व्यक्‍ति को पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्‍ति को पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 8 नवंबर, 2021
अध्यात्म के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सूयगड़ो आगम में कहा गया हैहमारी दुनिया की मानो एक नियति है कि जन्म लेने वाला व्यक्‍ति कभी न कभी अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है। ऐसा नहीं हो सकता कि जन्म है, पर मृत्यु नहीं है। अथवा मृत्यु है, पर जन्म नहीं है। ये दोनों सिरे होते हैं। मनुष्य हो या अन्य प्राणी मृत्यु सबके लिए अनिवार्य है। देवों का भी च्यवन, उद्वर्तन, अवसान होता है। स्थावर हो या त्रस हर प्राणी के लिए मृत्यु अवश्यंभावी है। यह मृत्यु का नियम है कि कुछ भी खा लो, पी लो, मृत्यु से छुटकारा नहीं। ऐसी कोई वैज्ञानिक खोज भी नहीं कि मृत्यु न आए। खोज वहीं होगी, जहाँ कुछ मिलने की संभावना हो। भगवान महावीर भी इस देहावस्था में अमर नहीं रहे। सिद्धावस्था में अमरत्व हो जाता है। शास्त्रकार ने कहा है कि देखो बालक भी मर जाते हैं, बुढ़े आदमी मर जाते हैं और तो क्या कर्मस्य प्राणी भी मर जाता है। जैसे बाज पक्षी बटेर को हरण कर लेता है। इसी प्रकार मौत बाज की तरह बटेर रूपी जीव को पकड़ लेती है। मौत के मुँह में जाने के बाद जीव दसों दिशाओं को देखे, पर कौन बचाए। किसकी ताकत है, मौत से हमेशा के लिए बचा ले। दुनिया की ये स्थिति है, तो क्या करना चाहिए? आदमी को पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए। आतंक और मृत्यु को देखने वाला आदमी पाप से बच सकता है। यह जीवन अनंत नहीं है, शांत है। उत्तराध्ययन आगम के दसवें अध्ययन में कहा गया हैगौतम! तुम्हारा ये शरीर परिजीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं। सारी इंद्रियों का बल क्षीण हो रहा है, प्रमाद मत करो। पाप से बचने का उपाय है कि यदा-कदा जीवन की समाप्ति को ध्यान में लाना। ये वैराग्य पूरक गीत ये भान कराते हैं कि कभी मौत होने वाली है। आगम में कहा गया है कि शरीर अनित्य है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में आचार्य महाप्रज्ञ जी अनित्य अनुप्रेक्षा का भी प्रयोग बताते थे कि यह शरीर अनित्य है, इसका चिंतन करने से वैराग्य भाव पुष्ट हो सकता है। बचपन में ही बोध मिला तो कितनों ने बचपन में साधुत्व स्वीकार कर लिया। वे धन्य है जो जीवन में संयम को स्वीकार कर लेते हैं, उसका आजीवन निर्वहन कर संयमावस्था में इस शरीर का परित्याग कर देते हैं।
भारत सरकार के अल्प संख्यक आयोग के विजय सामपाल पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पधारे। पूज्यप्रवर ने उन्हें आशीर्वचन फरमाया कि राजनीति में अध्यात्म और नैतिकता रहती है, तो राजनीति शुद्ध रह सकती है। आचार्य भिक्षु आलोक संस्थान के पदाधिकारी श्रीचरणों में पहुँचे। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि यह संस्थान आचार्य भिक्षु के नाम से जुड़ा है। साथ में आलोक जुड़ा है। आलोक प्रकाश देने वाला होता है। सम्मान का कार्यक्रम भी हो रहा है। लक्ष्मण सिंह कर्णावट विशिष्ट व्यक्‍ति हैं। सेवा में हमेशा इनका सहयोग रहता है। इनको प्रज्ञा सम्मान दिया जा रहा है। ये अपनी साधना करते रहें। साथ में भीतर का प्रयास भी उजागर होता रहे।
डॉ0 कर्नल दलपतसिंह को भी प्रज्ञा सम्मान दिया जा रहा है, उनके प्रति भी मेरी मंगलकामना, आचार्य भिक्षु आलोक संस्थान भी आध्यात्मि-धार्मिक प्रवृत्ति करता रहे। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि जिन कल्पित मुनि कंठस्थ ज्ञान करते थे। उसी से वे समय काल की जानकारी कर लेते थे। तेरापंथ में भी कंठस्थ ज्ञान की परंपरा रही है। पूज्य डालगणी का भी ज्ञान गहरा था।
भारत सरकार अल्प संख्यक आयोग से विजय सामपाल ने अपनी भावना रखी। हितेश लोढ़ा, संयम सिंघी, रितु जैन, मेघा डांगी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। आचार्य भिक्षु आलोक संस्थान का परिचय दिया गया। लक्ष्मणसिंह कर्णावट एवं कर्नल दलपतसिंह ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। लाछुड़ा निवासियों को पूज्यप्रवर ने सेवा का अवसर प्रदान करवाया। जसराज ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।