प्रदान करते हुए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि अर्हत् वाङ्मय में कहा गया हैजितने भी तीर्थंकर अतीत काल में हुए हैं, अनंत हो गए हैं और जितने भी तीर्थंकर अनागत काल में होंगे, उनका आधार हैशांति। जैसे प्राणियों के लिए पृथ्वी आधार है। शांति के बिना केवलज्ञान हो नहीं सकता। चौदह गुणस्थानों में से बारहवाँ गुणस्थान प्राप्त हो गया तो उसमें परम शांति प्राप्त हो गई। उसके बाद केवलज्ञान की तेरहवें गुणस्थान में प्राप्ति होती है। पहले मोहनीय कर्म जाता है, फिर केवलज्ञान प्राप्त होता है। दोनों साथ-साथ नहीं होते हैं। बुद्धों का बुद्धत्व, तीर्थंकरों का तीर्थंकरत्व का जो केवलज्ञान है, वो मानो शांति पर आधारित है। तीर्थंकर होते हैं, वो जैन शासन में मानो मनुष्यों में सबसे बड़े होते हैं। धर्म के अधिकृत प्रवक्‍ता का तीर्थंकर से बड़ा कोई पद नहीं है। तीर्थंकर से बड़ा कोई दुनिया में अध्यात्म का अधिवक्‍ता नहीं है। सामान्य आदमी शांति से जीए, शांति से रहे औरों को भी शांति से रहने दो। छोटे प्राणी की भी हमारे से शांति भंग न हो। शांति के भंग में चार तत्त्व काम कर सकते हैंगुस्सा, लोभ, भय और चिंता। गुस्से को असफल बनाने का प्रयास करें। संतोष में शांति रहती है। यह एक प्रसंग से समझाया। जहाँ कामना है वहाँ दु:ख है। पारिवारिक समस्या से चिंता हो सकती है। समस्या होना एक बात है, उसमें दु:खी होना अलग बात है। समस्या को देखना और सुलझाना सीखें। चिंता चिता के समान है। चिंता नहीं चिंतन करो। यह जीवन का पथदर्शन है। आप गृहस्थ हैं, परिवार-समाज में भी समस्या आ सकती है। वहाँ शांति रखें। सहन करना सीखें। सहना चाहिए, पर मौके पर तरीके से कहना चाहिए। गुस्सा न करें। आज हम निवाई आए हैं, जयपुर जाना है। यहाँ जैन समाज में दिगंबर समाज का प्राधान्य लग रहा है। लोगों में भावना है, सम्मान का भाव है। स्नेह भी है। जैन समाज के हैं, यह खास बात है। मैत्री भाव बढ़िया है। परंपरा में भेद हो सकता है। हम शांति से रहें, दूसरों को शांति से रहने दें। यह आत्मा के लिए ठीक है, दूसरों के लिए भी ठीक है। पूज्यप्रवर के स्वागत में दिगंबर समाज के महावीर प्रसाद ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने बताया कि 40 वर्ष पूर्व गुरुदेव तुलसी के साथ निवाई आने का मौका मिला है। दुनिया में सबसे बड़ी चीज शांति है। तदुपरांत सायं लगभग सवा चार बजे नसिया जैन मंदिर से आचार्यश्री ने सान्ध्यकालीन विहार किया। लगभग तीन किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री नवाई के बाहरी भाग में स्थित अखिल हरियाणा गौड़ ब्राह्मण शिक्षा एवं छात्रावास समिति परिसर में पधारे। आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास यहीं हुआ। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि गुरुदेव ने शांतिनाथ मंदिर में शांति का संदेश प्रदान करवाया है।