अहिंसा रूपी धर्म को अपनी जीवनशैली में उतारें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहिंसा रूपी धर्म को अपनी जीवनशैली में उतारें : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 16 नवंबर, 2021
मेवाड़ का एक नगर पुर, जहाँ हमारे आद्य-प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के चतुर्मास हुए हैं। आज इसी नगर में प्रात: तेरापंथ के वर्तमान भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमण जी पधारे। परम पावन के पधारने से पुर का कण-कण पुलकित होकर स्वयं अपने आपको धन्य महसूस कर रहा था। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अर्हत वाङ्मय में कहा गया हैशास्त्र में कहा गया हैपहले ज्ञान और फिर दया-आचरण। अज्ञानी जिसके पास ज्ञान ही नहीं है, वह क्या कर पाएगा, कैसे जान पाएगा कि क्या उसके लिए श्रेय है और क्या पाप होता है। ज्ञान हो, ज्ञान के साथ आचार भी अच्छा हो जाए तो आदमी कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। कोरा ज्ञान है, साथ में आचार है ही नहीं, वीतरागता आई ही नहीं। कोरा ज्ञान मोक्ष मिलाने वाला नहीं। कोरा ज्ञान होगा तो पूरा ज्ञान हो भी नहीं सकता। केवल ज्ञान तो हो ही नहीं सकता जब तक समता-वीतरागता नहीं आ जाती। अहिंसा एक आचार है, पर अहिंसा को जान ले आदमी तो अहिंसा का पालन सम्यक्तया हो सकता है। जो हिंसा-अहिंसा और धर्म-कर्म को नहीं जानता वह समता, महाव्रतों और व्रत का पालन और सम्यक् आचार का पालन कितना कर पाएगा। अहिंसा एक धर्म है, जीवनशैली की पद्धति बन सकती है, अहिंसा एक नीति भी बन सकती है। अहिंसा को तो एक परम धर्म कहा गया है। साधु के लिए तो अहिंसा का पालन एक महाव्रत के रूप में सूक्ष्मता के साथ करना अपेक्षित होता है। गृहस्थ भी अहिंसा का पालन अपनी स्थिति अनुसार करें। जीवन जीने का तरीका अहिंसा युक्‍त हो। हर क्रिया में हिंसा से बचाव हो। व्यवहार में भी अहिंसा हो। राष्ट्र की नीति या समाज की नीति अहिंसा हो, मैत्रीपूर्ण व्यवहार हो। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। विधान और व्यवस्था में अहिंसा हो। न्याय में अहिंसा हो। किसी के साथ अन्याय न हो। समान और परिवार की नीति में ही अहिंसा हो। बच्चों में भी अहिंसा का भाव रहे। अहिंसा के कई प्रकार हैं। गृहस्थ के आवश्यक कार्यों में तो हिंसा संभव है, पर अनावश्यक हिंसा न हो। प्रतिरक्षात्मक हिंसा भी हो सकती है। संकल्पपूर्वक किसी की हिंसा न हो। साधु की तुलना तो गृहस्थ कैसे करे। गृहस्थ सोचता हैधन्य है, मुनिवर महाव्रत पालते हैं सदा। गृहस्थ लोभ-गुस्से में आकर संकल्पजा हिंसा न करे। आचार्य भिक्षु ने अहिंसा-दया की अनेक बातें बताई हैं। कटु जबान न बोलें। गुस्सा करना खुद की हार है। समता-क्षमा रखना उपहार है। प्रेक्षाध्यान में भी प्रियता-अप्रियता की अनुप्रेक्षा कराते हैं। पारस दुगड़ सामने बैठे हैं। प्रेक्षाध्यान का अच्छा कार्य करते हैं। हमारे जीवनशैली में अहिंसा जुड़ी रहे, यह अपेक्षित है। पूज्यप्रवर ने सम्यक् दीक्षा ग्रहण करवाई है। पुर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष सुरेशचंद्र सिंघवी, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, तेयुप अध्यक्ष नीतिन हिंगड़, महिला मंडल से राजतिलक खाब्या, तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, देवीलाल बेरूआ, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने प्रस्तुति से पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। इसके अलावा कर्णावट सिस्टर्स, सोनिया भारद्वाज, दिव्या बोल्या, प्रतीक्षा नेनावटी ने भी भावाभिव्यक्‍ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।