नशा छोड़ने से स्वयं के साथ परिवार का भी कल्याण हो सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

नशा छोड़ने से स्वयं के साथ परिवार का भी कल्याण हो सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

पेटलावद, 11 जून, 2021
अहिंसा यात्रा से जन-मन को पावन करने वाले तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: त्रिदिवसीय प्रवास हेतु पेटलावद पधारे। प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने फरमाया कि अहिंसा यात्रा परमपूज्य महाप्रज्ञ जी ने भी की थी और वर्तमान में भी अहिंसा यात्रा चल रही है। वर्तमान की अहिंसा यात्रा के तीन सार्वजनीन कार्य हैं। तीन सूत्रों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
पहला सूत्र हैसद्भावना यानी जाति संप्रदाय आदि को लेकर दंगा-फसाद, मारकाट, हिंसा-हत्या में भाग नहीं लेना। दूसरा सूत्र हैनैतिकता यानी अपने कार्य में बेईमानी नहीं करना। प्रामाणिकता-पारदर्शिता रखना। तीसरा सूत्र हैनशामुक्‍ति। शराब, सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, खैनी आदि नशीले पदार्थों के सेवन से बचना। नशामुक्‍ति का संकल्प एक संयम का संकल्प है।
गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन शुरू किया, आचार संहिता निर्मित हुई। उस आचार-संहिता में अनेक नियम हैं। अणुव्रत का एक आयाम हैनशामुक्‍ति। कुछ लोग नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं। नशे की लत पड़ने से उस पदार्थ को छोड़ना बड़ा मुश्किल सा हो सकता है। पहले आदमी शराब पीता है, फिर शराब आदमी को पीने लग जाती है। वही हाल गुटखा, बीड़ी-सिगरेट का है।
श्‍लोक में कहा गया हैभोगों को हमने क्या भोगा, भोगों ने हमको भोग लिया। काल क्या बीता, हम खुद बीत गए। तप नहीं तपा, हम खुद संतप्त हो गए। तृष्णा बूढ़ी नहीं हुई, हम बुढ़े हो गए। नशीले पदार्थ पहले आदमी खाता-पीता है, फिर ये पदार्थ मानो आदमी को खाने-पीने लग जाते हैं।
नशे के कारण से अनेक समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। असंयम है, आसक्‍ति है, तो आत्मा का नुकसान हो जाता है। आत्मा कर्मों से आबद्ध हो जाती है। प्रासंगिक और भी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। एक प्रसंग से समझाया कि नशा छोड़ देने से आर्थिक बचत हो सकती है। नशा करने से कभी गरीबों की गरीबी नहीं मिट सकती है।
नशा छोड़ने से परिवार की समस्या का समाधान हो सकता है। संत पुरुषों की प्रेरणा से लोग नशा करना छोड़ते भी हैं। आत्मा के ऊर्ध्वारोहण के लिए आदमी नशे का परित्याग करे तो जीवन के लिए एक कल्याण की बात हो सकती है। नशेड़ी आदमी का जीवन भी अस्त-व्यस्त हो सकता है।
अणुव्रत की विचारधारा संयम की विचारधारा है। नैतिकता की विचारधारा है। संयम और नैतिकता की बात आदमी समझे और अपने जीवन में उतारे। अनेक समस्याओं से निजात मिल सकती है और नई समस्याओं को पैदा होने का मौका भी नहीं मिलता है।
संस्कृत का श्‍लोक है कि जो मद्यपान करने वाले लोग हैं, उनका चित्त भ्रांत हो जाता है। चित्त की भ्रांति से आदमी पापाचार-अत्याचार में, हिंसा आदि में चला जाता है। पाप करके मनुष्य दुर्गति को प्राप्त हो जाते हैं। इसलिए मद्य-शराब न खुद को पीना चाहिए न दूसरों को पीने के लिए देना चाहिए।
नशे की आदत पड़ जाती है, बाद में कई बार उसे छोड़ना भी बड़ा मुश्किल हो सकता है। चाहे कितने संकल्प दिला दो, छूटती ही नहीं है। कितने लोग संतों की प्रेरणा से संकल्प लेकर नशा छोड़ते भी हैं। संकल्प में बल हो, चेतना में विरक्‍ति आ जाए तो लिए हुए त्याग-संकल्प को निभाया भी जाता है।
संतपुरुष, त्यागी महात्मा से लिए गए संकल्प का महत्त्व होता है, लोग उस संकल्पों का पालन भी करते हैं। संतों के त्याग और वैराग्मय विचारों का भी प्रभाव होता है। त्यागी-वैरागी आदमी होता है, विरागी इस माने में भागी होता है, अध्यात्म का अनुरागी होता है, ऐसे व्यक्‍ति की प्रेरणा व वाणी भी एक आदमी को भावित करने वाली बन सकती है।
सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्‍ति ये त्रि-सूत्री कार्यक्रम हमारी अहिंसा यात्रा में यथासंभव चलाया जा रहा है।
आज पेटलावद आए हैं, सन् 2004 में भी पेटलावद आना हुआ था। यहाँ की जनता में, श्रावक-श्राविकाओं में खूब धार्मिक चेतना पुष्ट बनी रहे। अच्छा संयम का विकास होता रहे, मंगलकामना।
पूज्यप्रवर के स्वागत व अभिवंदना में सचिन, रेखा पालरेचा व उनकी टीम, विनोद भंडारी, सांसद गुमानसिंह दामोर, सुशील (एसडीएम), निर्मला भूरिया (पूर्व राज्यमंत्री), नगर अध्यक्ष मनोहरलाल भटेवरा, सभा मंत्री लोकेश भंडारी, महिला मंडल अध्यक्षा मनीषा पटवा, तेयुप अध्यक्ष रूपम पटवा, ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों की प्रस्तुति, झमकमल (अणुविभा) वैभव कुमार निमजा (पूजा गार्डन से), अंशिका मेहता, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाएँ, सूरज कोठारी, निमजा परिवार की बहनों ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, इधर अणुव्रत, अहिंसा का प्रचार-प्रसार यह जितना हो सके अणुव्रत विश्‍व भारती के बैनर के तले जितना झाबुआ जिला में विकास हो। सांसद गुमानसिंह जी है, अपना अध्यात्म का नैतिकता, संयम का, अहिंसा का प्रचार-प्रसार हो सके। ये आदिवासी क्षेत्र है, इन लोगों में भी आध्यात्मिक चेतना जागे अहिंसा की दिशा में आगे बढ़े। अच्छा काम होता रहे।
कार्यक्रम का संचालन मुनि मनन कुमार जी ने किया।