एकाह्निक तुलसी-शतकम्

एकाह्निक तुलसी-शतकम्

(क्रमश:)
(54) रचनाकरणे ब्रह्मा, विष्णुश्‍च गणपालने।
महेश: शोधने काले, त्रयस्त्वयि प्रतिष्ठिता:॥
रचना-काल में ब्रह्मा, गण की पालना में विष्णु एवं शोधन करते समय महेश। आपमें ये तीनों प्रतिष्ठित थे।

(55- जननीं भवता बालचपलतावशेन हि।
56) कथंकथिकता पृष्टा, ह्याचार्य: को भविष्यति॥
जननी वदनाऽवादीत्, मा पृच्छादोऽनुयोजनम्।
कोऽजानीच्च भवानेव, भावीपूज्यो भविष्यति॥ (युग्मम्)
बाल चपलतावश आपने अपनी माँ से प्रश्‍न पूछा कि “अगले आचार्य कौन बनेंगे?” तब माँ वंदना ने आपको टोकते हुए कहा कि “ऐसा प्रश्‍न नहीं पूछते।” भला यह कौन जानता था कि आप ही भावी पूज्य होंगे।

अहंकार-मुक्‍ति
(57) तथापि यौवने जाते तेरापंथविनायक:।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति:॥
बाईस वर्ष की युवावस्था में आप तेरापंथ के सर्वेसर्वा बन गए फिर भी आपको अपनी उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(58) अभू: सर्वेषु शिष्येषु, त्वं कालुगणिन: प्रिय:।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति:॥
आप सभी शिष्यों में कालुगणी के सबसे प्रिय थे, तो भी आपको अपनी उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(59) कोकिलेभ्योऽपि गुल्यं ते, कर्णप्रियं तु गायनम्।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति:॥
आपका मधुर संगान कोयलों के लिए भी कर्णप्रिय था, तो भी अपनी उपलब्धि पर आपको किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(60) भवत उपदेशैश्‍च, जना लक्षा: समुद्धृता:।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति:॥
आपके उपदेशों से लाखों जनों का उद्धार हुआ, फिर भी आपको अपनी उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(61) आचार्या बहवो जातस्तव तुल्यस्तु कोऽपि ना।
स्वीयाधिगगयात्सीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति॥
आचार्य तो अनेक हुए हैं, परंतु आपके तुल्य कोई नहीं, तब भी आपको अपनी उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(62) दीक्षा: सर्वाधिका भूता, शिष्टाणां तव शासने।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकति:॥
आपके शासनकाल में सर्वाधिक शिष्यों की दीक्षा हुई, फिर भी आपको अपनी उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(63) भवता सर्वाधिका: प्रान्ता:, पदाभ्यां पावनीकृता:।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति:॥
आपने अपने शासनकाल में सर्वाधिक प्रांतों को अपने चरणों से पावन किया, फिर भी आपको अपनी उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(64) स्वीयाय भारतज्योत्या, कार्याय त्वमलङ्कृत:।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति:॥
आप अपने कार्यों के लिए भारत ज्योति अलंकरण से अलंकृत हुए, तथापि आपको अपनी उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(65) गांध्येकता पुरस्कार:, सम्प्राप्तो भवता त्वपि।
स्वीयाधिगमयासीच्च, नो किि×चदप्यहंकृति:॥
आपको इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार प्राप्त हुआ। तो भी आपको अपनी इस उपलब्धि पर किंचित् भी अहंकार नहीं था।

(शेष अगले अंक में)