ईमानदारीपूर्वक व्यापार करना भी धर्म का एक स्वरूप है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ईमानदारीपूर्वक व्यापार करना भी धर्म का एक स्वरूप है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 10 नवंबर, 2021
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अर्हत् वाङ्मय में कहा गया हैधर्म शब्द बहुत प्रचलित है। दुनिया में कितने-कितने लोग धार्मिक कहलाते हैं। धर्म के दो प्रकार हो जाते हैं। एक पूजा उपासना संबंधी धर्म, दूसरा आचरणात्मक धर्म। पूजा-उपासना की अपने-अपने धर्म-संप्रदाय में अलग-अलग विधियाँ होती हैं। उन्हीं विधियों के अनुसार लोग पूजा-उपासना भी करते हैं। धर्म का दूसरा प्रकार हैआचरणात्मक धर्म। आदमी के व्यवहार में, जीवन में धर्म रहे। पूजा, उपासना, मेडिटेशन आदि के लिए तो समय निकाला जाए तो वो धर्म हो सकता है। परंतु आचरणात्मक धर्म के लिए समय निकालने की जरूरत नहीं, जो कार्य करो उसी में धर्म को जोड़ दो। जैसे व्यापार करो तो उसमें ईमानदारी को जोड़ दो। बातचीत करो तो उसमें सच्चाई और शांति को जोड़ दो। गुस्सा नहीं करना, झूठ नहीं बोलना। यों आचरणों के साथ ही धर्म हो सकता है।
एक प्रसंग से समझाया कि धर्म के लिए अलग से समय निकालने की अपेक्षा नहीं, धर्म हो जाएगा, यदि जिंदगी में नशा नहीं करोगे, जिंदगी में कभी चोरी नहीं करोगे और हो सके तो जिंदगी में कभी झूठ नहीं बोलोगे। जीवन में ईमानदारी रहे। दुनिया में आस्तिक लोग भी हैं, नास्तिक लोग भी हैं। नास्तिक आदमी परमात्मा या मोक्ष को तो नहीं मानता। पुण्य-पाप का फल या पूर्वजन्म, पुनर्जन्म को नहीं मानता पर वर्तमान जीवन को तो अच्छा रखो, पापों से बचें। आचरणात्मक धर्म को स्वीकार करो। जीवन अच्छा रहेगा। दैनिन्दन जीवन के साथ, जीवन के आचरणों के साथ धर्म जुड़ जाए। 
गृहस्थों के लिए व्यापार एक आवश्यक कार्य है। पर व्यापार में आचार कैसा है, वह महत्त्वपूर्ण है। भीलवाड़ा वस्त्र नगरी है। आदमी को कपड़ा भी चाहिए। व्यापार भी एक प्रकार की समाज सेवा है। व्यापारी के जीवन में भी अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम हों। व्यापार में अशुद्धता न आए। यह एक प्रसंग से समझाया कि सोते समय भगवान का नाम लेना चाहिए। धोखा देना पाप का क्रम है। पाप से स्वयं का ही नुकसान होगा। पाप का फल मिलता है, यह धर्म का सिद्धांत है। विश्‍वास ईमानदारी के आधार पर जम सकता है। नैतिक मूल्यों का विकास हो। सेवा अशुद्ध न बन जाए। व्यापार में बेईमानी न हो, यह एक प्रसंग से समझाया कि व्यापार में चालाकी न हो। व्यापारियों में, ग्राहकों में ईमानदारी रहे, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों को समझाया। भीलवाड़ा व्यापार मंडल के सदस्य पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में पहुँचे। पूज्यप्रवर ने उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। जैविभा प्रतिनिधियों ने ‘निर्मावली’ का एक आगम जो साध्वी मुदितयशा जी द्वारा संपादित है, पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में विमोचन हेतु प्रस्तुत किया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि आज यह आगम आया है, इसमें आचार्यों का तो क्या कहें, पर साध्वी मुदितयशा जी का अच्छा योगदान रहा है। मुख्य नियोजिका जी ने स्वाध्याय के भेदों का विस्तार से विवेचन किया। भीलवाड़ा ट्रेड फेडरेशन के अध्यक्ष दामोदरदास अग्रवाल व न्यू क्लॉथ मार्केट के अध्यक्ष गौतम जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। व्यवस्था समिति से प्रकाश सुतरिया ने सभी का स्वागत किया। साध्वी मुदितयशा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।